‘…इसलिए गरीब रह जाते हैं गरीब’, CEO की सोशल मीडिया पोस्ट ने काटा बवाल, छिड़ी बहस

‘गरीबों’ और ‘गरीबी’ पर एक ऑस्ट्रेलियाई सीईओ ने ऐसी टिप्पणी कर दी, जिसे लेकर सोशल मीडिया पर काफी बवाल मच गया है. वेल्थ मैनेजमेंट फर्म बीकम वेल्थ के सीईओ जोसेफ डार्बी ने यह कहकर आक्रोश पैदा कर दिया कि गरीब आखिर गरीब ही क्यों होते जा रहे हैं. उन्होंने अपनी लिंक्डइन पोस्ट में कहा, ‘अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, जबकि गरीब और गरीब होते जा रहे हैं.’ लेकिन इसके पीछे सीईओ ने जो तर्क दिया, वो शायद लोगों को बिल्कुल भी रास नहीं आया और अब सीईओ को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.

सीईओ का कहना है गरीबी कुछ नहीं होती, बल्कि गरीब ‘गरीबी सोच’ के साथ काम करते हैं. अमीरी और गरीबी में केवल मानसिकता का फर्क है. उन्होंने दावा किया कि गरीब केवल हालातों पर दोष मढ़ते हैं. सस्ती चीजों की चाह रखते हैं, देनदारी में निवेश करते हैं यह सोचकर कि वह तो इसे वहन ही नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा, उनका ध्यान केवल समस्याओं पर केंद्रित रहता है, जबकि अमीरों के पास ‘बहुतायत की मानसिकता’ होती है. वो आगे की पीढ़ियों के लिए योजनाएं बनाते हैं. समाधान ढूंढते हैं और अवसर पैदा करते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि आपकी वित्तीय नियति पत्थर पर नहीं लिखी होती. इसे कमाना पड़ता है. उन्होंने बताया कि एलन मस्क और ओपरा विन्फ्रे जैसे स्व निर्मित हस्तियों को भी भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लेकिन हार नहीं मानी. सीईओ ने कहा, ‘मैं नहीं कर सकता’ कहने के बजाय पूछना शुरू करें कि ‘मैं कैसे कर सकता हूं.’ ये भी देखें: ‘इंसानी मांस का स्वाद कैसा होता है?’ नरभक्षियों से मिला इंडियन यूट्यूबर, शेयर किया ये VIDEO

सीईओ जोसेफ डार्बी का वो लिंक्डइन पोस्ट, जिस पर कटा है बवाल

हालांकि, पूर्व सैन्यकर्मी और अब सीईओ बने डार्बी की टिप्पणियों से सोशल मीडिया पर बवाल मच गया, जिस पर तुरंत तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं. कई रेडिट यूजर्स ने उनकी टिप्पणी को बेतुका करार देते हुए जमकर आलोचना की. एक यूजर ने कमेंट किया, जिस मस्क की बात कर रहे हैं, वो चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुआ था. दूसरे यूजर ने सवाल किया, कुछ समय से बेरोजगार होने के कारण मैं समझ नहीं पाया कि बहुतायत की मानसिकता किस तरह से मदद कर सकती है. ये भी देखें: विदाई हो रही या किडनैपिंग? यूं कंधे पर उठाकर गाड़ी में ठूंसी गई दुल्हन

एक अन्य यूजर ने कमेंट किया, विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के मुंह से ऐसे उपदेश सुनकर मुझे नफरत होती है. ये बातें तो ऐसे करते हैं, जैसे नौकरियां पेड़ों पर उगती हैं. एक और यूजर ने तंज कसा, हां…गरीबों को ही जिम्मेदार ठहराएं. असमानता की संरचनात्मक प्रणालियों से इसका कोई लेना-देना तो है नहीं, जो गरीबों को गरीब बनाए रखने और अमीरों को अधिक अमीर बनाने के लिए बनाई गई हैं.

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