दिपावली का त्‍योहार इस वर्ष 31 अक्‍टूबर को मनाना शास्त्र सम्मत: खंडेलवाल

नई दिल्ली, 23 अक्टूबर (हि.स.)। इस साल दीपों के त्‍योहार दीपावली को लेकर देशभर में व्यापारियों एवं अन्य लोगों के बीच तिथि पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है-क्या दिवाली 31 अक्‍टूबर को मनाई जाए या 01 नवंबर को? इस वर्ष कार्तिक अमावस्या दो दिनों में पड़ रही है और दिपावली कार्तिक अमावस्या को ही मनाई जाती है, इसलिए दिपावली को लेकर एक भ्रम बना हुआ है।

कन्‍फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री और चांदनी चौक के सांसद प्रवीन खंडेलवाल ने बुधवार को इस संदर्भ में केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को एक पत्र भेजकर उनसे आग्रह किया है कि दिपावली का सरकारी अवकाश 31 अक्‍टूबर को ही घोषित किया जाए, ताकि लोगों में व्‍याप्‍त भ्रम की स्थिति समाप्त हो सके। इसके साथ ही कैट देशभर के व्यापारिक संगठनों को सर्कुलर भेजकर 31 अक्‍टूबर को ही दिपावली मनाने की सलाह दे रहा है।

खंडेलवाल ने कहा कि दिपावली देश का सबसे बड़ा त्योहार है। भारत में व्यापार और उद्योग के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्व भी है। इस दिन श्री गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा देशभर के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और घरों में बेहद उल्लास और उमंग से मनाई जाती है। सदियों से यह पर्व व्यापार के लिए बेहद शुभ माना जाता रहा है। ऐसे में इसको लेकर भ्रम की स्थति दूर किया जाना जरूरी है। कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि प्राप्त जानकारी के अनुसार अयोध्या धाम तथा धर्म नगरी काशी में भी दिपावली 31 अक्‍टूबर को ही मनाई जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री आचार्य स्वामी जितेंद्रानन्द जी सरस्वती ने सूचित किया है कि दिपावली 31 अक्‍टूबर को ही मनाना शास्त्र सम्मत है।

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कैट की वैदिक एवं आध्यात्मिक कमेटी के राष्ट्रीय संयोजक और उज्जैन के प्रसिद्ध वेद मर्मज्ञ आचार्य दुर्गेश तारे ने इस बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि इस वर्ष दिपावली का त्‍योहार 31 अक्‍टूबर, 2024 को मनाना शास्त्र सम्मत है। दीपावली रात्रिकालीन महापर्व है। उन्‍होंने कहा कि इस वर्ष 31 अक्‍टूबर, गुरुवार को अमावस्या की तिथि दिन में 3:40 बजे से आरंभ हो रही है। आचार्य दुर्गेश तारे ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार दिपावली प्रदोष काल और महारात्रि (निषितकाल) में अमावस्या तिथि होने पर ही मनानी चाहिए। इस वजह से 31 अक्‍टूबर को दिपावली मनाना ही श्रेष्ठ और शास्त्र सम्मत है, क्योंकि प्रदोष काल अमावस्या में 31 अक्‍टूबर को ही पड़ रहा है।

इस संबंध में आचार्य तारे ने “शब्दकल्पद्रुम” से उद्धृत श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा :-

अमावस्या यदा रात्रों दीवाभा गे चतुर्दशी

पूजनीया तदा लक्ष्मी वीजेया सुखरात्रिकाह

आचार्य दुर्गेश तारे ने बताया कि ये श्लोक तर्क वाचस्पति तारानाथ भट्टाचार्य के प्रसिद्ध ग्रंथ “वाचस्पत्यम” में भी उद्धृत है। इसमें कहा गया है कि यदि चतुर्दशी भी हो, तो प्रदोष व्यापिनी अमावस्या को ही सुखरात्रिका अर्थात दीपावली कहा जाता है। आचार्य तारे ने यह भी कहा कि स्थिर लग्न और प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में हुआ था। ऐसे में स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करने से महालक्ष्मी की कृपा स्थायी रहती है। उन्‍होंने कहा कि 01 नवंबर को अमावस्या प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो जाएगी। इसलिए 01 नवंबर को दिपावली का पर्व मनाना शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार उचित नहीं है। इसलिए दिपावली 31 अक्‍टूबर को ही मनाई जानी चाहिए।

आचार्य दुर्गेश तारे ने बताया कि दिपावली महापर्व की शुरुआत अहोई अष्टमी गुरुवार, 24 अक्‍टूबर से होगी तथा इस श्रृंखला में धनतेरस 29 अक्‍टूबर, दिपावली 31 अक्‍टूबर, गोवर्धन पूजा 02 नवंबर, भाई दूज 03 नवंबर तथा उसके बाद छठ पूजा करते हुए और तुलसी विवाह 12 नवंबर को मनाते हुए दिपावली का महापर्व समाप्त होगा, उसके तुरंत बाद शादियों का सीजन शुरू हो जाएगा।

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