पीएम मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ फ्रांस के मार्सिले में मजारगुएस युद्ध कब्रिस्तान में पुष्पांजलि अर्पित की। कब्रिस्तान में एक स्मारक है जो विश्व युद्ध के दौरान विदेशी भूमि की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों की स्मृति का सम्मान करता है। पीएम मोदी ने वहां पहुंचने के बाद सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि मार्सिले पहुंचा हूं। भारत के स्वतंत्रता के संघर्ष में यह शहर विशेष महत्व रखता है। यहीं पर महान वीर सावरकर ने भाग निकलने का साहसिक प्रयास किया था। उन्होंने कहा कि मैं मार्सिले के लोगों और उस समय के फ्रांसीसी कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मांग की थी कि उन्हें ब्रिटिश हिरासत में नहीं सौंपा जाए। वीर सावरकर की बहादुरी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
प्रथम विश्व युद्ध में बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि, वीर सावरकर का जिक्र कर मार्सिले में पीएम मोदी ने क्या कहा?
एक्स पर लिखे पोस्ट में मोदी ने कहा कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और मैं कुछ देर पहले मार्सिले पहुंचे हैं। इस यात्रा में भारत और फ्रांस को और करीब लाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण कार्यक्रम होंगे। जिस भारतीय वाणिज्य दूतावास का उद्घाटन किया जा रहा है, उससे लोगों के बीच आपसी संबंध और मजबूत होंगे। मैं प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि भी अर्पित करूंगा। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर ने आठ जुलाई, 1910 को अग्रेजों की कैद से भागने का प्रयास किया था, जब उन्हें मुकदमे के लिए ब्रिटिश जहाज मोरिया से भारत लाया जा रहा था।
इस बंदरगाह शहर का भारत के स्वतंत्रता संग्राम से एक महत्वपूर्ण संबंध है। प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर या वीर सावरकर ने 8 जुलाई, 1910 को भागने का साहसपूर्ण प्रयास किया, जब उन्हें परीक्षण के लिए ब्रिटिश जहाज मोरिया पर भारत ले जाया जा रहा था। जैक्सन केस से मिले सुराग से ब्रिटिश पुलिस सावरकर के दरवाजे तक पहुंच गई। तब सावरकर लंदन में कानून पढ़ रहे थ। पुलिस ने 13 मार्च 1910 को उन्हें लंदन रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया गया. सुनवाई हुई। मजिस्ट्रेट ने उन्हें ब्रिटेन से बंबई भेजने का आदेश दिया। 1 जुलाई 1910 को सावरकर इसी सफर पर रवाना होने के लिए ब्रिटिश जहाज एस एस मोरिया पर सवार हुए। 8 जुलाई 1910 की सुबह उन्होंने पहरेदारी में खड़े सिपाहियों से शौच जाने की अनुमति मांगी। सावरकर को शौचालय में बंदकर दरवाजे पर दो सिपाही खड़े हो गए। इसी बीच सावरकर ने पोर्ट होल का शीशा तोड़कर मुक्ति की उत्कट अभिलाषा लिए समु्द्र में छलांग लगा दी। सावरकर को जैसे ही मार्सिले शहर दिखा। वे पैर-हाथ जोर जोर से चलाने लगे। अंततः फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा पकड़े जाने से पहले भाग गया और फिर जहाज पर अंग्रेजों को सौंप दिया गया। सावरकर के भागने के प्रयास से फ्रांस और ब्रिटेन के बीच राजनयिक तनाव पैदा हो गया।
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