भारत में अवैध घुसपैठ का मुद्दा लंबे समय से राष्ट्रीय राजनीति, सुरक्षा और सामाजिक समीकरणों का केंद्र रहा है। पूर्वोत्तर और पूर्वी सीमाओं से लगातार हो रही अवैध आवाजाही को कई विशेषज्ञ प्रशासनिक विफलता, कमजोर सीमा प्रबंधन और भ्रष्टाचार का नतीजा बताते हैं। हाल के सप्ताहों में यह बहस एक बार फिर गहरा गई है, जब मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के शुरू होने के बाद कई राज्यों से यह खबरें आने लगीं कि अवैध प्रवासी अपना सामान लेकर सीमा की ओर लौट रहे हैं।
कुछ राजनीतिक दलों ने इस दृश्य को अपनी “जीत” के रूप में पेश किया, लेकिन मूल प्रश्न बरकरार है कि क्या घुसपैठियों से निपटने का एकमात्र उपाय एसआईआर ही है? देखा जाये तो घुसपैठ कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि दशकों से चली आ रही संस्थागत और प्रशासनिक कमजोरी का परिणाम है। साथ ही, भ्रष्टाचार को अभी तक जघन्य अपराध की श्रेणी में न रखना भी इस समस्या को और गहरा करता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि घुसपैठ पर रोक लगानी है, तो केवल एसआईआर नहीं, बल्कि मजबूत सीमा प्रबंधन, सख्त कानून और भ्रष्टाचार पर निर्णायक कार्रवाई जरूरी है—वरना बाकी सब केवल राजनीतिक शोर ही रह जाएगा।
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इसी बहस के बीच, एक और चिंताजनक मुद्दा सामने आया है— बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) की आत्महत्याएँ। विपक्ष का आरोप है कि एसआईआर के दबाव, प्रशासनिक बोझ और चुनाव आयोग की कार्यशैली के कारण ऐसी घटनाएँ बढ़ रही हैं। यह सवाल चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और मानवीय पहलुओं पर नए सिरे से विचार की मांग करता है।
दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल के हकीमपुर और उत्तर 24 परगना ज़िले के सीमावर्ती इलाकों में पिछले दिनों जिस तरह से दर्जनों लोग छोटे बैग और बच्चों को लेकर बांग्लादेश की ओर जाते दिखाई दिए, उसने राजनीतिक तापमान और बढ़ा दिया है। बीएसएफ अधिकारियों के मुताबिक, नवंबर की शुरुआत से अब तक 1,700 से अधिक लोग सीमा पार कर चुके हैं, जबकि रोज़ाना 150–200 लोगों के लौटने की खबरें आ रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि एसआईआर शुरू होने के बाद यह गतिविधि तेज हुई है।
भाजपा इसे अपनी लंबे समय से चली आ रही बात का प्रमाण बता रही है कि अवैध घुसपैठ ने राज्य की जनसांख्यिकी और चुनावी गणित को बदल दिया है। भाजपा नेता समिक भट्टाचार्य का कहना है, “एसआईआर ने घुसपैठियों को हिला दिया है। वे डर के कारण लौट रहे हैं।” पार्टी का दावा है कि मतदाता सूची से हजारों फर्जी नाम हटने से उनका आरोप और मजबूत होता है।
वहीं तृणमूल कांग्रेस इसे पूरी तरह राजनीति प्रेरित नाटक करार दे रही है। टीएमसी नेताओं का आरोप है कि 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा और कुछ एजेंसियाँ मिलकर एक ऐसा विमर्श गढ़ने में लगी हैं, जिससे एसआईआर की प्रक्रिया को वैध और राजनीतिक रूप से उपयोगी साबित किया जा सके। टीएमसी प्रवक्ताओं ने यह भी सवाल उठाया कि यदि ये लोग सच में अवैध प्रवासी थे, तो कोई गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई और दलालों के खिलाफ कार्रवाई कहाँ है?
दोनों पक्षों के आरोप-प्रत्यारोप ने सीमा चौकियों को एक प्रकार के “वैचारिक युद्धक्षेत्र” में बदल दिया है, जहाँ संख्या से अधिक दृश्य मायने रखने लगे हैं क्योंकि राजनीतिक विमर्श में तस्वीरें और प्रतीक अक्सर तथ्य से ज्यादा तेज़ी से असर डालते हैं।
बहरहाल, समाधान का रास्ता राजनीतिक शोर में नहीं, नीति और प्रशासन में है। अवैध घुसपैठ का प्रश्न केवल चुनावी मुद्दा नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक संतुलन और प्रशासनिक क्षमता की कसौटी है। एसआईआर एक साधन हो सकता है, समाधान नहीं। असली ज़रूरत है- सीमाओं पर तकनीक-आधारित निगरानी, भ्रष्टाचार पर कड़ी कानूनी कार्रवाई, पड़ोसी देशों के साथ ठोस राजनयिक सहयोग और स्थानीय प्रशासन का जवाबदेह ढांचा। साथ ही जब तक भ्रष्टाचार के मूल कारणों पर चोट नहीं की जाएगी, तब तक घुसपैठ, राजनीति और आरोपों का यह चक्र चलता रहेगा और समस्याएँ जस की तस बनी रहेंगी।

