भाजपा के वरिष्ठ नेता कवींद्र गुप्ता ने आज केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के नए उपराज्यपाल के रूप में शपथ ली। लेह में स्थित लद्दाख राज निवास में आयोजित एक समारोह में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण पल्ली ने कवींद्र गुप्ता को पद की शपथ दिलाई। इससे पहले, मुख्य सचिव पवन कोतवाल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा कवींद्र गुप्ता की नियुक्ति किए जाने से संबंधित पत्र पढ़ा। हम आपको बता दें कि कवींद्र गुप्ता केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के तीसरे उपराज्यपाल हैं। उन्होंने ब्रिगेडियर बीडी मिश्रा का स्थान लिया है। कवींद्र गुप्ता इससे पहले सरकार और भाजपा में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं।
वह अप्रैल 2018 में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली भाजपा-पीडीपी सरकार में 51 दिन तक जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री रहे थे। महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली सरकार से भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद कवींद्र गुप्ता ने पद छोड़ दिया था। जम्मू शहर के जानीपुर क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले 66 वर्षीय कवींद्र गुप्ता ने 2005 से 2010 तक लगातार तीन बार जम्मू के महापौर के रूप में कार्य किया था। उन्होंने भाजपा की राज्य इकाई के महासचिव के रूप में कार्य किया और 1993 से 1998 तक लगातार दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा (बीजेवाईएम) की जम्मू-कश्मीर इकाई का नेतृत्व किया। कवींद्र गुप्ता 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तत्कालीन मंत्री रमन भल्ला को हराकर गांधी नगर निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार विधायक चुने गए थे। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी-भाजपा गठबंधन की जीत के बाद कवींद्र गुप्ता सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुने गए थे। इससे पहले विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के सचिव रह चुके कवींद्र गुप्ता ने आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता के रूप में लगभग 13 महीने जेल में बिताए थे।
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अब जब कवींद्र गुप्ता उपराज्यपाल बन गये हैं तो उनके समक्ष खड़ी चुनौतियों पर भी नजर डालनी चाहिए। हम आपको बता दें कि लद्दाख के युवा और स्थानीय जनजातीय संगठन लंबे समय से शिकायत कर रहे हैं कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद स्थानीय रोजगार के अवसर कम हुए हैं। नौकरी में स्थानीयों को प्राथमिकता, स्थायी निवासी प्रमाणपत्र और निजी क्षेत्र में रोजगार को लेकर व्यापक नाराजगी है। LAHDC (लेह और कारगिल हिल काउंसिल) और स्टूडेंट यूनियनों की मांगों का हल निकालना कविन्द्र गुप्ता के लिए बड़ी प्राथमिकता होगी।
इसके अलावा, लद्दाख में छठी अनुसूची के तहत जनजातीय अधिकारों और भूमि संरक्षण की मांग लगातार उठती रही है। लेह और कारगिल के संगठन चाहते हैं कि उनकी भूमि, भाषा और सांस्कृतिक पहचान को संवैधानिक संरक्षण मिले। इस पर कोई संतुलित और व्यावहारिक समाधान निकालना बड़ी चुनौती होगी, ताकि स्थानीय नाराजगी और अलगाव की भावना न बढ़े। हम आपको बता दें कि लद्दाख का पारिस्थितिक तंत्र बेहद नाजुक है। पर्यटन, सेना के निर्माण कार्य और हाइड्रो प्रोजेक्ट जैसी योजनाओं के चलते पर्यावरण पर दवाब बढ़ रहा है। ग्लेशियर पिघलाव, जल संकट और प्राकृतिक आपदा लद्दाख के सामने बड़ा संकट हैं। उपराज्यपाल को विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधने वाली दीर्घकालिक नीति तैयार करनी होगी।
इसके अलावा, लद्दाख चीन के साथ सीधी सीमा साझा करता है। गलवान घाटी जैसी घटनाएं अभी हाल की यादें हैं। चीन की गतिविधियों पर सतर्क रहते हुए, स्थानीय लोगों में विश्वास और राष्ट्र के प्रति विश्वास मजबूत रखना एक राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौती है। सेना और सिविल प्रशासन के बीच बेहतर तालमेल भी ज़रूरी है।
इसके अलावा, लद्दाख में लेह और करगिल के बीच राजनीतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण एक पुराना मुद्दा रहा है। करगिल में शिया मुस्लिम बहुल आबादी है, जबकि लेह में बौद्ध और हिन्दू अधिक हैं। विकास योजनाओं, निवेश और नियुक्तियों में संतुलन न बना तो यह असंतोष को और गहरा सकता है। कवींद्र गुप्ता के लिए दोनों क्षेत्रों में विश्वास कायम करना कठिन कार्य होगा।
हम आपको बता दें कि लद्दाख में अभी विधानसभा नहीं है, केवल हिल काउंसिल जैसी संस्थाएं हैं। स्थानीय लोग लंबे समय से विधानसभा जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी आवाज सीधे दिल्ली तक पहुंचे। कविन्द्र गुप्ता को इस पर केंद्र और स्थानीय संगठनों के बीच सेतु की भूमिका निभानी होगी।
इसके अलावा, लद्दाख पर्यटन पर निर्भर है, लेकिन सुविधाओं का विस्तार अभी बहुत सीमित है। सड़क, एयर कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य सुविधाएं, इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में तेजी से काम करना होगा। साथ ही पर्यटन को पर्यावरण के अनुकूल और स्थानीय रोजगार के लिए उपयोगी बनाना होगा।
देखा जाये तो कविन्द्र गुप्ता के लिए लद्दाख की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासकीय काम से कहीं आगे है। यहां हर कदम जनजातीय अधिकार, सामरिक सुरक्षा, पर्यावरण, और आंतरिक संतुलन से जुड़ा है। उनकी राजनीतिक समझ और केंद्र के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंधों के आधार पर ही यह तय होगा कि लद्दाख आने वाले वर्षों में स्थिर और संतुलित विकास के रास्ते पर जा सकेगा या नहीं। इसलिए जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी कहा है कि कवींद्र गुप्ता को संतुलन बनाकर चलना होगा।