नई दिल्ली। सनातन धर्म में माघ महीने का विशेष महत्व माना जाता है। इस पावन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक गुप्त नवरात्रि का आयोजन किया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।
विशेष रूप से, जो साधक गुप्त साधना करते हैं, वे दस महाविद्या की देवियों की आराधना करते हैं। इनमें से मां बगलामुखी की साधना को अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है, जिससे साधक को अखंड सफलता और मनोकामना सिद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आइए जानते हैं गुप्त नवरात्रि की अष्टमी तिथि का शुभ मुहूर्त, विशेष योग और पूजा विधि।
अष्टमी तिथि का शुभ मुहूर्त (Magh Gupt Navratri Ashtami Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार:
- अष्टमी तिथि प्रारंभ: 5 फरवरी 2024 को रात 02:30 बजे
- अष्टमी तिथि समाप्त: 6 फरवरी 2024 को रात 12:35 बजे
निशिता काल में मां दुर्गा की पूजा करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
5 फरवरी को माघ गुप्त नवरात्रि की अष्टमी तिथि के दौरान देवी की आराधना करने से विशेष फल प्राप्त होगा।
मासिक दुर्गा अष्टमी पर विशेष योग (Masik Durga Ashtami Shubh Yog)
ब्रह्म योग और शुक्ल योग का संयोग: इस दिन ब्रह्म और शुक्ल योग का संयोग बन रहा है, जो देवी पूजा को अत्यधिक शुभ बनाता है।
भद्रावास योग: इस दिन भद्रा स्वर्ग लोक में रहेगी, जिससे यह योग और भी मंगलकारी बन जाएगा।
इन विशेष योगों में मां दुर्गा की पूजा करने से साधकों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
पंचांग के अनुसार प्रमुख मुहूर्त (Magh Navratri Ashtami Panchang & Muhurat)
मुहूर्त | समय |
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सूर्योदय | सुबह 07:07 बजे |
सूर्यास्त | शाम 06:04 बजे |
चंद्रोदय | सुबह 11:20 बजे |
चंद्रास्त | रात 01:30 बजे |
ब्रह्म मुहूर्त | सुबह 05:22 से 06:15 बजे तक |
विजय मुहूर्त | दोपहर 02:25 से 03:09 बजे तक |
गोधूलि मुहूर्त | शाम 06:01 से 06:27 बजे तक |
निशिता मुहूर्त | रात 12:09 से 01:01 बजे तक |
गुप्त नवरात्रि अष्टमी पूजा विधि (Gupt Navratri Ashtami Puja Vidhi)
ब्राह्म मुहूर्त में उठें और मां दुर्गा का ध्यान करें।
घर की साफ-सफाई कर स्नान करें और गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
लाल वस्त्र धारण करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें।
पूजा स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
पंचोपचार विधि से पूजा करें—
- दीप प्रज्वलित करें
- अक्षत (चावल) चढ़ाएं
- पुष्प अर्पित करें
- फल, हलवा, पूरी, श्रीफल और मिठाई का भोग लगाएं
दुर्गा चालीसा का पाठ करें और मंत्र जाप करें।
दुर्गा आरती के साथ पूजा का समापन करें।
संध्या आरती के बाद फलाहार करें।