यूरोपीय संघ (ईयू) ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध को लेकर रूस पर नए प्रतिबंधों की घोषणा की है। इसमें भारत की वाडिनार स्थित नायरा एनर्जी रिफाइनरी का भी नाम शामिल है, जिसमें रूसी ऊर्जा कंपनी रोसनेफ्ट की बड़ी हिस्सेदारी है। देखा जाये तो नायरा एनर्जी पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध कंपनी के लिए तो झटका साबित होंगे ही साथ ही रूसी तेल से बने ईंधन पर प्रतिबंध रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के लिए भी चुनौती बनेंगे क्योंकि दोनों कंपनियों पर यूरोपीय संघ से बाहर होने का खतरा मंडरा रहा है। इस कदम से रूसी ऊर्जा दिग्गज रोसनेफ्ट की नायरा में अपनी 49% हिस्सेदारी बेचने की कथित योजना भी जटिल हो गई है। हम आपको बता दें कि आरआईएल और नायरा भारत के दो शीर्ष ईंधन निर्यातक हैं।
देखा जाये तो यूरोपीय संघ (EU) का 18वां प्रतिबंध पैकेज सीधे तौर पर रूस के ऊर्जा क्षेत्र को कमजोर करने के प्रयास का हिस्सा है। हम आपको बता दें कि यह वही समय है जब अमेरिकी संसद रूसी कच्चे तेल के खरीदार देशों पर और सख्त प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है, जिनमें भारत, चीन और ब्राज़ील का नाम विशेष रूप से लिया गया है। हम आपको बता दें कि नायरा एनर्जी, जो पहले एस्सार ऑयल लिमिटेड के नाम से जानी जाती थी, गुजरात के वडिनार में स्थित है और यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी रिफाइनरी मानी जाती है। यह प्रतिदिन 4 लाख बैरल तेल प्रोसेस करती है और इसके देशभर में 6300 से ज्यादा पेट्रोल पंप हैं। रूसी सरकारी तेल कंपनी रोजनेफ्ट (Rosneft) की इसमें 49.13% हिस्सेदारी है, जबकि बाकी हिस्सेदारी केसानी इंटरप्राइजेज और अन्य निवेशकों के पास है। यूरोपीय संघ ने इसे रूस की सैन्य और आर्थिक मशीनरी से जुड़ा मानते हुए प्रतिबंधित किया है।
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प्रतिबंधों की प्रमुख बातों पर गौर करें तो आपको बता दें कि नायरा एनर्जी रिफाइनरी पर पूरी तरह के प्रतिबंध लागू होंगे, जिनमें यात्रा प्रतिबंध, संपत्ति फ्रीज और संसाधन प्राप्ति पर रोक शामिल है। यूरोपीय संघ ने रूस से बने पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही रूसी कच्चे तेल की कीमत की अधिकतम सीमा घटाकर 47.6 डॉलर प्रति बैरल कर दी गई है, जो पहले 60 डॉलर थी। इसके अलावा, नॉर्ड स्ट्रीम 1 और 2 जैसी गैस पाइपलाइनों पर लेनदेन पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है।
वहीं, भारत ने इस प्रकार के प्रतिबंधों पर ‘दोहरा मापदंड’ अपनाने का आरोप लगाया है। भारत का तर्क है कि जब यूरोप स्वयं वर्षों तक रूस से सस्ती गैस और तेल लेता रहा, तब विकासशील देशों पर इस तरह का दबाव न्यायसंगत नहीं है। भारत पहले भी कह चुका है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए विकल्पों की आज़ादी बनाए रखेगा। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत किसी भी एकतरफा प्रतिबंध उपायों का समर्थन नहीं करता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हमने यूरोपीय संघ द्वारा घोषित नवीनतम प्रतिबंधों पर गौर किया है। उन्होंने कहा कि भारत एक ‘‘जिम्मेदार’’ देश है और अपने कानूनी दायित्वों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत सरकार अपने नागरिकों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए ऊर्जा सुरक्षा के प्रावधान को बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मानती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम इस बात पर जोर देंगे कि दोहरे मापदंड नहीं होने चाहिए, खासकर जब ऊर्जा व्यापार की बात हो।”
हम आपको यह भी बता दें कि भारत ने रूस से कच्चे तेल की आपूर्ति पर अमेरिकी प्रतिबंध लगने की आशंका को भी ज्यादा महत्व नहीं देते हुए कहा है कि उसे अपने तेल आयात की जरूरतों को वैकल्पिक स्रोतों से पूरा करने का भरोसा है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने दो दिन पहले ही कहा था कि दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक भारत, रूस से तेल की आपूर्ति में किसी भी तरह की बाधा से निपटने के लिए अन्य देशों से तेल खरीद सकता है। पुरी ने रूस पर संभावित अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभाव को लेकर पूछे गए सवाल पर कहा था, ‘‘मेरे दिमाग में इसे लेकर किसी तरह का दबाव नहीं है। भारत के तेल आपूर्ति के स्रोतों में अब विविधता आ चुकी है। हम पहले 27 देशों से तेल खरीदते थे, अब यह संख्या बढ़कर लगभग 40 हो गई है।’’
हम आपको बता दें कि यूरोपीय संघ ने इस बार 14 नए व्यक्तियों और 41 नई कंपनियों को प्रतिबंध सूची में जोड़ा है। अब तक यूरोपीय प्रतिबंधों के तहत 2500 से अधिक कंपनियां और संस्थाएं सूचीबद्ध हो चुकी हैं। इसके अलावा, रूस के शैडो फ्लीट (छुपे हुए जहाजों के नेटवर्क) पर भी कड़ा शिकंजा कसा गया है, जिनके जरिए रूसी तेल की गुप्त आपूर्ति होती थी। 105 नए जहाजों पर यूरोपीय बंदरगाहों में प्रवेश और सेवाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस तरह अब कुल प्रतिबंधित जहाजों की संख्या 444 हो गई है।
देखा जाये तो इन प्रतिबंधों के चलते रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों और कंपनियों पर दबाव और बढ़ेगा। विशेषकर भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश जो रूसी तेल के बड़े खरीदार हैं, उन्हें आर्थिक और कूटनीतिक विकल्पों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। भारत के लिए खास चिंता का विषय यह है कि गुजरात की रिफाइनरी पर प्रतिबंध का असर केवल रूस तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि भारत की अपनी ऊर्जा आपूर्ति व्यवस्था और निवेश माहौल पर भी असर पड़ेगा।
बहरहाल, यूरोपीय संघ और अमेरिका की यह रणनीति साफ दिखाती है कि रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए वे अब वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के हर छोर पर दबाव बनाने की नीति अपना चुके हैं। भारत इस पर कूटनीतिक स्तर पर विरोध जरूर दर्ज करा रहा है, लेकिन आने वाले समय में भारत को अपनी ऊर्जा नीति में और अधिक विवेकपूर्ण रणनीति अपनानी होगी ताकि वह अमेरिका और यूरोप के बढ़ते दबाव के बीच संतुलन बनाए रख सके।