कन्हैया कुमार, उमर खालिद और शरजील इमाम ये सारे नाम एक ही दौर में चर्चा में आए थे। ये सारे जेएनयू के छात्र थे। कुछ पढ़ने और कुछ बनने आए थे। लेकिन कहानी कुछ ऐसे पलटी कि कोई कहां और कोई कहां पहुंच गया। संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ साल 2016 में जेएनयू कैंपस में विरोध प्रदर्शन हुआ और उसी में देश विरोधी नारे लगने के आरोप में ऐसा हंगामा शुरू हुआ कि आज तक खत्म नहीं हुआ है। तब ये चेहरे बीजेपी विरोधियों के हीरो और बीजेपी समर्थकों के लिए विलेन बने। कन्हैया कुमार, उमर खालिद समेत कई जेएनयू के छात्र जेल में डाल दिए गए और बाद में जमानत पर बेल पर रिहा भी हुए। जेएनयू विवाद से कन्हैया कुमार के राजनीति में आने का रास्ता भी खुला। लेकिन उमर खालिद का नाम लगातार बड़े विवाद, हिंसा की घटनाओं और देश विरोधी साजिशों में आता रहा। उमर खालिद का एजेकुशन बॉयोडेटा जितना हैवी है उससे ज्यादा उनके आरोपों की फाइल हैवी हो चुकी है। झारखंड के आदिवासी पर पीएचडी की पढ़ाई के दौरान ही डेमेक्रेटिक स्टूडेंट के नेता बने खालिद सीएए एनआरसी के विरोध प्रदर्शन में शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन में भी शामिल हुए। फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों में 53 लोगों की जान चली गई और 700 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए। सितंबर 2020 में उमर खालिद को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया। उन पर दंगा भड़काने, साजिश रचने और भड़काने का आरोप लगा।
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आतंकवादी विरोधी कानून यूएपीए में उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। तब से अभी तक उमर खालिद की रिहाई नहीं हुई है। उमर खालिद के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज हुई थी। एक में उन्हें जमानत मिल गई थी जबकि दूसरे यूएपीए में सुनवाई पूरी नहीं हुई है। 1600 दिनों से उमर खालिद जेल में बंद है। समाज का एक वर्ग उमर खालिद के प्रति सहानुभूति दिखा रहा है। मोदी सरकार से लड़ने वाले एक हीरो की तरह पेश कर रहा है। पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों उमर खालिद केरिहाई का प्रेशर बनाने के लिए कैंपेन चल रहा है। 30 जनवरी को महात्मा गांधी के पुण्यतिथि से जुड़कर एक सौ साठ शिक्षाविदों, कलाकारों और कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को एक बयान जारी कर नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए गिरफ्तार किए गए छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद समेत अन्य लोगों की रिहाई की मांग की। हस्ताक्षरकर्ताओं में लेखक अमिताव घोष, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री जयति घोष, शांति कार्यकर्ता हर्ष मंदर और राजनीतिक वैज्ञानिक क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट शामिल थे। खालिद ने दिल्ली की तिहाड़ जेल में 1,600 दिन बिताए हैं।
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हस्ताक्षरकर्ताओं ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत खालिद को लंबे समय तक कैद में रखने की आलोचना करते हुए कहा कि हम यह देखकर बहुत परेशान हैं कि उमर जैसे प्रतिभाशाली और दयालु युवा, जिसे एक इतिहासकार के रूप में प्रशिक्षित किया गया है और एक महत्वपूर्ण विचारक के रूप में पोषित किया गया है, को बार-बार निशाना बनाया गया है। सत्तावादी शासन द्वारा तिरस्कृत और कलंकित किया गया। खालिद को फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के सिलसिले में 13 सितंबर, 2020 को गिरफ्तार किया गया था, जिसमें 53 लोग मारे गए थे। मारे गए लोगों में अधिकतर मुसलमान थे।