Sunday, December 28, 2025
spot_img
Homeराष्ट्रीयअमेरिका-यूरोप के दबाव के बीच भारत ने निकाला ‘बीच का रास्ता', जयशंकर...

अमेरिका-यूरोप के दबाव के बीच भारत ने निकाला ‘बीच का रास्ता’, जयशंकर बोले- किसी भी प्रकार के दबाव को स्वीकार नहीं करेंगे

अमेरिका और यूरोप का दबाव बढ़ रहा है कि भारत रूस से दूरी बनाए और यूक्रेन संघर्ष पर पश्चिमी रुख का समर्थन करे। दूसरी ओर, रूस भारत का दशकों पुराना मित्र और ऊर्जा साझेदार है, जिससे भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का बड़ा हिस्सा पूरा करता है। ऐसे में भारत के सामने एक कठिन संतुलन साधने की चुनौती है। देखा जाये तो भारत की विदेश नीति की असली ताक़त यह है कि वह सीधे टकराव से बचते हुए अपने हितों की रक्षा करता है। यही कारण है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि भारत किसी भी संघर्ष का हिस्सा नहीं बनेगा और संवाद व कूटनीति ही समाधान का रास्ता है। प्रधानमंत्री मोदी भी राष्ट्रपति पुतिन से लेकर पश्चिमी नेताओं तक, सबको यही संदेश देते आए हैं कि “युद्ध का समय नहीं है।” देखा जाये तो भारत का यह संतुलन दोहरी कूटनीति नहीं बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता है। यही “बीच का रास्ता” भारत को न केवल अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाता है बल्कि उसे एक संभावित वैश्विक मध्यस्थ के रूप में भी स्थापित करता है।
आज की दुनिया में जहां महाशक्तियाँ अपने-अपने खेमों में बंटी हुई हैं, वहाँ भारत का यह संतुलित रुख ही उसकी सबसे बड़ी पूँजी है। आने वाले समय में यही नीति भारत को विश्व राजनीति में और मज़बूत स्थान दिलाएगी। इसी बीच, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक बार फिर दुनिया को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि भारत अपनी विदेश नीति में किसी भी प्रकार के दबाव को स्वीकार करने वाला देश नहीं है। उनका बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका टैरिफ़ की राजनीति से वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला रहा है और चीन के साथ संबंधों को लेकर भारत एक नये संतुलन की तलाश में है। जयशंकर ने साफ कहा कि आज की दुनिया व्यापक और गहरे बदलावों से गुजर रही है, और इन बदलावों के बीच भारत अपनी नीति स्वतंत्र रूप से तय करेगा।

इसे भी पढ़ें: आप पर भरोसा करते हैं, जयशंकर ने मांगा जर्मनी के विदेश मंत्री का समर्थन, क्या ये मुलाकात भविष्य की तैयारी है ?

जर्मनी के विदेश मंत्री योहान वेडेफुल के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में जयशंकर ने वैश्विक परिदृश्य की अस्थिरता का जिक्र करते हुए भारत, जर्मनी और यूरोपीय संघ (EU) के बीच और अधिक निकट सहयोग की वकालत की। दिलचस्प यह है कि उनका यह वक्तव्य अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर तीखा प्रहार माना जा रहा है, जिन्होंने हाल ही में भारत की अर्थव्यवस्था को “मृत” बताया था और बार-बार विरोधाभासी टैरिफ़ आदेशों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार को संकट में डाला है।
दूसरी ओर, जर्मन विदेश मंत्री ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर अपना दृष्टिकोण सामने रखते हुए कहा कि पश्चिमी देशों की एकमात्र मांग यह है कि हथियारों की आवाज़ बंद हो। उनका सीधा आरोप था कि अमेरिकी राष्ट्रपति के “भारी प्रयासों” के बावजूद रूस वार्ता की मेज पर आने को तैयार नहीं है, जबकि यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की तत्परता दिखा चुके हैं। वेडेफुल का यह रुख यूरोप की हताशा को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह भी बताता है कि यूरोप रूस पर और कड़ा दबाव बनाने के लिए नए प्रतिबंधों की तैयारी में है।
यह यात्रा केवल सामरिक या राजनीतिक संवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका आर्थिक पहलू भी उतना ही अहम है। जर्मन मंत्री भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से भी मिले और दोनों देशों के बीच व्यापार व निवेश को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की संभावनाओं पर चर्चा की। मगर इसके बीच छिपा हुआ संदेश यह भी है कि यूरोपीय संघ रूस के व्यापारिक साझेदारों, विशेषकर भारत, पर द्वितीयक प्रतिबंध लगाने का मन बना रहा है। यदि यह लागू हुआ, तो भारत-रूस ऊर्जा सहयोग सीधे संकट में पड़ सकता है।
यहीं भारत के सामने असली चुनौती खड़ी होती है। एक ओर ऊर्जा सुरक्षा है, जो भारत की विकास यात्रा के लिए अनिवार्य है। दूसरी ओर अमेरिका और यूरोप जैसे साझेदार देशों की उम्मीदें हैं, जो चाहते हैं कि भारत रूस से दूरी बनाए। लेकिन भारत अब तक बेहद संतुलित नीति पर चलता आया है— न युद्ध का हिस्सा बनना, न किसी पक्ष का मोहरा बनना। यही कारण है कि जयशंकर बार-बार यह दोहराते हैं कि भारत को अनुचित रूप से निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए।
देखा जाये तो यूरोप युद्धविराम की बात करता है, रूस अपनी शर्तों पर अड़ा है और अमेरिका प्रतिबंधों की राजनीति खेल रहा है। इस उथल-पुथल के बीच भारत का स्थान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत ही वह देश है जो सभी पक्षों से संवाद बनाए हुए है और वैश्विक राजनीति में एक संभव मध्यस्थ के रूप में उभर रहा है। जयशंकर का हालिया संदेश इसी रणनीतिक स्वायत्तता का संकेत है—भारत अपने हितों से समझौता किए बिना ही वैश्विक शांति के लिए रचनात्मक भूमिका निभा सकता है।
यदि भारत इस संतुलन को साधने में सफल रहा, तो न केवल अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा करेगा बल्कि एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरेगा जिस पर दुनिया भरोसा कर सके। यही भारत की कूटनीति की असली ताकत है।
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments