Wednesday, December 3, 2025
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अरे तू चुप्प रहअ न.. जादा मुँह मत फाड़अ…, राबड़ी देवी पर नीतीश की तीखी टिप्पणी से भड़कीं लालू की बेटी रोहिणी आचार्य

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू यादव के परिवार के बीच तीखी नोकझोंक लगातार देखने को मिल रही है। नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के बीच की दिनों से वार-पलटवार का दौर जारी है। इसी क्रम में राबड़ी देवी पर नीतीश कुछ ऐसा बोल देते है जो ठीक नहीं लगता है। अब उनकी बेटी रोहिणी आचार्य खुलकर सामने आईं है और नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने भोजपुरी में एक्स पर लिखा कि अरे तू चुप्प रहअ न.. जादा मुँह मत फाड़अ। 
 

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रोहिणी आचार्य ने लिखा कि अरे तू चुप्प रहअ न .. जादा मुँह मत फाड़अ .. तोहरा तअ बोले के मुँह नय हो.. तू ओकरे गोदी में जा बईठलअ जे तोहर डीएनए में खोट बतईल को .. आऊर तू तअ सही हस्बेंडो न बन पईलअ , तू तअ जेकर-तेकर नाम पर ट्रेन चलाबे के फेरा में अपन परिवार नाश लेलअ .. तू तअ जोगाड़ के दम पर कुर्सी पर चमोकन माफिक चिपकल हअ, तीन नंबर के पार्टी के तीन नंबरिया जोगाडू नेता..। रोहिणी ने आगे लिखा कि लाल रंग देख कर सांढ़ भड़क जाता है” ये पहले से सुना और जाना था, मगर आज जाना कि “दिमागी रोगी हरा रंग देख कर भड़क – बौर्रा जाता है ” .. हद है ..। 
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विधान परिषद की नेता राबड़ी देवी के बीच मंगलवार को विधानसभा में आरक्षण के मुद्दे पर फिर तीखी नोकझोंक हुई। गौरतलब है कि नीतीश कुमार की यह नोकझोंक तब हुई जब आरजेडी एमएलसी पार्टी के झंडे के रंग हरे रंग के बैज पहनकर सदन पहुंचे और नारे लगाए कि राज्य में वंचित जातियों के लिए कोटा तेजस्वी सरकार द्वारा बढ़ाया गया था और भाजपा के सत्ता में वापस आने के बाद इसे चुरा लिया गया।
 

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विधान परिषद में मौजूद पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी पर निशाना साधते हुए नीतीश कुमार ने कहा, “यह उनके पति की पार्टी है, उन्हें क्या परवाह है? जब उनके पति (लालू प्रसाद) को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया, तो उन्हें सीएम बना दिया गया। क्या इसका कोई मतलब है? वह आखिर करती क्या हैं? क्या आपने किसी और पार्टी में ऐसा कुछ देखा है?” गौरतलब है कि राबड़ी देवी 1997 में मुख्यमंत्री बनी थीं, जब चारा घोटाले में सीबीआई की चार्जशीट के बाद उनके पति को पद छोड़ना पड़ा था। संयोग से, प्रसाद के पूर्व सहयोगी कुमार ने पिछले साल ही उनसे अलग होकर भाजपा के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी, जिसका समापन 2005 में राजद को उखाड़ फेंकने के साथ हुआ।
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