इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मकानों को ध्वस्त करने के गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के नोटिस के मामले में यथास्थिति बनाए रखने का जीडीए को निर्देश दिया है।
यह आदेश पारित करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ताओं को किसी तीसरे पक्ष का हित करने या विवादित संपत्ति पर कोई विकास करने से भी रोक दिया है।
नरेश कुमार और 18 अन्य लोगों की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने प्रतिवादियों- जिला प्रशासन और जीडीए को पुराने बाशिंदों के पुनर्वास की योजना पेश करने का समय देते हुए अगली सुनवाई की तिथि 22 अगस्त निर्धारित की है।
पीठ ने 31 जुलाई के आदेश में कहा, “इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हम यह भी पाते हैं कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता पिछले 40-50 साल से उस स्थान पर काबिज हैं।”
अदालत ने कहा, “इस चरण में हम पाते हैं कि समाज के कमजोर तबके से आने वाले इन बाशिंदों को कुछ राहत दी जानी चाहिए। हम ऐसे लोगों के लिए पुनर्वास की एक योजना तैयार कर उसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का अधिकारियों को निर्देश देते हैं।”
इन याचिकाकर्ताओं ने जीडीए द्वारा उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 की धारा 26-ए के तहत 16 जून 2025 को जारी ध्वस्तीकरण का नोटिस रद्द करने के लिए यह रिट याचिका दायर की है।
जीडीए ने शुरुआत में सार्वजनिक भूमि (पार्क) पर अवैध रूप से काबिज 172 लोगों को छह सितंबर 2024 को नोटिस जारी किया था। यह स्थान महायोजना में शामिल है।
इसके परिणामस्वरूप, 89 लोगों ने अपनी आपत्तियां दाखिल की जिन पर विचार किया गया और अगला आदेश पारित किया गया।
इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता पुराने बाशिंदे हैं और समाज के निचले तबके से आने वाले इन लोगों को यदि किसी पुनर्वास योजना के अभाव में उजाड़ा जाता है तो इन्हें अपूर्णीय क्षति का सामना करना पड़ेगा।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा, “अदालत के पूर्व के आदेश के जवाब में जीडीए ने आज की तिथि तक इन लोगों के पुनर्वास के लिए कोई उपाय नहीं किया है।