Sunday, December 28, 2025
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कश्मीर में आतंकवाद पर दोहरी दबिशः सीमा पर BSF की मोर्चाबंदी, अंदर जंगलों में सेना ने की आतंकियों की घेराबंदी

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों ने एक बार फिर दोहरी मोर्चेबंदी तेज कर दी है। एक ओर नियंत्रण रेखा (LoC) पर बीएसएफ और सेना ने निगरानी के नए आयाम गढ़े हैं, वहीं दूसरी ओर अनंतनाग के घने जंगलों में सुरक्षाबल आतंकियों की धरपकड़ के लिए ज़मीन खंगाल रहे हैं। दोनों कार्रवाइयाँ इस संकेत की तरह हैं कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान अब कश्मीर में आतंकवाद की शेष बची जड़ों को भी उखाड़ फेंकने के मूड में हैं।
हम आपको बता दें कि अनंतनाग जिले के कोकेरनाग इलाके के अहलान-गडोले क्षेत्र में पिछले दो दिनों से सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ का संयुक्त तलाशी अभियान जारी है। खुफिया सूचना के मुताबिक, आतंकवादियों का एक समूह इस घने, पहाड़ी इलाके में छिपा है। यह वही इलाका है जहाँ अगस्त 2024 और सितंबर 2023 में दो बड़ी मुठभेड़ें हुई थीं— जिनमें चार वरिष्ठ सुरक्षाकर्मियों समेत कई जवानों ने प्राण न्योछावर किए थे। इन घटनाओं के बाद यह इलाका ‘दक्षिण कश्मीर के नए आतंक केंद्र’ के रूप में चिन्हित किया गया।
अधिकारियों के अनुसार, तलाशी अभियान में अत्याधुनिक ड्रोन, हैंडहेल्ड थर्मल स्कैनर और सैटेलाइट समन्वय का इस्तेमाल हो रहा है। सुरक्षा बलों का कहना है कि पिछले एक वर्ष में स्थानीय स्तर पर आतंकवाद की नई भर्ती में कमी आई है, लेकिन जंगलों और पहाड़ी इलाकों में छिपे विदेशी आतंकियों की मौजूदगी अब भी चुनौती बनी हुई है।
इसी बीच, बीएसएफ कश्मीर फ्रंटियर के महानिरीक्षक अशोक यादव ने बताया है कि नियंत्रण रेखा पर आतंकियों की घुसपैठ की कोशिशें लगभग निष्फल हो चुकी हैं। उन्होंने कहा, “हमने सतर्कता और आधुनिक निगरानी उपकरणों जैसे- सेंसर, नाइट-विज़न कैमरे और मल्टी-लेयर इलेक्ट्रॉनिक फेंसिंग के ज़रिए नियंत्रण रेखा पर ऐसा प्रभुत्व बनाया है कि दुश्मन पार नहीं घुस पा रहा है।” उनके अनुसार, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित 100 से 120 विदेशी आतंकी अब भी ‘लॉन्च पैड्स’ पर सक्रिय हैं, लेकिन भारतीय निगरानी व्यवस्था ने उनके लिए दरवाज़े लगभग बंद कर दिए हैं। बीएसएफ का दावा है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद नियंत्रण रेखा के पूरे कश्मीर फ्रंट पर भारत ने ‘डॉमिनेंस पोज़ीशन’ हासिल कर ली है।
देखा जाये तो यह दोहरी कार्रवाई यानि सीमा पर रोकथाम और भीतर की सफाई, कश्मीर नीति के उस निर्णायक चरण को दर्शाती है जहाँ सुरक्षा बल सिर्फ़ ‘प्रतिक्रिया’ नहीं दे रहे, बल्कि ‘प्रारंभिक पहल’ कर रहे हैं। यह कश्मीर में आतंकवाद विरोधी रणनीति की परिपक्वता का दौर है। पहले जहाँ हर आतंकी घटना के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी और सीमित जवाबी कार्रवाई होती थी, वहीं अब फोकस है सतत निगरानी, स्थानीय खुफिया नेटवर्क और त्वरित आक्रामकता पर। यह बदलाव तभी संभव हुआ जब ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाइयों ने आतंकवाद समर्थक ढाँचों को भयभीत किया और नियंत्रण रेखा पर सेना का मनोबल नई ऊँचाइयों तक पहुँचा।

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हालाँकि, चेतावनी भी बनी हुई है। खुफिया रिपोर्टें बताती हैं कि इस्लामिक स्टेट और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन आपसी गठजोड़ से नई रणनीति बनाने में जुटे हैं। लेकिन बीएसएफ और सेना के समन्वित रवैये से यह भी स्पष्ट है कि भारत अब किसी भी संभावित आतंकी गठबंधन को जन्म लेने से पहले ही कुचल देने का इरादा रखता है।
वैसे सर्दियाँ आने से पहले की यह सक्रियता कोई सामान्य मौसमी ऑपरेशन नहीं है, बल्कि नए भारत की सुरक्षा सोच का संकेत है— जहाँ घुसपैठ रोकना ही नहीं, बल्कि आतंकवाद की ‘आपूर्ति श्रृंखला’ को पूरी तरह समाप्त करना लक्ष्य है। कश्मीर की घाटियों में अगर अब भी बंदूक की आवाज़ सुनाई देती है, तो उसका जवाब अब कहीं ज़्यादा तेज़ और सटीक गोली से दिया जा रहा है। यही वह “सुरक्षा संतुलन” है जिसने आतंकवाद के लंबे साए को धीरे-धीरे सिमटने पर मजबूर कर दिया है।
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