ट्रम्प प्रशासन ने अपीलीय न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ अपील दायर की है जिसमें ट्रम्प के टैरिफ को अवैध घोषित किया गया था। ट्रम्प प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया हमने हाल ही में यूक्रेन में रूस के युद्ध से जुड़ी राष्ट्रीय आपात स्थिति से निपटने के लिए रूसी ऊर्जा उत्पादों की खरीद हेतु भारत पर टैरिफ लगाने की अनुमति दी है, जो उस युद्धग्रस्त देश में शांति स्थापित करने के हमारे प्रयासों का एक महत्वपूर्ण पहलू है। अमेरिकी सरकार ने उच्चतम न्यायालय से अपील की है कि वह अपीलीय अदालत के उस फैसले को पलट दे, जिसमें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अधिकतर शुल्कों को आपातकालीन शक्तियों से संबंधित एक कानून का गैरकानूनी तरीके से उपयोग करार दिया गया है। यह ट्रंप प्रशासन की अपीलों की शृंखला में ताजा मामला है, जिसे उस उच्चतम न्यायालय में ले जाया गया है जिसे आकार देने में खुद ट्रंप की भूमिका रही है।
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यह याचिका 3 सितंबर की देर रात ऑनलाइन रूप से दायर की गयी और ऐसी उम्मीद है कि इसे बृहस्पतिवार को मामलों की सूची में दर्ज कर लिया जाएगा। अमेरिका के सॉलिसिटर जनरल डी. जॉन सॉअर ने उच्चतम न्यायालय से अपील की है कि इस मामले पर सुनवाई शुरू की जाए और दलीलें नवंबर की शुरुआत में सुनी जाएं। उन्होंने कहा, ‘‘इस फैसले ने उन अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं पर अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर दी है, जिन्हें राष्ट्रपति ने पिछले पांच महीनों से शुल्क के जरिए आगे बढ़ाया है। इससे पहले से तय ढांचागत समझौते और अभी जारी वार्ताएं दोनों ही ख़तरे में पड़ सकती हैं। इस मामले की अहमियत बेहद गंभीर है।
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लिबर्टी जस्टिस सेंटर के वरिष्ठ वकील जेफ़्री श्वाब ने कहा कि ये गैरकानूनी शुल्क छोटे व्यवसायों को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं और उनके अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं। हम अपने ग्राहकों के लिए इस मामले के शीघ्र समाधान की उम्मीद करते हैं। हालांकि, ट्रंप ने इन शुल्कों का इस्तेमाल यूरोपीय संघ, जापान और अन्य देशों पर दबाव बनाने के लिए किया है, ताकि वे नए व्यापार समझौते स्वीकार करें। अगस्त के अंत तक शुल्क से मिली राजस्व राशि 159 अरब डॉलर रही, जो पिछले साल की तुलना में दोगुने से भी ज़्यादा थी। अमेरिकी अपीलीय अदालत के अधिकांश न्यायाधीशों ने माना कि 1977 का ‘इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पॉवर्स एक्ट’ (आईईईपीए) ट्रंप को शुल्क लगाने के लिए संसद की शक्ति हथियाने की अनुमति नहीं देता। असहमति जताने वाले न्यायाधीशों का तर्क था कि यह क़ानून राष्ट्रपति को आपात स्थिति में आयात नियंत्रित करने का अधिकार देता है, भले ही इसमें स्पष्ट सीमाएं न हों।