Monday, December 29, 2025
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क्या है डूरंड रेखा विवाद, जिसको लेकर काबुल से पाकिस्तान पर फतह का आया तालिबानी फरमान

काबुल से पाकिस्तान पर फतह का आया तालिबानी फरमान दे दिया है। इस फरमान का दावा उस नूर अली महसूद ने किया है जो तहरीक एक तालिबान पाकिस्तान का चीफ कमांडर है और मुनीर फौज का सबसे बड़ा दुश्मन है। जिसने बीती रात ही पाकिस्तान के पांच सैनिक मार गिराए हैं। यानी तालिबान ने पाकिस्तानी फौज को एक बार फिर से मारा है। जिसके बाद पाकिस्तान बुरी तरह से बौखला गया है। पाकिस्तान समझ नहीं पा रहा है कि अफगान तालिबान जिसे उसने ही पैदा किया है, उससे कैसे निपटा जाए। पाकिस्तान में लोग अफगान तालिबान को भला बुरा कह रहे हैं। अफगानिस्तान के खिलाफ खुली जंग छेड़ने की धमकी दी जा रही है। लेकिन इसके बावजूद न तो अफगानिस्तान में तालिबान के और न ही पाकिस्तान के अंदर तहरीक ए तालिबान के हौसलों में कोई कमी आई है। तालिबान के नेता और कमांडर लगातार पाकिस्तान को सबक सिखाने की धमकी दे रहे हैं। 

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तालिबान ने अब कितने पाकिस्तानी फौजी मारे? 

पाकिस्तान की सेना ने खुद इस बात की जानकारी दी है कि अफगानिस्तान की तरफ से हुए हमले में पांच पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो गई। पाकिस्तान की सेना के कुछ तालिबान लड़ाकों को मारने का भी दावा किया है। ये झड़पें अफगान सीमा के पास खैबर पख्तूनवा प्रांत में हुई है, जिसे टीटीपी का गढ़ माना जाता है। पाकिस्तानी सेना का दावा है कि अफगानिस्तान से हथियारबंद लड़ाकों ने सीमा पार करने की कोशिश की और इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने उन पर अटैक कर दिया। इसके जवाब में अफगानी लड़ाकों ने पांच पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और बड़ी संख्या में खैबर पख्तूनवा में घुसपैठ कर ली। यानी आने वाले वक्त में पाकिस्तान पर और बड़े हमले होने वाले हैं। 

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पश्तून को विभाजित करने वाली रेखा

अफगानिस्तान और पाकिस्तान की तालिबानी हुकूमत के बीच के रिश्ते अब तक के सबसे खराब दौर में जा पहुंचे हैं। लेकिन दोनों की दुश्मनी की कहानी इतिहास के जड़ों से जुड़ी हैं। डूरंड रेखा रूसी और ब्रिटिश साम्राज्यों के बीच 19वीं शताब्दी के खेल की विरासत है जिसमें अफगानिस्तान को अंग्रेजों द्वारा रूस के विस्तारवाद की भय की वजह से के खिलाफ एक बफर के रूप में इस्तेमाल किया गया था। 12 नवंबर 1893 में अफगान शासक आमिर अब्दुल खान और ब्रिटिश सरकार के सचिव सर मार्टिमर डूरंड ने सरहद हदबंधी के समझौते पर दस्तखत किए। दूसरे अफगान युद्ध की समाप्ति के दो वर्ष बाद 1880 में अब्दुर रहमान राजा बने, जिसमें अंग्रेजों ने कई क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया जो अफगान साम्राज्य का हिस्सा थे। डूरंड के साथ उनके समझौते ने भारत के साथ अफगान “सीमा” पर उनके और ब्रिटिश भारत के “प्रभाव के क्षेत्रों” की सीमाओं का सीमांकन किया। डूरंड्स कर्स: ए लाइन अक्रॉस द पठान हार्ट नामक किताब के लेखर राजीव डोगरा के अनुसार सात-खंड के समझौते ने 2,670 किलोमीटर की रेखा को मान्यता दी। डूरंड ने आमिर के साथ अपनी बातचीत के दौरान अफगानिस्तान के एक छोटे से नक्शे पर खींच दी थी। 2,670 किलोमीटर की रेखा चीन की सीमा से लेकर ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा तक फैली हुई है। इसके खंड 4 में कहा गया है कि “सीमा रेखा” को विस्तार से निर्धारित किया जाएगा और ब्रिटिश और अफगान आयुक्तों द्वारा सीमांकित किया जाएगा। जिसमें स्थानीय गावों के हितों को शामिल करने की भी बात थी। 

वास्तविकता इससे काफी अलग

वास्तव में रेखा पश्तून आदिवासी क्षेत्रों से होकर गुजरती है, जिससे गाँव, परिवार और भूमि का बंटवारा हो जाता है। इसे “घृणा की रेखा”, मनमाना, अतार्किक, क्रूर और पश्तूनों पर एक छल के रूप में वर्णित किया गया है। कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि यह पश्तूनों को विभाजित करने की एक चाल थी ताकि अंग्रेज उन पर आसानी से नियंत्रण रख सकें। इससे वे खाबेर दर्रे को अपने कब्जे में रखना चाहते थे।

अफगान-पाक तनाव

1947 में स्वतंत्रता के साथ भारत-पाक बंटवारा हुआ और उसे डूरंड रेखा विरासत में मिली। इसके साथ ही पश्तून ने रेखा को अस्वीकार कर दिया और अफगानिस्तान द्वारा इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया। 1947 में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के शामिल होने के खिलाफ मतदान करने वाला अफगानिस्तान एकमात्र देश था।

 

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