Sunday, December 28, 2025
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‘खून से तिलक करो गोलियों से आरती’, Kashmir के सरकारी स्कूल में गाये गये आपत्तिजनक गीत का वीडियो वायरल, जाँच के आदेश

जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले के एक सरकारी स्कूल में प्रार्थना सभा के दौरान बच्चों द्वारा “खून से तिलक करो, गोलियों से आरती” जैसे आक्रामक गीत गाए जाने के वीडियो ने पूरे प्रशासन को हिला कर रख दिया है। वायरल वीडियो में एक शिक्षक प्रार्थना सभा का संचालन करते हुए दिखाई दे रहा है, जबकि छह-सात साल के बच्चे यह गीत सामूहिक रूप से गा रहे हैं। सोशल मीडिया पर वीडियो फैलते ही शिक्षा विभाग ने तुरंत संज्ञान लिया और तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है। समिति से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी गई है। साथ ही, जांच पूरी होने तक संबंधित शिक्षक का वेतन रोके जाने के आदेश जारी कर दिए गए हैं।
हम आपको बता दें कि यह कार्रवाई स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता राजा शकील की शिकायत पर की गई, जिन्होंने आरोप लगाया कि छोटे बच्चों को “कट्टरपंथी और हिंसक विचारधारा” से भरे गीत सिखाए जा रहे हैं। इसके बाद मुख्य शिक्षा अधिकारी (सीईओ डोडा), इकबाल हुसैन द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि सरकारी मध्य विद्यालय, सिचल के छात्रों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है जिसमें बच्चे एक ऐसा गीत गा रहे हैं जो नाबालिगों के लिए अनुचित है। इस घटना के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है।

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हम आपको बता दें कि वीडियो में शिक्षक यह कहते हुए सुना जा सकता है कि “आज 6 नवंबर है, और आज से नई कक्षाएं शुरू हुई हैं। बच्चे सुबह की सभा में हैं… जय हिंद, जय भारत।” हम आपको बता दें कि डोडा जिला, जोकि चेनाब घाटी का हिस्सा है, सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। यहाँ लगभग 53% मुस्लिम और 47% हिंदू आबादी निवास करती है। ऐसे में इस घटना ने प्रशासन और समाज दोनों में चिंता की लहर पैदा कर दी है।
देखा जाये तो इस वायरल वीडियो को देखने के बाद मन में कई सवाल उठते हैं। सबसे पहले तो यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं, बल्कि एक स्कूल की वास्तविकता है— जहाँ मासूम बच्चों की सुबह प्रार्थना की बजाय युद्ध के गीत से शुरू हो रही है। “खून से तिलक करो, गोलियों से आरती”, यह कोई देशभक्ति नहीं, यह मानसिक विस्फोट की बीजवपनी है। देशभक्ति का अर्थ रक्तपात नहीं होता। यह मनुष्य को बेहतर नागरिक बनाना सिखाती है, न कि बंदूक की आरती करना। जब शिक्षक, जो बच्चों के मन की पहली पाठशाला होते हैं, हिंसा का भाव गढ़ने लगें तो समाज की दिशा चिंताजनक हो जाती है।
शिक्षा संस्थान वह स्थान हैं जहाँ शब्दों से संस्कार रचे जाते हैं, न कि जहां खून की महिमा गाई जाती है। इस घटना को देखकर लगता है कि शिक्षा व्यवस्था में वैचारिक अराजकता घुसपैठ कर रही है। सबको समझना होगा कि संवेदनशील क्षेत्रों में सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाले प्रतीकों और गीतों का इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है। हालांकि राज्य सरकार का त्वरित संज्ञान सराहनीय है, पर यह केवल एक शिक्षक का मामला नहीं है, यह मानसिकता की बीमारी है जो धीरे-धीरे हमारे समाज में घर कर रही है। अगर बच्चों की सुबह खून और गोलियों से शुरू होगी, तो उनका कल शांति और सह-अस्तित्व से कैसे भरेगा? शिक्षा को विचारधारा की युद्धभूमि नहीं, मानवीय मूल्य का मंदिर बनने देना ही आज की सबसे बड़ी देशभक्ति होगी।
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