Tuesday, July 15, 2025
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गुरु शिष्य के आदर्शतम रिश्ते की मिसाल है गोरक्षपीठ

लखनऊ। भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य के रिश्ते को आदर्श माना जाता रहा है। गुरुकुल की अपनी परंपरा में गुरु एवं शिष्य का एक दूसरे के पर विश्वास, सम्मान और समर्पण इस रिश्ते की बुनियाद रही है। यह रिश्ता केवल शिक्षा एवं ज्ञान तक सीमित नहीं था, बल्कि यह शिष्य के जीवन को दिशा देने, चरित्र निर्माण और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम भी रहा है।
कहा जा सकता है कि एक दूसरे का गुरुत्व बढ़ाना गुरु-शिष्य की श्रेष्ठतम परंपरा है। गुरु का गुरुत्व, शिष्य की श्रद्धा में होता है। यह श्रद्धा गुरु के सशरीर रहने पर तो होती ही है, उनके ब्रह्मलीन होने पर भी शिष्य की श्रद्धा जस की तस रहती है। इसी तरह एक योग्य गुरु भी लगातार अपने शिष्य का गुरुत्व बढ़ाने का प्रयास करता है। इस मायने में गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ की तीन पीढियां खुद में बेमिसाल हैं।
गोरक्षपीठाधीश्वर एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूज्य गुरु ब्रह्मलीन और महंत अवेद्यनाथ (बड़े महराज) का रिश्ता इसकी मिसाल है।

 
गुरु द्वारा जलाए गए लोककल्याण की दीपक को और प्रकाशित कर रहे योगी

बड़े महाराज जितना विश्वास अपने शिष्य और उत्तराधिकारी के रूप में योगी पर करते थे उतना ही योगी का भी अपने गुरु के प्रति समर्पण,सम्मान और श्रद्धा थी । बड़े महाराज योगी के लिए मार्गदर्शक थे।
 
उनके गुरु ने पीठ की परंपरा के अनुसार लोककल्याण को जो दीपक जलाया था शिष्य के रूप में योगी उसे लगातार और प्रकाशित कर रहे हैं। वह भी मुख्यमंत्री के रूप में एक व्यापक फलक पर। पीठ की परंपरा के अनुसार वह लोककल्याण को सर्वोपरि रखते हुए समाज, संस्कृति, सामाजिक समरसता को  समृद्ध कर रहे हैं।

अपने समय में योगी के लिए बड़े महराज का आदेश बीटो जैसा था

अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के प्रति उनकी श्रद्धा कितनी गहरी थी, इसके साक्षी पीठ से जुड़े लोग हैं। अपने समय में ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का आदेश उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ के लिए ‘वीटो पॉवर’ जैसा था। आज भी पद के अनुरूप अपनी तमाम व्यस्तताओं में से समय निकालकर वह जब भी गोरखनाथ मंदिर पहुंचते हैं तो सबसे पहले अपने ब्रह्मलीन गुरुदेव का ही आशीष लेते हैं। यह सिलसिला उनके मठ में रहने तक जारी रहता है। गुरु शिष्य का यही संबंध योगी जी के गुरुदेव और उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ में भी था। 

गुरु पूर्णिमा और साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह में गुरु शिष्य परंपरा की मिसाल बनती है पीठ

हर गुरुपूर्णिमा और सितंबर में गुरुजनों को श्रद्धा निवेदित करने के किए आयोजित साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह के दौरान अपने गुरुओं को पीठ याद करती है। उनके कृतित्व, व्यक्तित्व, सामाजिक सरोकारों, देश के ज्वलंत मुद्दों पर अलग-अलग दिन संत और विद्वत समाज के लोग चर्चा करते हैं। यह एक तरीके से गुरुजनों को याद करने के साथ उनके संकल्पों को पूरा करने की भी प्रतिबद्धता होती है।

खिचड़ी मेला, गुरुपूर्णिमा और अन्य मौकों पर भी दिखती पीठ के प्रति लोगों की श्रद्धा

अलग अलग समय पर भी पूर्वांचल के करोड़ों लोगों की पीठ के प्रति श्रद्धा दिखती भी है। मकर संक्रांति से शुरू होकर करीब एक माह तक चलने वाला खिचड़ी मेला इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। इस दौरान नेपाल, बिहार से लगायत देश भर के लाखों श्रद्धालु गुरु गोरखनाथ को, मौसम की परवाह किए बिना अपनी श्रद्धा निवेदित करने आते हैं। कुछ मन्नत पूरी होने पर आते हैं, कुछ नई मन्नत मांगने भी। गुरु पूर्णिमा के दिन भी जो भी पीठाधीश्वर रहता है, उसके प्रति श्रद्धा निवेदित करने बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इसके अलावा होली के एक दिन पहले और होली के दिन निकलने वाला जुलूस, विजयादशमी की शोभा यात्रा भी ऐसे ही आयोजन हैं। ये आयोजन और इनके प्रति लोगों की अपार श्रद्धा पीठ की सामाजिक समरसता की परंपरा की मिसाल है।
हालांकि गोरक्षपीठ की परंपरा, लोगों को शिष्य बनाने की नहीं है। पर, उत्तर भारत की प्रमुख व प्रभावी पीठ और अपने व्यापक सामाजिक सरोकारों के नाते इस पीठ के प्रति लाखों-करोड़ों लोगों की स्वाभाविक सी श्रद्धा है। गोरखपुर/ पूर्वांचल की तो यह अध्यक्षीय पीठ है। पीठ का हर निर्णय अमूमन हर किसी को स्वीकार्य होता है। खासकर पर्व और त्योहारों के मामले में।

गुरु पूर्णिमा के दिन होने वाले कार्यक्रम 

गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में गोरखनाथ मंदिर में साप्ताहिक श्रीराम कथा का आयोजन 4 जुलाई से शुरू हो चुकी है। कथाव्यास के रूप में हैं प्रयागराज के आचार्य शांतनु जी महाराज। कथा का समय रोज सुबह 9 से 11.30 और दोपहर बाद तीन से छह बजे है।
कथा का समापन एवं मुख्य आयोजन (10 जुलाई गुरुवार) गुरुपूर्णिमा को गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के सानिध्य में होगा। शुरुआत सुबह 5 से 6 बजे तक महायोगी गुरु गोरखनाथ के रोट पूजन से होगा। इसके बाद मंदिर परिसर के सभी देव विग्रहों एवं समाधिस्थल पर विशेष पूजन होगा। दिन 11.30 से 12.30 तक भजन एवं आशीर्वाद का कार्यक्रम होगा। दोपहर में 12.30 से सहभोज होगा। शाम को 6.30 से बजे की आरती के साथ इसका समापन होगा।
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