सुप्रीम कोर्ट बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामलों की सुनवाई की। प्रमुख विपक्षी दलों के नेता सांसद महुआ मोइत्रा (तृणमूल कांग्रेस), मनोज कुमार झा (राष्ट्रीय जनता दल), केसी वेणुगोपाल (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस), सुप्रिया सुले (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शरद पवार), डी राजा (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी), हरिंदर मलिक (समाजवादी पार्टी), अरविंद सावंत (शिवसेना यूबीटी), सरफराज अहमद (झारखंड मुक्ति मोर्चा), दीपांकर भट्टाचार्य (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम आदि द्वारा याचिकाएँ दायर की गई हैं।
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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के साथ ही चुनाव आयोग ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग की तरफ से मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर सवाल किए। शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से कहा कि आपको यह प्रक्रिया जल्द शुरू करनी चाहिए थी। इस दौरान निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसे बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कुछ आपत्तियां हैं। जस्टिस धुलिया ने कहा कि इसे इतना मत बढ़ाओ। इस सब में एक व्यावहारिक पहलू भी है। वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि इन लोगों का पहले से ही सत्यापन हो जाए। यहाँ अनुच्छेद 14 कहाँ से आता है? इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वह उसका संवैधानिक दायित्व है। इसे कराने का तरीका चुनाव आयोग तय करेगा। कानून में स्पेशल रिवीजन का प्रावधान है।
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वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होते हुए कहा कि एक भी योग्य मतदाता को मताधिकार से वंचित करना समान अवसर को प्रभावित करता है, यह लोकतंत्र और बुनियादी ढांचे पर सीधा प्रहार करता है। जिस पर पीठ ने कहा कि हम इस मामले में आपके साथ हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि यह मानते हुए कि चुनाव आयोग नागरिकता की जाँच कर सकता है, यह एक बिल्कुल अलग प्रक्रिया है। किसी को आकर दिखाना होगा। पूरा देश आधार के पीछे पागल हो रहा है और फिर चुनाव आयोग कहता है कि आधार नहीं लिया जाएगा। सिंघवी ने कहा कि यह बिल्कुल नागरिकता जाँच की प्रक्रिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अब जबकि चुनाव कुछ ही महीनों दूर हैं, चुनाव आयोग कह रहा है कि वह 30 दिनों में पूरी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) करेगा। उन्होंने कहा कि वे आधार को मान्य नहीं करेंगे और वे माता-पिता के दस्तावेज़ भी मांग रहे हैं। वकील का कहना है कि यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि उसने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का काम इतनी देर से क्यों शुरू किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इसे आगामी चुनाव से महीनों पहले शुरू किया जाना चाहिए था।