इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के एक बयान को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान मुसलमानों के लिए ‘कठमुल्ला’ शब्द का इस्तेमाल किया और कहा कि देश का सिस्टम बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा। उनके इस बयान ने कानूनी और राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी, जिससे मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
सुप्रीम कोर्ट ने लिया बयान का संज्ञान
जस्टिस यादव के बयान पर विवाद बढ़ने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया। सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम बैठक में जस्टिस यादव व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। इस बैठक के दौरान, कॉलेजियम के सदस्य रहे जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने कुछ अहम खुलासे किए।
जस्टिस रॉय के अनुसार, जस्टिस यादव ने बैठक में कहा था कि वह अपने बयान के लिए माफी मांगने को तैयार हैं। इस पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि बंद कमरे में माफी मांगने का कोई मतलब नहीं है, बल्कि सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।
सार्वजनिक माफी की बात मानकर भी नहीं मांगी माफी
31 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने बताया कि जस्टिस यादव ने बैठक में सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के लिए हामी भर दी थी। हालांकि, बैठक के बाद उन्होंने ऐसा नहीं किया।
इसके विपरीत, बाद में जस्टिस यादव ने अपने बयान पर कायम रहने की बात कही। उन्होंने एक जवाब में कहा, “मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है।” जस्टिस रॉय ने इस व्यवहार को लेकर चिंता जताई और कहा कि पहले भी एक जज ने विवादित बयान दिया था, लेकिन उन्होंने बाद में सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली थी।
अब, चीफ जस्टिस ने इस मामले में इन-हाउस जांच शुरू कर दी है।
जस्टिस यादव का बयान और उनका बचाव
जस्टिस यादव ने समान नागरिक संहिता पर भाषण देते हुए कहा था कि देश का सिस्टम बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा। उन्होंने यह भी कहा था कि “परिवार में जिस बात को ज्यादा लोग मानते हैं, वही होता है।”
इसके अलावा, उन्होंने मुसलमानों के लिए ‘कठमुल्ला’ शब्द का इस्तेमाल किया, जिससे विवाद और बढ़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर गंभीरता से विचार किया और कॉलेजियम ने जस्टिस यादव को समन जारी किया।
हाई कोर्ट में जस्टिस यादव का जवाब
जस्टिस यादव ने इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को अपना जवाब सौंपा।
- उन्होंने कहा कि वह अपने बयान पर कायम हैं।
- उनका तर्क था कि उन्होंने यह बयान एक जज के रूप में नहीं, बल्कि एक हिंदू के रूप में दिया था।
- इसलिए, अदालत परिसर के बाहर कही गई कोई भी बात उनके जज के पद की आचार संहिता का उल्लंघन नहीं करती।
- उन्होंने दावा किया कि हाई कोर्ट की मर्यादा को इससे कोई नुकसान नहीं हुआ।