Friday, August 1, 2025
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जिसे आतंकी पनाहगाह बताया था उसी Pakistan के दीवाने हो गये हैं ट्रंप, US-Pak Trade Deal पर मुहर लगाकर भारत को दिया झटका!

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ एक बड़ा व्यापार समझौता किया है, जिसके बाद पाकिस्तान में खुशी का माहौल है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान को “आतंकियों की पनाहगाह” कहने वाले ट्रंप अब इतने मेहरबान क्यों हो गए हैं? क्या यह केवल व्यापारिक कारणों से है या इसके पीछे कोई बड़ी रणनीति छिपी है? और इसका असर भारत-अमेरिका संबंधों पर क्या पड़ेगा?
सबसे पहला सवाल है कि ट्रंप का पाकिस्तान की ओर झुकाव क्यों है? इसका जवाब है अमेरिका के रणनीतिक हित। दरअसल दक्षिण एशिया में चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है, खासकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के माध्यम से। पाकिस्तान के साथ समझौता कर अमेरिका चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना चाहता है। इसके अलावा, अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद पाकिस्तान की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। अमेरिका पाकिस्तान को नाराज़ नहीं करना चाहता क्योंकि तालिबान और अन्य कट्टरपंथी समूहों पर उसका असर है। इसके अलावा, डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि पाकिस्तान अमेरिकी उत्पादों के लिए बड़ा बाजार बने और भविष्य में ऊर्जा व्यापार (जैसे तेल और गैस) का हब बने। यही कारण है कि उन्होंने कहा, “एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेचेगा।” यह पाकिस्तान को क्षेत्रीय ऊर्जा सप्लायर के रूप में स्थापित करने की अमेरिकी योजना का संकेत है।

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दूसरा सवाल है कि ट्रंप की मेहरबानी से पाकिस्तान का खुश होना क्यों लाजिमी है? इसका जवाब है ट्रंप के फैसले से पाकिस्तान को अमेरिकी बाजार में अपने उत्पाद बेचने का बेहतर मौका मिलेगा, जिससे उसकी निर्यात आय बढ़ेगी। साथ ही समझौते के तहत अमेरिकी निवेश पाकिस्तान में बढ़ेगा, खासकर अवसंरचना, आईटी, खनन और ऊर्जा क्षेत्रों में। इसके अलावा, अमेरिका जैसे बड़े देश के साथ समझौता पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय साख को मजबूत करता है, खासकर जब वह आर्थिक संकट से जूझ रहा हो।
तीसरा सवाल है कि अमेरिका-पाकिस्तान के बीच समझौते से भारत-अमेरिका संबंधों पर क्या असर पड़ेगा? इसका जवाब स्पष्ट है। दरअसल भारत और अमेरिका के संबंध व्यापक रणनीतिक और रक्षा सहयोग पर आधारित हैं। यह समझौता इन रिश्तों को कमजोर नहीं करेगा, लेकिन पाकिस्तान में बढ़ती अमेरिकी सक्रियता भारत के लिए चिंता का विषय जरूर है। ऐसा लग रहा है कि अमेरिका दक्षिण एशिया में “संतुलनकारी शक्ति” की भूमिका निभाना चाहता है। साथ ही पाकिस्तान को सहयोग देकर वह भारत पर अप्रत्यक्ष दबाव भी बनाना चाहता है। अगर पाकिस्तान को अमेरिकी बाजार में विशेष लाभ मिलता है, तो यह कुछ क्षेत्रों में भारतीय निर्यातकों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ा सकता है।
चौथा सवाल है कि क्या पाकिस्तान इस पैसे से आतंकवाद को बढ़ावा देगा? इसका जवाब है- यही सबसे बड़ा जोखिम है जिसकी अमेरिका चिंता नहीं कर रहा। पाकिस्तान के इतिहास को देखते हुए यह आशंका गलत नहीं है कि अतिरिक्त वित्तीय संसाधन आतंकी संगठनों तक पहुंच सकते हैं। इसलिए भारत को सतर्क रहना होगा और अमेरिका के सामने यह मुद्दा लगातार उठाना होगा कि पाकिस्तान आतंकवाद को शह न दे।
पांचवां सवाल है कि ट्रंप ने पाकिस्तान के बारे में अपनी धारणा क्यों बदल ली? हम आपको याद दिला दें कि अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने पाकिस्तान को आतंकियों की पनाहगाह बताया था। लेकिन आज वे पाकिस्तान को ऊर्जा हब के रूप में देखते हैं। इसके पीछे कुछ कारण है अमेरिका के आर्थिक हित। दरअसल पाकिस्तान के 24 करोड़ लोगों का बाजार और भू-राजनीतिक स्थिति अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही पाकिस्तान को पूरी तरह चीन के प्रभाव में जाने से रोकना अमेरिका की प्राथमिकता है। साथ ही ट्रंप की दृष्टि में पाकिस्तान भविष्य में मध्य एशिया और पश्चिम एशिया से ऊर्जा भारत तक पहुंचाने वाला मार्ग बन सकता है।
अब सवाल उठता है कि भारत को क्या करना होगा? देखा जाये तो भारत को अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक सहयोग को और गहरा करना होगा। साथ ही पाकिस्तान को मिलने वाले अमेरिकी निवेश पर नजर रखनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि वह आतंकवाद को बढ़ावा न दे। इसके अलावा, भारत को अपने निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाना होगा ताकि अमेरिकी बाजार में पाकिस्तान को मिली रियायतों का असर कम हो। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह समझौता पाकिस्तान के लिए बड़ा आर्थिक अवसर और भारत के लिए चेतावनी है।
इसलिए पाकिस्तान खुशी से झूम रहा है। जहां तक अमेरिका-पाकिस्तान के बीच हुए समझौते के मुख्य बिंदुओं की बात है तो आपको बता दें कि वॉशिंगटन डी.सी. में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच एक ऐतिहासिक व्यापार समझौता हुआ, जिसे दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग का नया युग माना जा रहा है। इस समझौते का उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना, बाजारों तक पहुंच का विस्तार करना, निवेश आकर्षित करना और आपसी हितों के क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करना है। यह समझौता पाकिस्तान के वित्त मंत्री सीनेटर मुहम्मद औरंगजेब तथा अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक और अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि राजदूत जेमिसन ग्रीर के बीच हुई बैठक के दौरान हुआ। बैठक में पाकिस्तान के वाणिज्य सचिव जवाद पॉल और अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रिजवान सईद शेख भी मौजूद थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस व्यापार समझौते की घोषणा Truth Social पर पोस्ट कर की। हम आपको यह भी बता दें कि यह समझौता पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की मुलाकात के ठीक बाद हुआ है।
इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच परस्पर शुल्क (tariff) में कमी की जाएगी, विशेषकर पाकिस्तानी निर्यात पर लगने वाले शुल्क को घटाया जाएगा। इससे पाकिस्तान को अमेरिकी बाजार में बेहतर प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिलेगा। हम आपको यह भी बता दें कि यह समझौता केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। इसके तहत ऊर्जा, खनन और खनिज, आईटी, क्रिप्टोकरेंसी तथा अन्य कई क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। इस समझौते के बाद पाकिस्तान में अमेरिकी निवेश बढ़ने की उम्मीद है, विशेषकर अवसंरचना और विकास परियोजनाओं में। साथ ही यह समझौता पाकिस्तान-अमेरिका आर्थिक संबंधों के दायरे को और विस्तृत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब इन साझेदारियों को अमेरिकी राज्यों के स्तर तक बढ़ाने की भी योजना है। माना जा रहा है कि इस समझौते से पाकिस्तान को अमेरिकी बाजारों तक अधिक पहुंच मिलेगी। साथ ही अमेरिकी कंपनियों को पाकिस्तान में निवेश और व्यापारिक अवसर बढ़ाने का मौका मिलेगा।
बहरहाल, गंभीर आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे पाकिस्तान को अब अमेरिकी बाजार तक बेहतर पहुंच और निवेश से कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन यह समझौता पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों को भले नया आयाम देगा, पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) जैसे मौजूदा सहयोग ढांचों पर चल रहे कार्य को नुकसान पहुँचा सकता है। लेकिन ट्रंप का यह सोचना कि पाकिस्तान एक दिन भारत को तेल बेचेगा यह सिर्फ अतिश्योक्ति ही है क्योंकि जिस देश का पहले ही तेल निकला हुआ है वह कभी तेल विक्रेता नहीं बन पायेगा।
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