Friday, December 26, 2025
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जेएनयूएसयू में वामपंथियों का दबदबा बरकरार; एबीवीपी ने संयुक्त सचिव पद जीता

जवाहर लाल नेहरू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) चुनाव में वामपंथी उम्मीदवारों ने केंद्रीय पैनल के चार पद में से तीन पर जीत हासिल कर प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में अपना दबदबा बरकरार रखा, वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने संयुक्त सचिव पद जीता।

एबीवीपी ने नौ साल के अंतराल के बाद कोई पद जीता है।
जेएनयूएसयू निर्वाचन आयोग द्वारा रविवार आधी रात के बाद घोषित किए गए परिणाम के अनुसार ‘ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ (आइसा) के नीतीश कुमार ने 1,702 वोट हासिल कर अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की।
उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी एबीवीपी की शिखा स्वराज को 1,430 वोट मिले, जबकि ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (एसएफआई) समर्थित तैयब्बा अहमद को 918 वोट मिले।

‘डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन’ (डीएसएफ) की मनीषा ने 1,150 वोट हासिल कर उपाध्यक्ष पद जीता, जबकि एबीवीपी के निट्टू गौतम को 1,116 वोट मिले।
डीएसएफ की मुन्तेहा फातिमा ने 1,520 वोट हासिल कर महासचिव पद पर जीत हासिल की। एबीवीपी के कुणाल राय को 1,406 से संतोष करना पड़ा।

संयुक्त सचिव पद पर एबीवीपी के वैभव मीणा ने 1,518 वोट हासिल कर जीत प्राप्त की। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी आइसा के नरेश कुमार 1,433 और ‘प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ (पीएसए) की उम्मीदवार निगम कुमारी को 1,256 वोट को मिले।
मीणा की जीत से एबीवीपी ने पहली बार केंद्रीय पैनल में जगह बनाई है। इससे पहले 2015-16 में सौरव शर्मा ने इसी पद पर जीत हासिल की थी।

एबीवीपी ने 2000-01 में अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी, जब संदीप महापात्रा विजयी हुए थे।
इस बार के चुनाव में आइसा ने डीएसएफ के साथ गठबंधन किया था जबकि एसएफआई और ‘ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन’ (एआईएसएफ) ने ‘बिरसा आंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ (बीएपीएसए) और पीएसए के साथ गठबंधन किया।
एबीवीपी ने अकेले चुनाव लड़ा।

जेएनयूएसयू चुनाव के लिए 25 अप्रैल को 7,906 पात्र विद्यार्थियों में से 5,500 ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। इस बार का मतदान प्रतिशत 2023 में दर्ज 73 प्रतिशत से थोड़ा कम था, फिर भी यह 2012 के बाद से सबसे अधिक रहा।
चार केंद्रीय पैनल पदों के लिए 29 उम्मीदवार तथा 44 काउंसलर सीट के लिए 200 उम्मीदवार मैदान में थे।

केंद्रीय पैनल के तीन पदों पर अपने गठबंधन की जीत की प्रशंसा करते हुए आइसा ने संयुक्त सचिव पद पर एबीवीपी को मामूली अंतर से मिली जीत पर भी चिंता जताई और इसे परिसर में वामपंथ के प्रभुत्व के लिए चुनौती बताया।

आइसा ने एक बयान में कहा, ‘‘यह वाकई चिंता की बात है कि एबीवीपी ने संयुक्त सचिव पद पर 85 मतों के अंतर से जीत हासिल की है। प्रवेश प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और ढांचागत व्यवस्था पर हमला यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया कि संकाय पदों पर भाजपा के वफादार लोग सत्तारूढ़ सरकार के लिए परिसर में माध्यम के रूप में काम करें, इसके बावजूद जेएनयूएसयू में वामपंथी उम्मीदवारों ने अपना दबदबा बनाया।’’

इसने गठबंधन की जीत को सरकार की नयी शिक्षा नीति के खिलाफ जनादेश बताया और कहा कि शिक्षा व्यवस्था को कमजोर किया गया तथा हाशिए पर पड़े समूहों के साथ भेदभाव किया गया।
उधर, एबीवीपी ने अपनी जीत को ‘‘जेएनयू के राजनीतिक परिदृश्य में एक ऐतिहासिक बदलाव’’ बताया और कहा कि उसने वामपंथियों के ‘‘तथाकथित गढ़’’ में सेंध लगाई।

एबीवीपी ने एक बयान में कहा, ‘‘जेएनयू में यह जीत न केवल एबीवीपी की कड़ी मेहनत और छात्रों की राष्ट्रवादी सोच के प्रति निष्ठा और प्रतिबद्धता का प्रमाण है, बल्कि यह उन सभी छात्रों की भी जीत है जो शिक्षा को राष्ट्र-निर्माण की नींव मानते हैं। यह जेएनयू में वर्षों से वामपंथियों द्वारा स्थापित तथाकथित वैचारिक अत्याचार के खिलाफ एक लोकतांत्रिक क्रांति है।’’

नवनिर्वाचित संयुक्त सचिव मीणा ने कहा, ‘‘मैं इस जीत को अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि या फायदे के रूप में नहीं देख रहा हूं, बल्कि यह आदिवासी चेतना और राष्ट्रवादी विचारधारा की एक बड़ी और महत्वपूर्ण जीत है, जिसे वामपंथियों ने वर्षों से दबा रखा था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह जीत उन विद्यार्थियों की सफलता का प्रतीक है जो सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्र पुनर्निर्माण की भावना को पूरे दिल से कायम रखते हुए शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं।

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