पिछले हफ्ते गोवा में चले FIDE वर्ल्ड कप 2025 में कई चौंकाने वाली हारों ने शतरंज जगत को हैरान कर दिया है। मौजूद जानकारी के अनुसार, रूस के ग्रांडमास्टर दानियिल दुबोव ने भारत के युवा स्टार आर. प्रज्ञानानंदा को हराया और उसके बाद जो बयान दिया, उसने चर्चा को और तेज कर दिया है। दुबोव ने दावा किया कि प्रज्ञानानंदा जैसे खिलाड़ी के खिलाफ तैयारी में उन्हें सिर्फ “10 मिनट और मोबाइल” की जरूरत पड़ी और उन्होंने लैपटॉप तक नहीं खोला है। ये बात प्रज्ञानानंदा के लिए हार से ज्यादा चुभने वाली साबित हुई है।
गौरतलब है कि यह अकेला बड़ा उलटफेर नहीं था। बता दें कि विश्व चैंपियन डी. गुकेश को तीसरे राउंड में जर्मनी के फ्रेडरिक स्वाने ने हरा दिया, जिनकी रेटिंग उनसे 123 अंक कम है। डच खिलाड़ी अनीश गिरी भी बाहर हो गए, जिन्हें 128 अंकों से कम रेटेड अलेक्जेंडर डोनचेंको ने हराया। इतनी जल्दी इतने टॉप प्लेयर्स का बाहर हो जाना कई सवाल खड़े करता है कि आखिर क्या दुनिया के बड़े खिलाड़ी अचानक ज्यादा कमजोर हो गए हैं या फिर शतरंज का स्तर अब पहले से ज्यादा नज़दीक आ गया है।
दो बार वर्ल्ड कप जीत चुके लेवोन आरोनियन, जिन्हें अर्जुन एरिगैसी ने हराया, कहते हैं कि यह होना तय था। उनका मानना है कि अब अधिकांश खिलाड़ी एक-दूसरे के स्तर के काफी करीब आ चुके हैं। सिर्फ दो क्लासिकल गेम में फैसला होना आसान नहीं होता और कई बार कम अनुभवी खिलाड़ी भी सफेद मोहरों से ड्रॉ निकालकर काले मोहरों से मौका तलाश लेते हैं। दुबोव भी openly इसी रणनीति की बात करते हुए कह चुके हैं कि “सफेद मोहरों से ड्रॉ करना और काले मोहरों से खेलना ही तरीका है।”
लेकिन इस कहानी की परतें इससे भी गहरी हैं। भारत के विदित गुजराती, जो तीसरे राउंड में बाहर हो गए, बताते हैं कि अब टॉप और सेमी-टॉप खिलाड़ियों के बीच का अंतर बहुत कम हो गया है, लेकिन यह बात रेटिंग में दिखती नहीं है। उन्होंने कहा कि बड़े खिलाड़ी अक्सर बंद-चक्र के इनविटेशन-आधारित टूर्नामेंट खेलते हैं, जिससे उनकी रेटिंग स्थिर रहती है। वहीं 2600 के आसपास रेटेड खिलाड़ी मजबूत हो चुके हैं, लेकिन उन्हें टॉप प्लेयर्स से नियमित रूप से खेलने का मौका नहीं मिलता और इस वजह से उनके वास्तविक स्तर का रेटिंग में असर नहीं दिखता है।
एक और अहम पहलू यह है कि अब हर किसी के पास बेहतरीन इंजन और मजबूत हार्डवेयर की पहुंच है। पहले ओपनिंग की गहराई समझने के लिए दिन-रात मेहनत करनी पड़ती थी, लेकिन अब यह बाधा कम हो गई है। विदित के अनुसार, “ओपनिंग में अच्छा बनने की दीवार अब नीचे आ गई है।”
सबसे कड़ा विश्लेषण हालांकि भारतीय ग्रांडमास्टर प्रविण थिप्से का आता है। उनका कहना है कि आज के टॉप खिलाड़ी अपने खेल को समझने की बजाय विशिष्ट प्रतिद्वंद्वी के लिए तैयारी करते हैं और अक्सर यह तैयारी उनके अपने स्तर से कम अनुभव वाले ट्रेनर करते हैं। उन्होंने कहा कि कई खिलाड़ी इंजन से निकली चालें याद कर लेते हैं, लेकिन जब कोई नई या कंप्यूटर-विरोधी चाल सामने आती है तो वे जम जाते हैं क्योंकि वे असल में उस चाल के पीछे की “तर्क” को समझते ही नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कम रेटिंग वाले खिलाड़ी अक्सर ज्यादा सहज और तर्कपूर्ण खेलते हैं, क्योंकि वे मशीन जैसी याददाश्त पर निर्भर नहीं होते।
थिप्से के मुताबिक, आम खिलाड़ियों के लिए विश्व कप ही एक बड़ा मौका होता है, इसलिए उनकी प्रेरणा भी कई गुना ज्यादा रहती है। वहीं टॉप खिलाड़ियों के पास कैंडिडेट्स तक पहुंचने के कई रास्ते होते हैं, जिससे एक तरह की सुरक्षा की भावना भी आ जाती है। उनका मानना है कि अगर शीर्ष खिलाड़ी फिर से ओपन टूर्नामेंट खेलना शुरू करें तो वे अपनी पुरानी तर्क-आधारित ताकत वापस पा सकते हैं, भले ही शुरुआत में उन्हें कुछ रेटिंग पॉइंट्स खोने पड़ें।
गोवा में हुए इन उलटफेरों के बीच दुबोव का तंज भले हवा में तैर रहा हो, लेकिन इसके नीचे छिपी हकीकत यही दिखती है कि जिन खिलाड़ियों ने अपने खेल में तर्क, समझ और सतर्कता को बनाए रखा है, वही आगे बढ़ रहे हैं और जो सिर्फ तैयारी पर निर्भर हैं, उन्हें अप्रत्याशित परेशानियों का सामना करना पड़ा है। यही मौजूदा वर्ल्ड कप की सबसे बड़ी सीख बनकर सामने आई है।

