ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया, चीन मुखर हैं लेकिन बाकी दुनिया टैरिफ़ पॉलिसी पर खामोश क्यों? डर है या मजबूरी? इस सवाल के जवाब में भारत के प्रमुख व्यापार विशेषज्ञों में से एक और Global Trade Research Initiative (GTRI) के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव बताते हैं कि डर यह जो है यह मैं आपको खुद बताऊं मैं खुद भी मैंने सोचा था जब यह ट्रंप ऐसी बातें करेंगे। देखिए जो फ्री ट्रेड एग्रीमेंट होते हैं, मैं तो आधी जिंदगी में वही सब नेगोशिएट किए हुए हैं। तो दो पक्ष सामने बैठते हैं बहुत ही शांतिपूर्ण माहौल में और सब कुछ बराबरी से होता है। अगर मैं आपको ₹100 कंसेशन दे रहा हूं तो मुझे अगर 100 नहीं तो 90 तो चाहिए-चाहिए। बट इस केस में यह भाई साहब कुछ भी नहीं दे रहे हैं।
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यह जो है इलीगल टैरिफ लगा रहे हैं और धमकी देकर लोगों से कह रहे हैं आपको हमसे सारा ऑयल खरीदना पड़ेगा, हमसे बोइंग विमान लेने पड़ेंगे, हमसे बहुत सारी चीज लेनी पड़ेगी प्लस आपको हमारे यहां इन्वेस्टमेंट करना पड़ेगा जैसे यूरोप में कहा हम 700 बिलियन डॉलर आपके यहां इन्वेस्टमेंट करेंगे, जापान में कहा हम 500 बिलियन डॉलर इन्वेस्टमेंट करेंगे तो मुझे भी यह अच्छा जो है मुझे लगा कोई कम से कम बड़े देश जो हैं तो जैसे यूरोप यूरोपियन यूनियन 27 देशों का समूह है, मुझे लगा वह लोग कुछ प्रतिरोध करेंगे बट प्रतिरोध बहुत ही हल्का सा हुआ और सबने सरेंडर कर दिया टोटल तो देखो जापान जापान में मैं कई बार गया हूं, उनके यहां राइस जो है ना वह कल्चरली इतना सेंसिटिव मानते हैं राइस फार्मर्स को बहुत प्रोटेक्ट करके रखते हैं कि हम इंपोर्ट ऐसे जितना जरूरत पड़ेगी लेंगे हम ऐसे कहीं से भी नहीं कर सकते हैं।
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अमेरिका के लिए उन्होंने रास्ते खोल दिया है। तो ऐसे यूरोप ने सब सरेंडर कर दिया, ऐसे साउथ कोरिया ने सरेंडर कर साउथ कोरिया का तो उनका एक साथ में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट था, उसके बाद भी उन्होंने दोबारा किया डर के पीछे। तो यह सब डर गए सारे के सारे केवल चाइना खड़ा रहा क्योंकि वह शायद लेवरेज था ब्लैकमेल करने की स्थिति में था। इंडिया क्योंकि इंडिया से इंडिया ने इतना उनका प्रतिरोध तो नहीं किया लेकिन वह खुद ही हमसे नाराज हो गए डिफरेंट कारणों से और ड्यूटी लगा दी तो सब रुक गया तो मैं तो कई बार लगता है कि ठीक ही हुआ। कि हम बेकार के ट्रेड डील से बच गए हैं। देखते हैं अभी आगे क्या होता है इसमें?