दिल्ली उच्च न्यायालय ने बलात्कार के मामले में सजायाफ्ता एक व्यक्ति की जेल की सजा 30 साल से घटाकर 20 वर्ष कर दी है।
न्यायमूर्ति अमित शर्मा ने 11 जुलाई को पारित आदेश में कहा, निचली अदालत ने याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(आई) और (एन) के तहत 30 साल की सजा सुनाते हुए दर्ज किया था कि उसका अपराध जघन्य प्रकृति का था और इसलिए उसे दी गई सजा उचित है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता का अपराध अत्यंत गंभीर है।
अदालत ने कहा कि यह रिकॉर्ड में आने के बाद कि दोषी जेल में सफाई सहायक के रूप में काम कर रहा था और उसका आचरण संतोषजनक था, उसकी सजा की अवधि में संशोधन किया गया।
अदालत ने कहा कि दोषी छह अप्रैल 2015 को गिरफ्तारी के बाद से ही हिरासत में है।
फैसले में आईपीसी की धारा 376(2)(आई) (16 साल से कम उम्र की महिला के साथ बलात्कार) और (एन) (एक ही महिला के साथ बार-बार बलात्कार करना), 450 (घर में जबरन प्रवेश) और 506 (आपराधिक धमकी) के अलावा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 3 और 4 (प्रवेशात्मक यौन हमला) के तहत उसे दी गई सजा को बरकरार रखा गया।
हालांकि, अदालत ने उसे यौन उत्पीड़न के अपराध से बरी कर दिया।
याचिकाकर्ता ने 12 साल की बच्ची के साथ अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद निचली अदालत के 2013 के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। नाबालिग और उसकी मां ने चार अप्रैल 2015 को पुलिस से संपर्क किया।
उन्होंने आरोप लगाया कि उनके पड़ोसी ने कई बार नाबालिग के साथ बलात्कार किया।
मामला तब सामने आया, जब नाबालिग के पेट में दर्द की शिकायत के बाद उसकी मां उसे डॉक्टर के पास ले गई।
जांच में नाबालिग गर्भवती पाई गई और डॉक्टरों ने उसे गर्भपात कराने की सलाह दी।
इसके बाद डीएनए के नमूने सुरक्षित रखे गए और विश्लेषण के लिए फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिए गए।
मामले में दोषी करार दिए गए व्यक्ति ने दावा किया कि लड़की की गवाही में विसंगतियां हैं , जिससे वह अविश्वसनीय हो गई है।