आधुनिक जीवन की जरूरत बन चुके मोबाइल फोन, इलेक्ट्रिक कार जैसी तकनीकों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली दुर्लभ धातुएं (Heavy Rare Earth Metals) आज पूरी दुनिया के लिए रणनीतिक संसाधन बन चुकी हैं। हालांकि इन धातुओं का खनन बेहद महंगा, कठिन और पर्यावरण के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है। इसके अलावा इन धातुओं के परिष्करण (refining) पर चीन का एकाधिकार इसे वैश्विक राजनीति और पर्यावरणीय चिंता का विषय भी बना देता है।
हम आपको बता दें कि पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण-पूर्व एशिया का संघर्षग्रस्त देश म्यांमार इन दुर्लभ धातुओं के प्रमुख स्त्रोत के रूप में उभरा है। चीन की दक्षिण-पश्चिमी सीमा से सटे इस देश में दशकों से जारी गृहयुद्ध और सैन्य तानाशाही ने श्रम और पर्यावरण संबंधी कानूनों को लगभग समाप्त कर दिया है। इसी का फायदा उठाकर चीन की कंपनियां म्यांमार में अरबों डॉलर मूल्य की दुर्लभ धातुएं निकाल रही हैं और उन्हें चीन भेज रही हैं। सगाईंग, काचिन और शान राज्य, जो म्यांमार के चीन से सटे उत्तरी हिस्सों में आते हैं, दुर्लभ धातुओं के सबसे बड़े भंडार माने जाते हैं। यह वही क्षेत्र है जहां न कानून का डर है, न पर्यावरण की परवाह और न ही मानवाधिकारों का संरक्षण। चीन ने इसी हालात का भरपूर फायदा उठाया है। चीन की सरकारी कंपनियां और उनके माध्यम से जुड़े अवैध नेटवर्क विद्रोही गुटों से सीधे संपर्क में रहते हैं। बदले में ये गुट खनिज उत्खनन और तस्करी की इजाजत देते हैं। इस तरह चीन बिना किसी रोक-टोक के कच्चा माल सस्ते दाम पर हासिल कर रहा है। दुर्लभ धातुओं के खनन के लिए अत्याधुनिक रसायन और तकनीक की जरूरत होती है। चीन लीचिंग टेक्नोलॉजी (तेजाब के जरिए खनिज निकालना) और रसायन म्यांमार भेजता है। स्थानीय समूह इनका उपयोग कर कच्चा खनिज निकालते हैं, जिसे सीधे ट्रकों के जरिए चीन भेज दिया जाता है। इसके बाद चीन अपने देश में इन धातुओं को शुद्ध कर वैश्विक बाजार में महंगे दामों पर बेचता है।
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हम आपको बता दें कि चीन म्यांमार की तंगहाल अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा साझेदार है। जब पूरी दुनिया ने सैन्य शासन पर प्रतिबंध लगाए, तब भी चीन ने व्यापार जारी रखा। इस स्थिति का लाभ उठाकर चीन म्यांमार की अर्थव्यवस्था और प्रशासन दोनों पर आर्थिक दबाव बनाकर नियंत्रण कर रहा है।
हम आपको बता दें कि म्यांमार के उत्तरी राज्यों काचिन और शान (जहां से चीन की सीमा लगती है) दुर्लभ धातुओं, खासकर टरबियम और डिस्प्रोसियम जैसे धातुओं का केंद्र बन चुके हैं। खनन के लिए पूरे पहाड़ों को उखाड़ना और उनमें तेजाब डालकर खनिज निकालना पड़ता है, जिससे जमीन और पानी दोनों जहरीले हो रहे हैं। काचिन राज्य में हजारों एकड़ बंजर हो चुकी भूमि और जहरीली मिट्टी इसका प्रमाण है। अब यह संकट शान राज्य में फैला है, जहां चीन समर्थित वा जातीय समूह का कब्जा है।
हम आपको बता दें कि खनन के दौरान निकलने वाला जहरीला अपशिष्ट अब म्यांमार से होते हुए थाईलैंड तक फैल चुका है। खास तौर पर मेकॉन्ग नदी और उसकी सहायक नदियों में जहर घुल रहा है, जिससे इस क्षेत्र की जैवविविधता और करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है। हाल ही में थाईलैंड के गांवों में नदी के संपर्क में आने के बाद लोगों में त्वचा रोग, मछलियों में अस्वाभाविक धब्बे और जल में भारी धातुओं की खतरनाक मात्रा पाई गई है।
हम आपको याद दिला दें कि 2021 में म्यांमार की सेना ने लोकतंत्र की संभावनाओं को कुचलते हुए एक बार फिर सत्ता हथिया ली थी। इसके बाद पश्चिमी देशों ने म्यांमार पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, लेकिन चीन लगातार सेना के साथ व्यापार करता रहा। इसके अलावा सिर्फ म्यांमार की सेना ही नहीं, बल्कि सैन्य विरोधी समूह और जातीय मिलिशिया भी इस अवैध खनन और व्यापार से अपनी जेबें भर रहे हैं। चीनी कंपनियां और आपराधिक नेटवर्क न केवल दुर्लभ धातुओं, बल्कि सोना, लकड़ी और ऑनलाइन ठगी के गोरखधंधे में भी शामिल हैं। इस अराजकता में अवैध अर्थव्यवस्था का एक बड़ा नेटवर्क विकसित हो गया है।
इसके अलावा, कोक नदी, जो म्यांमार के वा इलाकों से होकर बहती है, अब थाईलैंड के मेकॉन्ग नदी में जहरीले अपशिष्ट मिला रही है। पहले ही जलवायु परिवर्तन, बांधों और वनों की कटाई से जूझ रही मेकॉन्ग नदी के लिए यह एक और बड़ा खतरा है, जिससे लाखों लोगों की आजीविका और स्वास्थ्य जुड़ा है।
बहरहाल, म्यांमार के अस्थिर हालात और चीन के आर्थिक हितों के चलते यह पूरा क्षेत्र पर्यावरणीय संकट की ओर बढ़ रहा है। दुर्लभ धातुओं की वैश्विक मांग पूरी करने के लिए जो विनाशकारी खनन हो रहा है, उसका खामियाजा अब सीमाओं के पार भी महसूस किया जा रहा है। यदि इसे जल्द नहीं रोका गया तो यह संकट पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए असाधारण पर्यावरण और मानवीय आपदा बन सकता है। देखा जाये तो म्यांमार की दुर्लभ धातुएं सिर्फ एक आर्थिक संसाधन नहीं, बल्कि भविष्य की वैश्विक राजनीति और पर्यावरण संतुलन का केंद्र बन चुकी हैं। दुनिया को यदि आने वाले संकट से बचना है तो संयुक्त प्रयासों के तहत म्यांमार में पारदर्शिता, स्थिरता और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
-नीरज कुमार दुबे