Friday, December 26, 2025
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नशा, न्यायिक सुधार और रोस्टर व्यवस्था पर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत की बेबाक राय — जानिए क्या कहा?

न्यायपालिका के भीतर चल रही चुनौतियों और सुधारों को लेकर नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने हाल ही में एक साक्षात्कार में खुलकर अपनी बात रखी। बता दें कि 24 नवंबर से शुरू हुए अपने 15 महीने के कार्यकाल के दौरान वह कॉलेजियम प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने और मामलों की लंबित संख्या कम करने को प्राथमिकता देने की बात कह रहे हैं।
मौजूद जानकारी के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत ने अपने न्यायिक जीवन के उस अहम दौर को भी याद किया, जब वह पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में 14 वर्षों तक कार्यरत रहे। इस दौरान उन्होंने पंजाब में नशे की गंभीर समस्या से जुड़े मामलों की नियमित सुनवाई की। उन्होंने बताया कि वर्ष 2015 के आसपास उन्हें यह मामला सौंपा गया था और हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरण तक वह इसे हर महीने सूचीबद्ध कर लगातार निगरानी करते रहे।
गौरतलब है कि उस समय पंजाब में नशे की स्थिति बेहद बेकाबू थी। जस्टिस सूर्यकांत के अनुसार, यह कोई ऐसा मामला नहीं था जिसे एक आदेश से सुलझाया जा सके। इसके लिए धैर्य, निरंतर संवाद और सभी संबंधित पक्षों की भागीदारी जरूरी थी। उन्होंने प्रभावित परिवारों की पीड़ा को समझा, प्रशासनिक तंत्र की भूमिका की समीक्षा की और सरकार से सीधे संवाद किया।
इस पूरे मामले में न्यायिक हस्तक्षेप बहुआयामी रहा। एक ओर जहां ड्रग तस्करी से जुड़े बड़े अपराधियों के खिलाफ जांच समितियां गठित की गईं और प्रत्यर्पण जैसे कदम उठाए गए, वहीं दूसरी ओर सीमाओं की सुरक्षा मजबूत करने पर भी जोर दिया गया। साथ ही, नशे के शिकार लोगों के लिए नशामुक्ति और पुनर्वास केंद्र स्थापित करने के निर्देश दिए गए, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को सहारा मिल सके।
युवाओं को जागरूक करने के लिए स्कूल और कॉलेज स्तर पर पाठ्यक्रम में बदलाव की सिफारिश भी की गई, जिसके लिए विशेषज्ञों की समिति बनाई गई। जस्टिस सूर्यकांत के मुताबिक, यह पूरा प्रयास दंडात्मक, निवारक, पुनर्वासात्मक और शैक्षणिक सभी पहलुओं को जोड़कर किया गया था।
साक्षात्कार के दौरान ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ को लेकर उठने वाली आलोचनाओं पर भी उन्होंने अपनी राय रखी। उन्होंने स्पष्ट किया कि मुख्य न्यायाधीश होने के नाते प्रशासनिक जिम्मेदारियां स्वाभाविक रूप से जुड़ी होती हैं, लेकिन मामलों का आवंटन किसी एक व्यक्ति की मनमर्जी से नहीं, बल्कि आपसी विचार-विमर्श और न्यायालय की सुचारु कार्यप्रणाली को ध्यान में रखकर किया जाता है।
न्यायिक स्वतंत्रता पर सवाल के जवाब में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह केवल कार्यपालिका से स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है, बल्कि किसी भी तरह के दबाव समूहों से मुक्त रहना भी उतना ही जरूरी है। उन्होंने जोर दिया कि संविधान और जनता के प्रति जवाबदेही ही न्यायपालिका की सबसे बड़ी ताकत है और यही प्रभावी न्याय व्यवस्था की बुनियाद हैं।
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