Wednesday, October 15, 2025
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पड़ोसी अच्छे हो या नहीं…पाकिस्तान की धज्जियां उड़ाने वाला जयशंकर का बयान

जो राष्ट्र अपने हितों को भूल जाता है वो इतिहास के पन्नों में केवल कहानी बनकर रह जाता है। यही वजह है कि आज भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर दुनिया को बार बार याद दिला रहे हैं कि भारत अब किसी के दबाव में नहीं चलेगा। भारत अब अपने राष्ट्र हितों से ही चलेगा। दरअसल, एक कार्यक्रम में जयशंकर ने एक बयान दिया जिसने एक बार फिर साफ कर दिया कि भारत की विदेश नीति अब नेहरू युग की तरह भावनाओं पर नहीं बल्कि ठोस राष्ट्र हितों पर केंद्रित है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बिना नाम लिए नापाक पड़ोसी पाकिस्तान को खुब लतारा। उन्होंने कहा कि भारत के कई पड़ोसी हैं, लेकिन सभी एक जैसे नहीं हैं। कुछ अच्छे हैं और कुछ कम अच्छे।

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एस जयशंकर ने कहा कि हाइफनेशन अक्सर उस पड़ोसी के साथ होता है जो उतना अच्छा नहीं है। हमें समझना चाहिए कि जब हम डिहाइफनेशन कहते हैं तो उसका मतलब है कि हम चाहते हैं कि तीसरे देश जब भारत के बारे में निर्णय लें, तो वो उस संबंध को मुख्य आधार न बनाएं। तो, एक मुश्किल पड़ोसी को मैं नजरअंदाज नहीं कर सकता। ये सच्चाई है, चाहे वो जितनी अप्रिय हो। लेकिन मुझे क्या करना है। मुझे खुद को इतना प्रभावशाली और एक तरह से आकर्षक बनाना है कि रिश्ते मुख्य रुप से मेरी क्षमताओं, मेरी विशेषताओं और मेरे योगदान के आधार पर बने । मेरा मनाना है कि ऐसा काफी हद तक हो रहा है। 

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जब श्रीलंका में आर्थिक संकट आया, हमने जो सहायता आज भी मालदीव को जो सहायता मिल रही है। हाल के वर्षों में भारत के पड़ोस में कई गंभीर राजनीतिक बदलाव हुए हैं। पिछले महीने ही, नेपाल में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों के बाद व्यापक राजनीतिक बदलाव देखने को मिला, जिसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को पद से हटा दिया गया, एक कार्यवाहक नेता की नियुक्ति की गई और नए चुनावों की संभावनाएँ प्रबल हो गईं।

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पिछले साल, बांग्लादेश ने अपनी जुलाई क्रांति देखी थी, जिसमें शेख हसीना की सरकार, जिसे लंबे समय से भारत का करीबी माना जाता था, को हटा दिया गया था और ढाका में मुहम्मद यूनुस और एक अंतरिम सरकार ने सत्ता संभाली थी। मालदीव ने सितंबर 2023 में मोहम्मद मुइज़्ज़ू को राष्ट्रपति चुना था। मुइज़्ज़ू ने अपने चुनाव अभियान के दौरान “इंडिया आउट” मंच पर ध्यान केंद्रित किया था, जो उनके राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से बदल गया है, और नई दिल्ली और माले दोनों ने अपने नेताओं की पारस्परिक राजकीय यात्राओं के माध्यम से संबंधों को बेहतर बनाया है। 

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