बॉम्बे हाईकोर्ट ने कड़े गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि यह कानून संविधान के अनुरूप है और याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत तर्कों में कोई दम नहीं है। यह याचिका अनिल बाबूराव भेले ने दायर की थी, जिन्हें एल्गार परिषद मामले के संबंध में 2020 में नोटिस जारी किया गया था। अपनी याचिका में भेले ने यूएपीए और भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह से संबंधित) को असंवैधानिक घोषित करने और उन्हें रद्द करने की मांग की थी।
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वरिष्ठ अधिवक्ता प्रकाश अंबेडकर ने अदालत में भेले का प्रतिनिधित्व करते हुए तर्क दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए यूएपीए का दुरुपयोग किया जा रहा है। केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संदेश पाटिल और अधिवक्ता चिंतन शाह ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि भेले को मामले में केवल एक गवाह के रूप में बुलाया गया था और इसलिए उनके पास कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि यूएपीए को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल चुकी है और इसे वैध रूप से अधिसूचित किया जा चुका है, जिससे यह एक वैध कानून बन जाता है।
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न्यायमूर्ति एएस गडकरी और न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने यूएपीए को पूरी तरह से संवैधानिक घोषित किया। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की दलीलों में कोई ठोस आधार नहीं है। फैसला सुनाते हुए, न्यायालय ने कहा कि यूएपीए संविधान के अनुरूप है। याचिका में उठाई गई चुनौती खारिज हो गई है। इसलिए, याचिका खारिज की जाती है।