चीन ने तिब्बत क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी पर अपने डैम के निर्माण की शुरुआत का बचाव किया। वहीं, भारत और बांग्लादेश जैसे निचले इलाकों वाले देशों पर इसके असर को लेकर उठ रही चिंताओं को खारिज किया। शनिवार को चीनी प्रधानमंत्री ली क्यांग ने ब्रह्मपुत्र नदी के निचले हिस्से में तिब्बत के न्चिंगची शहर में डैम के निर्माण की शुरुआत की घोषणा की। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि यह प्रॉजेक्ट निचले इलाकों पर किसी भी तरह का नकारात्मक असर नहीं डालेगा। गुओ ने कहा कि इस प्रॉजेक्ट पर दोनों देशों से जरूरी बातचीत की गई है। वहीं, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने हाल में इस निर्माण को वॉटर बम करार दिया था। कहा था कि यह भारत की अस्तित्व के लिए खतरा है।
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ब्रह्मपुत्र एक अंतर्देशीय नदी है जिसका बेसिन लगभग 5,80,000 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जो चीन (50.5%), भारत (33.3%), बांग्लादेश (8.1%) और भूटान (7.8%) में फैला है। भारत में, इसका क्षेत्रफल 1,94,413 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 5.9% है। इसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के क्षेत्र शामिल हैं। यह नदी तिब्बत की कैलाश पर्वतमाला में मानसरोवर झील के पूर्व में स्थित चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से निकलती है। यह तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी के रूप में लगभग 1,200 किलोमीटर पूर्व की ओर बहती है। ब्रह्मपुत्र की प्रमुख दाहिनी ओर की सहायक नदियाँ सुबनसिरी (पूर्ववर्ती), कामेंग, मानस और संकोश नदियाँ हैं। इसके बाद यह नदी असम में धुबरी के पास बांग्लादेश के मैदानों में प्रवाहित होती है, जहाँ से यह दक्षिण की ओर बहती है।
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गौरतलब है कि भारत में ब्रह्मपुत्र नदी की सभी सहायक नदियाँ वर्षा पर निर्भर हैं और दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान भारी वर्षा प्राप्त करती हैं। इस भारी वर्षा के कारण बार-बार बाढ़ आती है, जलधाराएँ बदलती हैं और तट कटाव होता है। भारत अपने क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे के प्रयासों के तहत अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर अपनी जलविद्युत परियोजना भी विकसित कर रहा है। भारत और चीन ने सीमा पार नदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए 2006 में विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ईएलएम) की स्थापना की थी, जिसके तहत चीन बाढ़ के मौसम में भारत को ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदी के बारे में जल विज्ञान संबंधी जानकारी प्रदान करता है।