Saturday, November 22, 2025
spot_img
Homeराष्ट्रीय“भारत को जाने, भारत को माने, भारत के बने और फिर भारत...

“भारत को जाने, भारत को माने, भारत के बने और फिर भारत को बनाएं”, डॉ. मनमोहन वैद्य का राष्ट्रीय गौरव का आह्वान

भोपाल। सुरुचि प्रकाशन की ओर से रवींद्र भवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. मनमोहन वैद्य की पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ का विमोचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में भारत की मूल अवधारणा, आत्मगौरव, सांस्कृतिक चेतना और अध्ययनशील परंपरा पर व्यापक चर्चा हुई। इस अवसर पर श्री आनंदम धाम आश्रम, वृंदावन के पीठाधीश्वर श्री ऋतेश्वर जी महाराज, पूर्व उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़, जागरण के समूह संपादक श्री विष्णु त्रिपाठी, सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष श्री राजीव तुली और लेखक डॉ. मनमोहन वैद्य ने अपने विचार प्रकट किए। 
 

इसे भी पढ़ें: RSS प्रमुख मोहन भागवत का मणिपुर में सद्भाव पर ज़ोर, कहा – भ्रांतियों से बचें, संघ को जानें

पुस्तक के लेखक डॉ. मनमोहन वैद्य ने भारतीयता, अध्ययन और विमर्श की आवश्यकता पर अपना उद्बोधन दिया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारत को बनाने से पहले आवश्यक है कि हम पहले भारत को माने, उसके बाद भारत को जाने, फिर भारत के बने और उसके बाद भारत को बनाएं। उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत उस अनुभव से की जिसने उन्हें लेखन की ओर प्रेरित किया। संघ के तृतीय वर्ष प्रशिक्षण वर्ग में जब श्री प्रणब मुखर्जी को संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया था, तब कुछ लोगों ने बिना कारण विरोध किया। इस एक घटना ने मनमोहन जी को लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में केवल 1 से 6 जून के बीच 378 लोगों ने उनसे मिलने का अनुरोध किया था, जो यह दर्शाता है कि संघ को लेकर समाज में संवाद की गहरी उत्सुकता है।
उन्होंने बताया कि संघ पर बेवजह किया गया विरोध कई बार संघ की स्वीकार्यता को और बढ़ा देता है। जॉइन आरएसएस वेबसाइट का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि सिर्फ उस वर्ष अक्टूबर माह में ही 48,890 लोगों ने स्वयंसेवक के रूप में जुड़ने का अनुरोध किया। यह भारत के सामाजिक परिवर्तन और संगठन के प्रति बढ़ते आकर्षण को दर्शाता है।
भारत की अवधारणा पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमें उन कथनों को समझना होगा जो हमारी सोच को प्रभावित करते हैं। उन्होंने लोकप्रिय गीत “सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा” की पंक्ति “हम बुलबुले हैं इसके” पर बताया कि ऐसे भाव हमें अपनी मूल चेतना से दूर करते हैं। उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि भारत में सांस्कृतिक विविधता है। अपितु यह कहना अधिक सही है कि भारत की संस्कृति एक ही है जो विविध रूपों में प्रकट होती है। भारत में विविधता मूल संस्कृति की शाखाएं हैं, उसका विकल्प नहीं।
उन्होंने कहा कि वेलफेयर स्टेट की अवधारणा भारत की अपनी अवधारणा नहीं है, बल्कि पश्चिम से आयातित विचार है। भारत की परंपरा समाज-आधारित दायित्व पर आधारित रही है। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक चार महत्वपूर्ण खंडों में विभाजित है और प्रत्येक खंड भारत के विमर्शों पर नई दृष्टि प्रदान करता है।

अध्ययन ही भारत की परंपरा का मूल – विष्णु त्रिपाठी

जागरण समूह के समूह संपादक श्री विष्णु त्रिपाठी ने कहा कि यह पुस्तक सिर्फ घर या पुस्तकालय में संग्रह के लिए नहीं लिखी गई है, बल्कि इसके अध्ययन, मनन और भाष्य की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा किसी एक पुस्तक या एक मत पर आधारित नहीं है। यहाँ ज्ञान की अनेक धाराएँ हैं। हमारी आध्यात्मिकता भी अध्ययन और चिंतन से ही जन्म लेती है। उन्होंने भारत की पहचान पर उठने वाले प्रश्नों पर स्पष्ट कहा कि भारत हिंदू राष्ट्र है या नहीं जैसी बहसें अध्ययन के अभाव से उत्पन्न होती हैं। जब भारत और भारतीयता पर गौरव का भाव स्थापित हो जाता है, तो ऐसे प्रश्न स्वतः समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने गुरुनानक देव जी का उदाहरण देते हुए बताया कि वे रामनाम के परम उपासक थे और बाबर की आलोचना सीधे अपने भजनों में करते हैं। इसी रामनाम के प्रसार के साथ वे बगदाद तक पहुँचे थे। यह उदाहरण भारतीय अध्यात्म की गहराई और व्यापकता दोनों को दिखाता है।

“यह पुस्तक सोए हुए को जगा देगी” – पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

पूर्व उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि भोपाल आकर इस पुस्तक पर बोलने का अवसर उनके लिए सौभाग्य की बात है। उन्होंने कहा कि हम और यह विश्व सिर्फ एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारत के गौरवशाली अतीत का दर्पण और भविष्य निर्माण की दिशा दिखाने वाला ग्रंथ है। श्री धनखड़ ने कहा कि यह पुस्तक आठ वर्षों के अनुभवों का संग्रह है, जिसमें श्री प्रणब मुखर्जी पर दो महत्त्वपूर्ण लेख भी शामिल हैं।
 

इसे भी पढ़ें: ‘जो कोई भी भारत पर गर्व करता है, वह हिंदू’, आरएसएस प्रमुख मोहन भागतव का बड़ा बयान

वे अंग्रेजी में वक्तव्य देते हुए बोले कि मैं अंग्रेजी में इसलिए बोल रहा हूँ ताकि जो लोग देश की सकारात्मक छवि को समझना नहीं चाहते, वे भी स्पष्ट और सीधे शब्दों में भारत के वास्तविक स्वरूप से परिचित हों। उन्होंने यह भी कहा कि आज का भारत तेजी से बदल रहा है, हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है और विश्व मंच पर एक मजबूत, आत्मविश्वासी और निर्णायक देश के रूप में उभर रहा है।
कार्यक्रम की शुरुआत में श्री राजीव तुली ने सुरुचि प्रकाशन की परंपरा और भविष्य की दिशा का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि सुरुचि प्रकाशन समाज जीवन के विविध महत्वपूर्ण विषयों पर लगातार पुस्तकों, शोध कृतियों और विचारपरक सामग्री का प्रकाशन कर रहा है।
उन्होंने बताया कि आने वाले महीनों में वॉकिज़्म, पंच परिवर्तन और अन्य बौद्धिक मुद्दों पर भी महत्वपूर्ण प्रकाशन सामने आने वाले हैं। राजीव तुली ने कहा कि “हम और यह विश्व” पुस्तक के पाठन के दौरान ऐसा महसूस होता है जैसे पाठक और पुस्तक के बीच सीधा संवाद स्थापित हो रहा हो।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही इस पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण पहले प्रकाशित हुआ था, लेकिन वर्तमान संस्करण में कई महत्त्वपूर्ण और विस्तृत जानकारियाँ जोड़ी गई हैं। यह पुस्तक आज के समाज के बड़े विमर्शों को पढ़ने, समझने और उनके भाष्य लिखने के लिए अत्यंत उपयोगी है।
कार्यक्रम में गणमान्य नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता और बौद्धिक जगत से जुड़े अनेक प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. साधना बलवटे ने किया। अंकुर पाठक ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उपस्थित सभी अतिथियों, गणमान्यजनों और पुस्तक प्रेमियों का धन्यवाद किया। वंदे मातरम् के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments