अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सुर अब बदल चुके हैं। भारत को लेकर उनका नजरिया रातों रात बदल गया। ट्रंप के द्वारा जारी किया गया एक बयान और पूरी दुनिया में अमेरिका और भारत के संबंधों की फिर चर्चा होने लगी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बार ट्रूथ सोशल पर कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि वाशिंगटन और दिल्ली के बीच चल रही व्यापार बातचीत में सफल परिणाम निकलेंगे। ये सकारात्मक पोस्ट उन्होंने भारत के साथ अपनी दोस्ती के लिए लिखा। उन्होंने कहा कि आने वाले हफ्तों में वो अपने बहुत अच्छे दोस्त मोदी से बातचीत करने को उत्सुक हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भले ही भारत से रिश्ते सुधारने के संकेत दे दिए हो।
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वहीं दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रंप की चापलूसी करने वाले नेता अभी भी भारत को कोस रहे हैं। इनमें सबसे पहला नाम पीटर नवारो का है। इस व्यक्ति के बारे में आपने पिछले कुछ दिनों में तो जान ही लिया होगा। डोनाल्ड ट्रंप का ये ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो पिछले कई दिनों से भारत को बुरा भला कह रहा है। अब इसी पीटर नवारो ने भारत की तरफ इशारा करते हुए कहा है कि कुछ देश अमेरिका का खून चूस रहे हैं। अब ऐसे नेताओं से सीधे मुंह लगने के बजाए उनकी बोलती बंद करानी जरूरी भी है। ऐसा ही कुछ भारत ने कर भी दिखाया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत की सबसे बड़ी सरकारी तेल कंपनी ने अपने ताजा टेंडर में अमेरिकी कच्चा तेल खरीदने से परहेज किया है।
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भारत ने अमेरिका की जगह एक ऐसे देश से तेल खरीद लिया जिसका नाम सुनकर पीटर नवारो और पूरे अमेरिका के होश उड़ जाएंगे। भारत की सरकारी तेल कंपनी ने अपने ताजा टेंडर में अमेरिका की बजाए अफ्रीकी देश नाइजीरिया से तेल खरीद लिया। वैसे तो भारत पहले भी नाइजीरिया से थोड़ा बहुत तेल खरीदता आया है। लेकिन भारत ने पहली बार अमेरिका की बजाए अफ्रीकी देश नाइजीरिया के तेल को भाव दिया है। बिज़नेस इनसाइडर अफ्रीका की रिपोर्ट के अनुसार, इस रणनीतिक बदलाव में दो मिलियन बैरल पश्चिम अफ्रीकी कच्चा तेल और एक मिलियन बैरल कच्चा तेल खरीदना शामिल है, जो भारत की अपने ऊर्जा आयात में विविधता लाने और पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
अमेरिका से खरीद कम करने का फैसला भारत की आयात रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। इससे पहले, आईओसी ने अमेरिका से पाँच मिलियन बैरल वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) कच्चा तेल खरीदा था, जो पिछली प्रथाओं से अलग रुख को दर्शाता है। अमेरिकी आयात अब दरकिनार होने के कारण भारत का पश्चिमी अफ्रीकी तेल की ओर रुझान और भी स्पष्ट हो गया है। यह बदलाव ऐसे समय में आया है जब यूक्रेन पर आक्रमण के बाद भारत रियायती दरों पर रूसी तेल का एक बड़ा खरीदार रहा था, जिससे भारत पश्चिमी प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए वैश्विक ऊर्जा मूल्य में उतार-चढ़ाव से खुद को बचा पाया।