Friday, December 19, 2025
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भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए खुला, संसद से नया कानून पास

गुरुवार को संसद की कार्यवाही के दौरान एक अहम फैसला लिया गया है, जिसने देश की ऊर्जा नीति में बड़े बदलाव का संकेत दिया है। भारत की संसद ने ऐसा नया कानून पारित कर दिया है, जिसके तहत अब देश के सख्ती से नियंत्रित नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की एंट्री का रास्ता खुल गया है। सरकार इसे स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार की दिशा में बड़ा कदम बता रही है, जबकि विपक्ष ने सुरक्षा और जवाबदेही से जुड़े प्रावधानों को कमजोर करने का आरोप लगाया है।
बता दें कि इस विधेयक को बुधवार को लोकसभा और गुरुवार को राज्यसभा की मंजूरी मिली है। अब इसे कानून बनने के लिए राष्ट्रपति की औपचारिक स्वीकृति का इंतजार है, जिसे आम तौर पर औपचारिकता ही माना जाता है। सरकार का कहना है कि यह कदम भारत को वैश्विक परमाणु ऊर्जा बाजार में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा, खासकर ऐसे समय में जब कई देश जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए परमाणु ऊर्जा पर दोबारा विचार कर रहे हैं।
गौरतलब है कि यह बदलाव दशकों से चले आ रहे उस मॉडल से हटने का संकेत देता है, जिसमें परमाणु ऊर्जा पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में रही है। सरकार समर्थकों का तर्क है कि निजी क्षेत्र की भागीदारी से निवेश, तकनीक और दक्षता बढ़ेगी। वहीं आलोचकों का कहना है कि इससे स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े जोखिम लंबे समय में गंभीर रूप ले सकते हैं।
ऊर्जा और पर्यावरण नीति से जुड़े विशेषज्ञ कार्तिक गणेशन के अनुसार, यह फैसला निजी कंपनियों को साफ संदेश देता है कि भारत परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में कारोबार के लिए तैयार है। वहीं परमाणु ऊर्जा विभाग का प्रभार संभाल रहे केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में कहा कि यह विधेयक भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों और मौजूदा तकनीकी व आर्थिक हालात को ध्यान में रखकर लाया गया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि सुरक्षा, संरक्षा और नियामक ढांचे से कोई समझौता नहीं किया गया।
मौजूद जानकारी के अनुसार, भारत ने हाल के महीनों में परमाणु ऊर्जा से जुड़े शोध और सहयोगी गतिविधियों के लिए दो अरब डॉलर से अधिक का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है। भारत दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में शामिल है और उसकी 75 फीसदी से ज्यादा बिजली अब भी कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनों से आती है। सरकार का लक्ष्य है कि 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा क्षमता स्थापित की जाए, जिससे करोड़ों घरों को बिजली मिल सके।
हालांकि विपक्षी दलों ने विधेयक के कई प्रावधानों पर सवाल उठाए हैं। आम आदमी पार्टी के सांसद अशोक मित्तल ने कहा कि परमाणु संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को लेकर कानून में पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं हैं। इसी तरह परमाणु ऊर्जा के विरोध में लंबे समय से सक्रिय कार्यकर्ता जी. सुंदरराजन ने इसे खतरनाक कानून करार देते हुए कहा कि इससे कंपनियों की जवाबदेही कम होती है और आम नागरिकों के लिए मुआवजे का रास्ता भी सीमित हो जाता।
सरकार ने विपक्ष की उस मांग को स्वीकार नहीं किया, जिसमें विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजने की बात कही गई थी। ऐसे में यह कानून भारत की ऊर्जा नीति, निजी निवेश और सुरक्षा बहस के केंद्र में आ गया है और आने वाले समय में इस पर राजनीतिक और सामाजिक चर्चा तेज होने की संभावना बनी हुई हैं।
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