कुछ ही समय पहले तक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की कड़ी आलोचना कर रहे थे। उनका आरोप था कि भारत रूस से भारी मात्रा में तेल आयात कर यूक्रेन युद्ध में रूस को अप्रत्यक्ष रूप से फंडिंग दे रहा है। किंतु अब वही ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बात के लिए धन्यवाद दे रहे हैं कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करने में सहयोग कर रहे हैं। देखा जाये तो यह बदलाव अचानक नहीं है, बल्कि बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और अमेरिकी राजनीति की आंतरिक जरूरतों का प्रतिबिंब है।
ट्रंप की मजबूरियां
पहला कारण यह है कि अमेरिका में चुनावी माहौल तेजी से बन रहा है। ट्रंप अपनी विदेश नीति को “व्यावहारिक और अमेरिका-हितैषी” दिखाना चाहते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध अमेरिकी करदाताओं पर भारी बोझ बन चुका है और अमेरिकी जनमत में यह भावना बढ़ रही है कि युद्ध जल्दी समाप्त होना चाहिए। ऐसे में भारत को सहयोगी के रूप में प्रस्तुत करना ट्रंप के लिए राजनीतिक रूप से लाभकारी है।
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दूसरा कारण भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका है। जी-20 शिखर सम्मेलन से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करवाने में मध्यस्थता की कोशिशों तक, भारत ने यह साबित किया है कि वह पश्चिम और रूस, दोनों के साथ संवाद करने की क्षमता रखता है। इस “विश्वसनीय मध्यस्थ” की भूमिका को स्वीकार करते हुए ट्रंप भी अपनी छवि को भारत समर्थक दिखाना चाहते हैं।
तीसरा पहलू यह है कि ट्रंप की राजनीतिक शैली टकराव और सौदेबाजी दोनों पर आधारित है। पहले कठोर बयान देकर वह भारत पर दबाव बनाते रहे और अब मित्रवत लहजे में सहयोग की प्रशंसा कर रहे हैं। यह उनकी “डील मेकर” छवि का हिस्सा है। ट्रंप के रुख में यह परिवर्तन अमेरिका की आंतरिक राजनीति, भारत की बढ़ती सामरिक अहमियत और युद्ध की थकान से उपजी वैश्विक परिस्थितियों का परिणाम है। यह परिघटना दर्शाती है कि भारत की कूटनीतिक स्थिति आज इतनी मज़बूत है कि विश्व राजनीति के सबसे विवादास्पद मुद्दों पर भी उसे निर्णायक सहयोगी की तरह देखा जाने लगा है।
दोनों नेताओं के बीच की वार्ता
हम आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनकी फोन पर बातचीत बहुत अच्छी रही। इस दौरान ट्रंप ने अपने मित्र को जन्मदिन की बधाई दी और रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करने में सहयोग के लिए भारतीय नेता का आभार जताया। ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके 75वें जन्मदिन से एक दिन पहले फोन किया और उन्हें शुभकामनाएं दीं। इसे शुल्क के मुद्दे पर तनाव के बीच भारत के साथ संबंधों में सुधार करने के अमेरिकी प्रयासों के हिस्से के रूप में एक महत्वपूर्ण संकेत के रूप में देखा जा रहा है। ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किया, ‘‘अभी-अभी अपने मित्र, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फ़ोन पर बहुत अच्छी बातचीत हुई। मैंने उन्हें जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं दीं। वे बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। नरेंद्र: रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध समाप्त करने में आपके समर्थन के लिए धन्यवाद।’’ उन्होंने अपने संदेश ने नीचे राष्ट्रपति डीजेटी लिखा।
वहीं मोदी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया और अपने 75वें जन्मदिन पर ट्रंप के फोन कॉल और बधाई के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री ने कहा, “मेरे मित्र, राष्ट्रपति ट्रंप, मेरे 75वें जन्मदिन पर आपके फोन कॉल और हार्दिक बधाई के लिए धन्यवाद।” सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में मोदी ने कहा कि ट्रंप की तरह वह भी भारत-अमेरिका व्यापक एवं वैश्विक साझेदारी को ‘‘नई ऊंचाइयों’’ पर ले जाने के लिए ‘‘पूरी तरह से’’ प्रतिबद्ध हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप को यह भी बताया कि यूक्रेन संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में उनकी पहल का भारत समर्थन करता है। ट्रंप ने कहा कि मोदी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और उन्होंने यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने में प्रधानमंत्री के सहयोग के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
हम आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन ऐसे दिन किया, जब भारत और अमेरिका ने प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर नयी दिल्ली में वार्ता का एक नया दौर आयोजित किया। हम आपको यह भी बता दें कि अमेरिका द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने के बाद यह पहली बातचीत है, जिसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह दोनों नेताओं द्वारा सोशल मीडिया पर संदेशों के आदान-प्रदान के कुछ दिनों बाद हुई है, जिसमें संबंधों को फिर से बेहतर बनाने की मंशा का संकेत दिया गया था।
ट्रंप ने क्यों लिया यू-टर्न?
देखा जाये तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ताजा रुख बताता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हित किसी भी रिश्ते से बड़ा होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 75वें जन्मदिन पर दी गई बधाई और “भारत-अमेरिका साझेदारी को नई ऊँचाइयों पर ले जाने” की बात, केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है। इसके पीछे गहरे भू-राजनीतिक संकेत छिपे हैं। ट्रंप ने मोदी को फोन कर न केवल अपने पुराने कटु व्यवहार को भुलाने की कोशिश की, बल्कि यूक्रेन संकट के शांतिपूर्ण समाधान में भारत का समर्थन पाने का भी प्रयास किया। यही नहीं, जिस व्यापारिक वार्ता को ट्रंप प्रशासन ने भारी-भरकम 50% टैरिफ लगाकर ठप कर दिया था, वही वार्ता अब सकारात्मक माहौल में फिर से शुरू हो चुकी है।
लेकिन असली सवाल यह है कि ट्रंप अचानक इतने नरम क्यों दिख रहे हैं? इसका पहला कारण है चीन और ऊर्जा राजनीति। दरअसल ट्रंप ने मंगलवार को ऐलान किया कि अमेरिका और चीन के बीच टिकटॉक सौदा हो गया है और वे शुक्रवार को राष्ट्रपति शी जिनपिंग से इस पर बात करेंगे। यह साफ संकेत है कि वाशिंगटन बीजिंग से भी रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में, भारत को नाराज़ रखना ट्रंप के लिए और भी जोखिम भरा हो सकता है।
दूसरा कारण है एससीओ सम्मेलन का संदेश। दरअसल हाल ही में हुए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में मोदी और जिनपिंग, दोनों ही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मंच साझा करते दिखे। यह तस्वीर अमेरिका के लिए एक कड़ा संदेश थी कि भारत चाहे तो बहुध्रुवीय गठबंधनों में अपने हित साध सकता है। संभव है ट्रंप को इसी मौके पर अपनी रणनीतिक भूल का एहसास हुआ हो कि भारत को कठोर टैरिफ और दबाव की नीति से दूर धकेलना, अंततः चीन और रूस के लिए ही स्पेस खाली करना है।
तीसरा कारण है चुनाव और भारतीय मूल का वोट बैंक। देखा जाये तो ट्रंप भली-भांति जानते हैं कि 2028 की राह आसान नहीं है। अमेरिकी राजनीति में भारतीय मूल के मतदाता निर्णायक साबित हो सकते हैं। भारत के साथ रिश्ते सुधारना इस वोट बैंक को साधने का व्यावहारिक तरीका है।
इसलिए, ट्रंप की नरमी को केवल कूटनीतिक शिष्टाचार मानना भूल होगी। यह असल में उनकी रणनीतिक यू-टर्न है— जहाँ चीन से डील, भारत से मेल और रूस को साधने की मजबूरी, सब एक साथ सामने आ रही है। सवाल यह है कि क्या यह बदलाव स्थायी होगा, या फिर यह केवल चुनावी और रणनीतिक दबाव का अस्थायी परिणाम है? देखा जाये तो भारत के लिए संदेश स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसकी भूमिका अब ‘संतुलन साधने वाले खिलाड़ी’ से कहीं आगे बढ़कर निर्णायक शक्ति बनती जा रही है।
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता
दूसरी ओर, भारत–अमेरिका व्यापार वार्ता को देखें तो अटकी हुई व्यापारिक बातचीत आखिरकार फिर से पटरी पर लौटती दिख रही है। वाणिज्य मंत्रालय ने मंगलवार को बताया है कि अमेरिका के असिस्टेंट ट्रेड रिप्रज़ेंटेटिव ब्रेंडन लिंच के साथ हुई वार्ता “सकारात्मक और दूरदृष्टि वाली” रही। दोनों पक्षों ने तय किया है कि एक “परस्पर लाभकारी व्यापार समझौते” को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने के लिए प्रयास तेज़ किए जाएंगे।
हम आपको बता दें कि ब्रेंडन लिंच 16 सितंबर को भारत पहुँचे और वाणिज्य मंत्रालय के विशेष सचिव राजेश अग्रवाल के साथ विस्तृत चर्चा की। दोनों देशों के मुख्य वार्ताकारों ने भारत–अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर बातचीत आगे बढ़ाने के अगले कदम तय किए। अमेरिकी दूतावास के अनुसार, यह बैठक रचनात्मक और भविष्य की दिशा तय करने वाली रही। गौरतलब है कि यह पहली सामना–सामनी की वार्ता है, जब से ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 50% तक का टैरिफ लगा दिया था। उस समय अमेरिकी दबाव में अगस्त 2025 की प्रस्तावित छठी दौर की वार्ता भी रद्द हो गई थी। इसमें रूस से तेल खरीद पर लगाए गए 25% दंडात्मक शुल्क ने आग में घी का काम किया।
इसके बाद से दोनों देशों के बीच केवल साप्ताहिक वर्चुअल मीटिंग्स होती रहीं। लेकिन अब जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रति अपना रुख नरम किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, तो वार्ताओं में नई ऊर्जा दिख रही है। हम आपको बता दें कि लंबे समय से ऊँचे टैरिफ ढाँचे के कारण दोनों देशों के निर्यातकों को भारी अनिश्चितता का सामना करना पड़ा था। अब व्यापार समझौते पर बनी नई सहमति से इस दबाव के कम होने की उम्मीद है। कुल मिलाकर, यह वार्ता न केवल व्यापारिक रिश्तों में पिघलती बर्फ का संकेत है, बल्कि यह भी दिखाती है कि भारत और अमेरिका दोनों अब आपसी मतभेदों को किनारे रखकर साझा हितों पर आगे बढ़ना चाहते हैं।