भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में एससीओ समिट में हिस्सा लेने के लिए चीन पहुंचे थे। यहां पर उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई थी। भारत और चीन ने दुनिया के बाकी देशों को मैसेज दिया कि अगर अपने आप को सुपरपावर समझने वाले देश आंख दिखाने की कोशिश करेंगे तो इन दोनों ही देशों के पास विकल्प खुले हैं। भारत के पास अपने सामान को बेचने के लिए बाजार ढूढ़ने का विकल्प है तो चीन के पास अपने सामान खरीदने का और बाजारों के रास्ते खोलने का विकल्प है। चीन और भारत आपस में बड़ी डील कर लेंगे लेकिन अमेरिका का क्या होगा? यही मैसेज देने की कोशिश की गई। रही सही कसर रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने पूरी कर दी। एससीओ समिट से आई वो तस्वीर जिसमें शी जिनपिंग, व्लादिमीर पुतिन और नरेंद्र मोदी हंसते-खिलखिलाते हुए नजर आए थे। इसके अलावा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अलग थलग पड़े हुए नजर आए थे।
इसे भी पढ़ें: 150 साल जिएंगे…पुतिन-जिनपिंग-किम का हॉट माइक ऑन, वायरल हो गई तीनों नेताओं की अमर होने वाली बहस
पाकिस्तान जो चीन की कठपुतली माना जाता है। मदद पड़ने पर चीन की तरफ मुंह उठाकर देखता है। चीन भी उसकी मदद करता है। चीन पाकिस्तान का सबसे अच्छा दोस्त माना जाता रहा है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य नहीं लग रहे हैं। ऐसा लगता है कि चीन पाकिस्तान से अपना पीछा छुड़ाना चाहता है। वहीं पाकिस्तान भी अब भीख मांगने के लिए दूसरे देनदारों की तरफ नजरें गड़ाए बैठा है। खबरों के अनुसार पाकिस्तान ने अपने पुराने रेलवे नेटवर्क के एडवांसमेंट के लिए चीन की बजाए एशियाई विकास बैंक यानी एडीबी से मदद लेने का फैसला किया है। पाकिस्तान ने एडीबी से दो अरब डॉलर का लोन करांची रोड़ी रेलवे सेक्शन को बेहतर बनाने के लिए मांगा है।
इसे भी पढ़ें: चीन के प्रधानमंत्री से मिले PAK PM, CPEC 2.0 पर सहयोग की सहमति जताई
ये वहीं एमएल1 परियोजना है जो कभी पाकिस्तान चीन आर्थिक गलियारा याना सीपीईसी की सबसे बड़ी और महत्वकांक्षी योजना थी। एक वरिष्ठ पाकिस्तानी अधिकारी ने निक्केई एशिया को बताया कि एडीबी मेन लाइन-1 (एमएल-1) रेलवे के 480 किलोमीटर लंबे कराची-रोहड़ी खंड के उन्नयन के लिए 2 अरब डॉलर का ऋण देने वाला है। 6.7 अरब डॉलर की कुल लागत के साथ, एमएल-1, 50 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का सबसे बड़ा घटक है, जिसे कराची और पेशावर के बीच 1,726 किलोमीटर लंबे ट्रैक के आधुनिकीकरण के लिए डिज़ाइन किया गया है। अगर इसे मंज़ूरी मिल जाती है, तो यह पहली बार होगा जब पाकिस्तान में किसी प्रमुख बेल्ट एंड रोड परियोजना का वित्तपोषण चीन के बजाय किसी बहुपक्षीय ऋणदाता द्वारा किया जाएगा।
इसे भी पढ़ें: हथियारों की परेड निकाल जिनपिंग अमेरिका को देना चाहते थे संदेश, वो मिल गया, ट्रंप ने किया स्वीकार- हां मैं देख रहा था
एडीबी ऋण अस्थायी बाजार दर पर मिलेगा, जो सीपीईसी के तहत बीजिंग द्वारा पहले दी गई रियायती शर्तों के विपरीत है। चीन का यह कदम पाकिस्तान द्वारा चीनी बिजली उत्पादकों को 1.5 अरब डॉलर के बकाया भुगतान और 2021 से 21 चीनी नागरिकों की हत्या के बाद बढ़े सुरक्षा जोखिमों को लेकर बढ़ती बेचैनी के बीच उठाया गया है। निक्केई एशिया ने पाकिस्तान क्षेत्रीय आर्थिक मंच के अध्यक्ष हारून शरीफ के हवाले से कहा कि जब चीन ने [एमएल-1] की वित्तीय स्थिति, अपेक्षित रिटर्न और [बिजली] भुगतान में पाकिस्तान की समस्याओं की समीक्षा की, तो उसने इस परियोजना के लिए धन न देने का फैसला किया। विशेषज्ञों ने परियोजना लागत और डिज़ाइन में बार-बार संशोधन की ओर भी इशारा किया, जिसकी शुरुआत 6.8 अरब डॉलर से हुई और 2022 में लगभग 10 अरब डॉलर हो गई, और फिर इसे घटाकर 6.7 अरब डॉलर कर दिया गया, जो चीन की अनिच्छा का एक और कारण था। एडीबी के हस्तक्षेप के साथ, इस परियोजना में खुली बोली और सख्त खरीद मानदंड शामिल होंगे, जबकि पहले सीपीईसी परियोजनाओं को बड़े पैमाने पर चीनी ठेकेदारों को सौंपा गया था।