दाल भारतीय खानपान का एक अहम हिस्सा है, जो पोषण से भरपूर होती है। खासतौर पर शाकाहारियों के लिए यह प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत मानी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मसूर की दाल को कुछ धार्मिक मान्यताओं में मांसाहारी भोजन की श्रेणी में रखा जाता है? यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन हिंदू धर्म में इसे खाने से परहेज किया जाता है, खासकर ब्राह्मण और साधु-संत इसे अपने आहार में शामिल नहीं करते।
धार्मिक मान्यता: मसूर की दाल को क्यों मांसाहारी माना जाता है?
कुछ मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान विष्णु ने स्वरभानु नामक असुर का सिर काटा, तो उसके रक्त से मसूर की दाल उत्पन्न हुई। इसी वजह से इसे मांसाहारी भोजन के रूप में देखा जाता है। वहीं, कुछ अन्य धार्मिक कथाओं में कहा गया है कि यह कामधेनु गाय के रक्त से उत्पन्न हुई थी, इसलिए इसे पवित्र भोजन नहीं माना गया।
आयुर्वेदिक कारण: मसूर की दाल का तामसिक प्रभाव
धार्मिक मान्यताओं के अलावा, आयुर्वेद के अनुसार मसूर की दाल में तामसिक गुण अधिक होते हैं। इसे खाने से सुस्ती, क्रोध और उग्रता बढ़ सकती है, साथ ही यह कामेच्छा को भी उत्तेजित कर सकती है। यही कारण है कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले लोग इसे खाने से बचते हैं।
पोषण की दृष्टि से नॉन-वेज से तुलना क्यों?
मसूर की दाल में उच्च मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जो इसे पोषण के लिहाज से नॉन-वेज के करीब लाता है। यही वजह है कि कई बार इसे मांसाहारी भोजन की श्रेणी में गिना जाता है, हालांकि यह वैज्ञानिक रूप से पूरी तरह शाकाहारी है।