Tuesday, July 1, 2025
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महाराष्ट्र के सियासी रण में दोगुनी ताकत से उतरा RSS, विदर्भ की 62 सीटों पर इस रणनीति से कर रहा काम

महाराष्ट्र के सियासत में विदर्भ का एक अहम किरदार है। नागपुर और उसके आसपास के क्षेत्र को विदर्भ में समेटा जाता है। महाराष्ट्र की कुल 288 विधानसभा सीटों में से यहां 62 सीटें हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र की सत्ता हासिल करने के लिए विदर्भ में अपनी पकड़ को मजबूत करना और चुनावी जीत हासिल करना हर पार्टी के लिए जरूरी रहता है। यही कारण है कि यहां भाजपा मजबूत हुई तो पार्टी को महाराष्ट्र में सत्ता में आने का मौका भी मिल गया।
 

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2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस क्षेत्र ने भाजपा का सहयोग किया और पार्टी ने जबर्दस्त जीत हासिल की। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा जिसका असर पार्टी के नंबर्स पर भी देखने को मिला। ऐसे में विदर्भ में सब कुछ भाजपा के लिए ठीक रहे, इसको सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी अब आरएसएस ने अपने हाथों में ले ली है। दावा किया जा रहा है कि आरएसएस इस बात को सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि विदर्भ क्षेत्र की 62 सीटों में से कम से कम 35 सीटें भाजपा के खाते में जानी चाहिए। 
विदर्भ वहीं क्षेत्र है जहां से भाजपा के भाजपा के नितिन गडकरी, देवेंद्र फड़नवीस, चंद्रशेखर बावनकुले और कांग्रेस के नाना पटोले और विजय वडेट्टीवार जैसे नेता आते हैं। हालांकि विदर्भ की अपनी कई समस्याएं हैं। किसानों का मुद्दा यहां खूब रहा है। हालांकि, इस बार किसानें की आत्महत्या यहां के शीर्ष मुद्दों में नहीं है। लेकिन ग्रामीणों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कृषि संकट अभी भी बरकरार है। हालांकि इंफ्रास्ट्रक्चर के काम यहां जरूर हुए हैं। पिछले 10 वर्षों में नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस ने इस क्षेत्र के विकास से संबंधित कामों को जोड़ दिया है।
हालांकि अभी भी ऐसे कई मांग है जो की अधूरी हैं। यही कारण है कि भाजपा इन्हीं अधूरी मांगों को पूरा करने का वादा करके इस क्षेत्र में अपनी ताकत लगा रही है। विदर्भ के ग्रामीण इलाकों में गरीबी आज भी बरकरार है। महंगाई और बेरोजगारी ग्रामीणों के लिए बड़ा विषय है। साथ ही साथ पीने और सिंचाई के लिए पानी उपलब्धता अभी भी इस क्षेत्र की बड़ी चुनौती है। हालांकि, जिस क्षेत्र में 62 सीटें दांव पर हैं, उस क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा  द्वारा चलाए जा रहे चुनाव अभियान हर किसी को हैरान कर रहा। ऐसा लगता है कि वे ज़मीनी स्तर पर लोगों की समस्याओं से बेखबर हैं। 
यह तथ्य कि किसानों के पास अपने खेतों की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं है, यहां एक बड़ा मुद्दा है लेकिन कांग्रेस इस पर बिल्कुल भी शोर नहीं मचा रही है। अलग विदर्भ राज्य के लिए आंदोलन लगभग आठ साल पहले ख़त्म हो गया था। बीच-बीच में अलग विदर्भ के कुछ समर्थक आपको बारिश में मेंढकों की तरह टर्र-टर्र करते हुए मिलेंगे, लेकिन आज यह आंदोलन पूरी तरह से गति खो चुका है। कुछ दिन पहले, नागपुर शहर के धरमपेठ इलाके के पास 200 से अधिक आरएसएस कार्यकर्ता अपने परिवारों के साथ मिले थे। इससे कुछ दिन पहले आरएसएस ने कुटुंब शाखा नामक एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था।
 

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परंपरागत रूप से, केवल स्वयंसेवक ही विभिन्न कार्यों और कार्यक्रमों के लिए शाखाओं में आते थे; आरएसएस के पदाधिकारी मिलन समारोह और पारिवारिक समारोहों के लिए स्वयंसेवकों के घरों में जाते थे; वे उन लोगों का समर्थन पाने के लिए बगीचों या मैदानों में एक अनौपचारिक बातचीत का आयोजन करेंगे जो आरएसएस से नहीं हैं, लेकिन इस बार वे एक अलग रणनीति का उपयोग कर रहे हैं। आरएसएस की शैली ऐसी है कि वे कभी भी लोगों से संपर्क नहीं करेंगे और उनसे सीधे भाजपा को वोट देने के लिए नहीं कहेंगे। जब तक उन्हें सामने वाले का भरोसा जीतने का भरोसा नहीं हो जाता, तब तक वे ज्यादा शब्दों में ऐसा नहीं कहते। लेकिन वे (भाजपा और उसके नेताओं के आसपास) इतनी सकारात्मक ऊर्जा और माहौल बनाते हैं कि आपको स्वचालित रूप से एक संदेश मिल जाता है जो वे व्यक्त करने की कोशिश कर रहे हैं।
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