दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद मुस्तफाबाद सीट को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। 40% से अधिक मुस्लिम आबादी वाले इस क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक मोहन सिंह बिष्ट ने जीत हासिल की है और अब उन्होंने मुस्तफाबाद का नाम बदलने का ऐलान किया है।
शिव विहार या शिव पुरी बनाने की तैयारी?
मोहन सिंह बिष्ट ने चुनाव प्रचार के दौरान और जीत के बाद साफ कहा था कि मुस्तफाबाद का नाम बदलकर “शिव विहार” या “शिव पुरी” कर दिया जाएगा। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है और इसका जबरदस्त विरोध शुरू हो गया है।
आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व विधायक हाजी यूनुस ने मोहन सिंह बिष्ट को चुनौती देते हुए कहा है कि “जब तक मैं जिंदा हूं, मुस्तफाबाद का नाम नहीं बदला जाएगा।”
“58% की चलेगी” बयान पर हंगामा
मोहन सिंह बिष्ट ने अपने एक बयान में कहा था कि “मुस्तफाबाद में 42% नहीं, बल्कि 58% की चलेगी।” उनके इस बयान पर हाजी यूनुस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:
- “यहां 42% नहीं, बल्कि 48.9% मुस्लिम आबादी है। पहले उन्हें अपनी जानकारी दुरुस्त कर लेनी चाहिए।”
- “अगर वे नाम बदलने की बात कर रहे हैं, तो यह सिर्फ एक सियासी बयान है, क्योंकि मुस्तफाबाद का नाम कभी बदला नहीं जा सकता।”
“मुस्तफाबाद की जनता ने चूड़ियां नहीं पहनी”
हाजी यूनुस ने अपने बयान में भाजपा को आड़े हाथों लेते हुए कहा:
- “अगर उन्हें नाम बदलने की इतनी ही फिक्र थी, तो एमसीडी चुनाव से पहले एलजी और भाजपा ने शिव विहार का नाम बदलकर ‘ईस्ट करावल नगर’ कर दिया। जब वे शिव विहार का नाम नहीं बचा सके, तो मुस्तफाबाद का नाम कैसे बदलेंगे?”
- “मुस्तफाबाद की जनता ने चूड़ियां नहीं पहनी हैं, इस तरह से नाम बदलने की कोई साजिश सफल नहीं होगी।”
2026 परिसीमन का जिक्र
AAP नेता हाजी यूनुस ने आगे कहा कि 2026 में विधानसभा का परिसीमन होने वाला है और इसमें नई विधानसभा सीट जोड़ी जाएगी। उन्होंने सुझाव दिया कि:
- “अगर BJP को नाम बदलने का इतना ही शौक है, तो वे नई सीट को शिव पुरी या कुछ और नाम दे सकते हैं।”
- “लेकिन मुस्तफाबाद का नाम किसी भी हाल में नहीं बदलेगा, यह हमारे जीते जी कभी नहीं बदलेगा।”
क्या सच में बदलेगा नाम?
फिलहाल, भाजपा की ओर से मुस्तफाबाद का नाम बदलने को लेकर कोई आधिकारिक प्रस्ताव नहीं आया है। लेकिन, मोहन सिंह बिष्ट के बयान से साफ है कि पार्टी इस मुद्दे पर आगे बढ़ सकती है।
हालांकि, स्थानीय लोगों और राजनीतिक विरोधियों का जबरदस्त विरोध इसे बड़ा सियासी मुद्दा बना सकता है। अब देखना होगा कि भाजपा इस पर क्या कदम उठाती है और क्या दिल्ली सरकार इसे मंजूरी देती है या नहीं।