जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बृहस्पतिवार को अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर लिया। हालांकि जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल कराने का उनका वादा अब भी पूरा होता नजर नहीं आता जो कि उनके प्रमुख चुनावी वादों में से एक था।
अब्दुल्ला ने पिछले साल 16 अक्टूबर को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनकी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में भारी जीत हासिल की थी जो लगभग एक दशक में पार्टी की पहली जीत थी।
अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के अधिकतर वादे अब भी अधूरे हैं।
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अपने घोषणापत्र ‘गरिमा, पहचान और विकास’ में पार्टी ने 2000 में जम्मू कश्मीर विधानसभा द्वारा पारित स्वायत्तता प्रस्ताव के पूर्ण कार्यान्वयन, अनुच्छेद 370 और 35ए के संबंध में यथास्थिति बहाल करने और पांच अगस्त, 2019 से पहले की स्थिति के अनुसार राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए प्रयास करने का वादा किया।
पार्टी ने वादा किया था कि अंतरिम अवधि में वह जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर सरकार के कामकाज के नियम, 2019 को फिर से तैयार करने का प्रयास करेगी।
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घोषणापत्र में कहा गया था कि पार्टी पांच अगस्त, 2019 के बाद जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को प्रभावित करने वाले कानूनों को संशोधित, अमान्य और निरस्त करने का प्रयास करेगी और जम्मू कश्मीर के लोगों के भूमि एवं रोजगार के अधिकारों की रक्षा करेगी।
हालांकि, पहले वर्ष में नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार इन वादों को पूरा करने की दिशा में कुछ खास नहीं कर पाई है।
सरकार को घाटी स्थित विपक्षी दलों के साथ-साथ अपने ही खेमे से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, जिन्होंने उस पर ‘‘कुछ नहीं करने’’ और ‘‘केवल केंद्र और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को खुश करने’’ का आरोप लगाया है।
श्रीनगर से पार्टी के लोकसभा सदस्य रूहुल्लाह मेहदी ने स्वीकार किया कि सरकार राजनीतिक मोर्चे पर विफल रही है।
मेहदी ने हाल में कहा, ‘‘राजनीतिक मोर्चे पर जो कुछ भी किया जाना चाहिए था, वह नहीं हुआ। इरादा दिखाने की जरूरत थी लेकिन मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि अब तक वह नहीं दिखाया गया है।’’
हालांकि, सत्तारूढ़ दल का कहना है कि सीमित शक्तियों के बावजूद उसने जनता का जीवन आसान बनाया है।
पार्टी ने कहा कि उसने गरीब दुल्हनों के लिए विवाह सहायता निधि 50,000 रुपये से बढ़ाकर 75,000 रुपये कर दी है, सभी जिलों में महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा का विस्तार किया है, अंतर-जिला स्मार्ट बस सेवा शुरू की है, शैक्षणिक सत्र को अक्टूबर-नवंबर तक बहाल किया है, जमीन खरीदने या संपत्ति हस्तांतरित करने वाले सगे संबंधियों के लिए स्टांप शुल्क में छूट दी है और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को मुफ्त राशन दिया है।
मुख्यमंत्री अक्सर अपनी सरकार की सीमाओं के लिए निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल के बीच शक्तियों के विभाजन को जिम्मेदार ठहराते हैं।
पिछले एक साल में सरकार के सामने आई कई चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं।
पहलगाम में 22 अप्रैल को हुआ आतंकवादी हमला जम्मू कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका था और इसने घाटी में पर्यटन को बहुत नुकसान पहुंचाया।
इससे पहले अगस्त में श्रीनगर में अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक गंभीर बात कही। बख्शी स्टेडियम में एक आधिकारिक समारोह को संबोधित करते हुए अब्दुल्ला ने कहा, “पिछली बार जब मैं यहाँ खड़ा था, तब मैं एक राज्य का मुख्यमंत्री था। हमारे पास एक विधानसभा थी जो निर्णय लेती थी, और एक मंत्रिमंडल था जो उन्हें लागू करता था। हमारे पास अपना झंडा, अपना संविधान, अपने कानून थे।” उन्होंने आगे कहा: “आज, मैं एक केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री हूँ। मंत्रिमंडल के निर्णय पारित होते हैं, लेकिन कई स्वीकृत नहीं होते। कुछ फाइलें वापस नहीं आतीं। कुछ गायब हो जाती हैं।” शक्तिहीनता की यह स्वीकारोक्ति पिछले साल विधानसभा के लिए अब्दुल्ला के चुनावी भाषणों से बिल्कुल अलग थी।