यूक्रेन ने एक बड़ा फैसला लिया है। अब वह अपने ही देश में बने हथियारों की विदेशों में बेचना शुरू कर रहा है। ये वही यूक्रेन है जो इस समय रूस के साथ चल रहे युद्ध में दिन-रात लड़ रहा है और कई मोर्चों पर संसाधनों की कमी झेल रहा है। फिर भी, सरकार का कहना है कि यह कदम “मजबूरी नहीं, बल्कि समझदारी” है। सरकार का मानना है कि इससे देश की रक्षा उद्योग को ताकत मिलेगा, आर्थिक स्थिति सुधरे और विदेशी सहयोग भी बढ़ेगा।
पिछले कुछ सालों में यूक्रेन ने अपने घरेलू हथियार उत्पादन में बड़ा इजाफा किया है। अब लगभग 60% हथियार, जैसे ड्रोन, तोपखाने और बख्तरबंद गाड़ियाँ, वहीं के कारखानों में बन रहे हैं। राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की चाहते हैं कि यह हिस्सा और बढ़े ताकि यूक्रेन किसी भी देश पर निर्भर न रहे।
सरकार ने पहले लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों को हटा दिया है। अब उनका मानना है कि जो तकनीक और हथियार युद्ध के मैदान में परखे जा चुके हैं, उनकी विदेशों में बिक्री से देश की आर्थिक और रक्षा क्षमता दोनों बढ़ेंगी।
रक्षा कंपनियाँ भी कह रही हैं कि अगर वे अपने हथियार विदेशों में बेच पाएँगी, तो उस पैसे से नई तकनीक पर रिसर्च, फैक्ट्री विस्तार और विदेशी निवेश लाने में मदद मिलेगी। यानी युद्ध के बीच भी यूक्रेन अपनी इंडस्ट्री को टिकाऊ और प्रॉफिटेबल बनाने की कोशिश कर रहा है।
सरकार ने साफ किया है कि यह निर्यात तभी होगा जब घरेलू सेना की ज़रूरतें पहले पूरी हों। साथ ही यह भी तय किया गया है कि कोई भी सौदा रूस, बेलारूस या ईरान जैसे दुश्मन देशों के साथ नहीं होगा। संसद ने पारदर्शिता और निगरानी के लिए कड़े नियम भी बनाए हैं।
इस बीच, अमेरिका और यूरोपीय देश यूक्रेनी कंपनियों के साथ संयुक्त उत्पादन और टेक्नोलॉजी साझेदारी के समझौते कर रहे हैं। इससे यूक्रेन को न सिर्फ नई तकनीक मिल रही है, बल्कि वह दुनिया के लिए एक भरोसेमंद रक्षा साझेदार के रूप में भी उभर रहा है।
हालाँकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि यूक्रेन की रक्षा प्रणाली में अब भी भ्रष्टाचार और अव्यवस्था की समस्या है। वे कहते हैं कि अगर निगरानी मजबूत नहीं रही, तो यह निर्यात नीति दोधारी तलवार साबित हो सकती है।
फिर भी, कीव के रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यूक्रेन अपनी उत्पादन क्षमता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं बढ़ाएगा, तो उसके पास न तो फंड बचेगा, न ही लंबे समय तक युद्ध झेलने की ताकत।
कुल मिलाकर, यूक्रेन का यह फैसला जोखिम भरा जरूर है, लेकिन यह उसकी आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम भी है। यह दिखाता है कि युद्ध के बीच भी यूक्रेन सिर्फ लड़ नहीं रहा। वह अपने भविष्य की तैयारी भी कर रहा है।