एक हफ्ते पहले ही भारत ने अपना 76वां गणतंत्र दिवस मनाया है। इसके अलावा भी दो और त्योहार देश में चल रहे हैं। एक 144 साल में आने वाला महाकुंभ दिल्ली से महज कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर प्रयागराज में चल रहा है और दूसरा लोकतंत्र का पर्व दिल्ली में विधानसभा चुनाव। देश और प्रदेश के तमाम नेता इन गणतंत्र दिवस समारोह में कर्तव्यपथ पर भी नजर आए, अनेक बडे नेता प्रयागराज में या तो कुंभ-स्नान कर चुके हैं या जाने वाले हैं, वहीं दिल्ली के नेता चुनावी मैदान में पसीना बहा रहे हैं। लेकिन इन सबमें कांग्रेस के शीर्ष नेता और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की गैरमौजूदगी से सवाल उठने लगे हैं।
कांग्रेस नेता की महाकुंभ से दूरी
महाकुंभ, भारत के सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक, विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है। भाजपा के नेताओं ने इस आयोजन में भाग लेकर न केवल इसकी महत्ता को वैश्विक स्तर पर बढ़ाया बल्कि भारतीय संस्कृति को सम्मान दिया। इसके विपरीत, राहुल गांधी ने इस आयोजन को पूरी तरह नज़रअंदाज किया, जो उनकी भारत की संस्कृति और परंपराओं के प्रति उदासीनता को दर्शाता है। अपने आप को “जनेऊधारी ब्राह्मण” बताने वाले राहुल गांधी ने गणेश चतुर्थी और नवरात्रि जैसे सांस्कृतिक आयोजनों से भी दूरी बनाए रखी। यह उनकी भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर से अनभिज्ञता को उजागर करता है।
गणतंत्र दिवस परेड 2025 में नहीं आये नजर
भारत के लोकतंत्र और सैनिकों के बलिदान कागणतंत्र दिवस परेड प्रतीक है। लेकिन इस साल, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने परेड में शामिल होने से परहेज किया। इस गैरहाजिरी को देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और सैनिकों के सम्मान का अपमान माना गया।
बाढ़ के बीच ली छुट्टियां
जब भारत के कई राज्य बाढ़ की चपेट में थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर सैनिकों और पीड़ितों से मिल रहे थे, राहुल गांधी विदेशी छुट्टियों का आनंद ले रहे थे। ऐसे समय में उनकी गैरमौजूदगी ने उनके नेतृत्व कौशल और राष्ट्रीय जिम्मेदारी पर सवाल खड़े किए।
“संविधान का रक्षक” संविधान दिवस पर रहा गैरमौजूद
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी कुछ ही दिन पहले हाथ में संविधान की प्रति लिए सदन में गरजते हुए खुद को संविधान का रक्षक बता रहे थे। 2022 में संविधान दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर राहुल गांधी की गैरमौजूदगी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिवादन न करना, उनके संविधान और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।
अयोध्य में प्राण-प्रतिष्ठा से दूरी
राम मंदिर के भूमि पूजन का आयोजन भारत के सांस्कृतिक इतिहास में मील का पत्थर था। इस ऐतिहासिक अवसर पर उनकी अनुपस्थिति ने कांग्रेस की विचारधारा और भारत की संस्कृति के प्रति उनके रवैये पर सवाल खड़े किए। इतना ही नहीं पिछले वर्ष 23 जनवरी को अयोध्या में हुए रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से भी कांग्रेस के आलाकमान और गांधी परिवार की दूरी को पूरे देश ने देखा था।
राहुल गांधी कांग्रेस के कार्यक्रम से भी कन्नी काटते हुए नजर आए
कई बार तो राहुल गांधी कांग्रेस के कार्यक्रम से भी कन्नी काटते हुए नजर आए हैं। याद दिलाते चलें कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की जीत के बाद, राहुल गांधी ने विजय उत्सव में शामिल न होकर पार्टी कार्यकर्ताओं को निराश किया। ऐसे क्षण में उनकी अनुपस्थिति उनक नेतृत्व की गंभीरता पर सवाल खड़े करती है।
दिल्ली में कांग्रेस का अभियान कमजोर पड़ता दिख रहा है
राजधानी दिल्ली में पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं को मैदान में उतारा गया। आम आदमी पार्टी से गठबंधन को नकारा गया और तो और राहुल गांधी ने खुद केजरीवाल पर भी खोखले वादे करने का आरोप लगाया उससे लगा था कि प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला होगा लेकिन जैसे जैसे चुनाव प्रचार आगे बढ रहा है कांग्रेस का अभियान कमजोर पड़ता दिख रहा है। उम्मीदवारों को मझधार में छोडकर कांग्रेस के आला नेता नदारद हैं।
आखिर राहुल गांधी हैं कहां?
दिल्ली के रण में कांग्रेस की फीकी पडती लड़ाई के बीच लोग पूछने लगे हैं कि आखिर राहुल गांधी हैं कहां? न दिल्ली चुनाव में, न कुंभ में और ना ही गणतंत्र दिवस समारोह में। अब ऐसे में यह प्रश्न उठने लगा है कि क्या ऐसा नेता, जो भारत की आत्मा और मूल्यों से लगातार दूर रहता है, कभी देश का नेतृत्व कर सकता है?