बंबई उच्च न्यायालय ने रिश्वतखोरी के एक मामले में आरोपी सत्र अदालत के न्यायाधीश को अग्रिम जमानत देने से सोमवार को इनकार कर दिया।
महाराष्ट्र भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने धोखाधड़ी के एक मामले में जमानत देने के लिए कथित तौर पर पांच लाख रुपये की रिश्वत मांगने के आरोप में सतारा जिला एवं सत्र न्यायाधीश धनंजय निकम के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
न्यायिक अधिकारी से संबंधित मामला होने के कारण न्यायमूर्ति एन आर बोरकर की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई कक्ष में की लेकिन उन्होंने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि वह कोई राहत देने के इच्छुक नहीं हैं।
निकम ने जनवरी में अग्रिम जमानत के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया था और दावा किया था कि वह निर्दोष हैं तथा उन्हें इस मामले में फंसाया गया है।
वकील वीरेश पुरवंत के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया कि प्राथमिकी में निकम द्वारा पैसे की कोई सीधी मांग या स्वीकार करने के तथ्य नहीं दिखाए गए हैं।
इसमें दावा किया गया है कि उन्हें न तो शिकायतकर्ता और अन्य आरोपियों के बीच मुलाकातों के बारे में पता था तथा न ही शिकायतकर्ता का जमानत मांगने वाले आरोपी से कोई संबंध था।
एक महिला द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के अनुसार, उसके पिता, जो ‘सिविल डिफेंस’ कर्मचारी हैं, सरकारी नौकरी देने के बहाने किसी को धोखा देने के आरोप में न्यायिक हिरासत में हैं।
निचली अदालत द्वारा जमानत देने से इनकार करने के बाद महिला ने सतारा सत्र अदालत में जमानत याचिका दायर की, जिस पर निकम को सुनवाई करनी थी।
एसीबी ने आरोप लगाया कि दो लोगों मुंबई के किशोर संभाजी खरात और सतारा के आनंद मोहन खरात ने निकम के कहने पर महिला से अनुकूल आदेश के लिए पांच लाख रुपये की मांग की।
एसीबी ने दावा किया कि तीन से नौ दिसंबर, 2024 के बीच की गई जांच के दौरान रिश्वत की मांग की पुष्टि हुई कि निकम ने किशोर खरात और आनंद खरात के साथ साठगांठ करके रिश्वत मांगी थी।
एसीबी ने निकम, किशोर खरात, आनंद खरात और एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया।