भारत और कनाडा के संबंध पिछले एक वर्ष से उतार-चढ़ाव और अविश्वास के दौर से गुज़रे हैं। खालिस्तान समर्थक तत्वों की गतिविधियों, एक कनाडाई नागरिक की हत्या के बाद उठे आरोपों और राजनयिक निष्कासन की घटनाओं ने दोनों देशों के रिश्तों को शीतकाल में पहुंचा दिया था। परंतु अब, जब कनाडा की नई विदेश मंत्री अनीता आनंद की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच रचनात्मक और सकारात्मक वार्ता हुई है, तो यह संकेत मिलता है कि रिश्ते फिर से पटरी पर लौटने की दिशा में बढ़ रहे हैं। यह यात्रा केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि उस राजनीतिक परिपक्वता का परिचायक है जो दोनों लोकतंत्रों को पुनः संवाद की मेज पर ला सकी है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वार्ता के दौरान इस बात पर बल दिया कि आज की अस्थिर वैश्विक व्यवस्था में भारत और कनाडा जैसे देशों को “अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को जोखिम-मुक्त” बनाने के लिए गहरे साझेदारी के मार्ग तलाशने चाहिए। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की भूमिका G20 और कॉमनवेल्थ जैसे मंचों पर सक्रिय रही है और अब समय है कि इस पारंपरिक सहयोग को व्यवहारिक साझेदारी में रूपांतरित किया जाए। हम आपको बता दें कि अनीता आनंद की यह पहली भारत यात्रा न केवल द्विपक्षीय संवाद की बहाली का अवसर है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि ओटावा अब नई दिल्ली के साथ अपने रिश्तों को टकराव की बजाय तालमेल के आधार पर देखना चाहता है।
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जयशंकर और आनंद की वार्ता से जो निष्कर्ष उभरे हैं, वह भविष्य के लिए कई संकेत छोड़ते हैं। दोनों पक्षों ने व्यापार, निवेश, कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), महत्वपूर्ण खनिज और ऊर्जा सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की योजना पर सहमति जताई। विशेष रूप से “क्रिटिकल मिनरल्स” और “स्वच्छ ऊर्जा” पर साझेदारी न केवल आर्थिक दृष्टि से लाभकारी होगी, बल्कि यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की रणनीतिक उपस्थिति को भी मजबूत करेगी। कनाडा के पास प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है और भारत के पास वह बाज़ार और तकनीकी क्षमता जो दोनों को परस्पर पूरक बनाती है।
दिलचस्प यह भी है कि इस वार्ता में दोनों नेताओं ने “साझा लोकतांत्रिक मूल्यों” और “विविधता तथा बहुलतावाद” की भावना पर विशेष बल दिया। जयशंकर का यह कथन कि “जब हम कनाडा को देखते हैं, तो हमें एक ऐसी अर्थव्यवस्था दिखाई देती है जो हमारी पूरक है, और एक समाज जो हमारे मूल्यों को साझा करता है,” केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है। यह एक संकेत है कि भारत अब उन मुद्दों को पीछे छोड़ आगे देखने को तैयार है, जो पिछले महीनों में तनाव का कारण बने थे।
यह भी उल्लेखनीय है कि दोनों देशों ने अपने-अपने नए उच्चायुक्तों की नियुक्ति के साथ कूटनीतिक निरंतरता सुनिश्चित की है। उच्च स्तरीय बैठकों—राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों, व्यापार मंत्रियों और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच संवाद—यह दर्शाते हैं कि नई दिल्ली और ओटावा दोनों “विश्वास बहाली” की प्रक्रिया को गंभीरता से आगे बढ़ा रहे हैं।
हालाँकि, यह मान लेना जल्दबाज़ी होगी कि सभी मतभेद दूर हो गए हैं। खालिस्तान समर्थक गतिविधियों का मुद्दा भारत की सुरक्षा और संवेदनशीलता से जुड़ा है, और इस पर ओटावा की नीतिगत अस्पष्टता अभी भी चिंता का कारण है। फिर भी, अनीता आनंद की यात्रा का सबसे बड़ा संदेश यही है कि दोनों देश मतभेदों को संवाद के ज़रिए सुलझाने के इच्छुक हैं, न कि टकराव के माध्यम से।
वैश्विक संदर्भ में देखें तो यह सहयोग उस समय उभर रहा है जब दुनिया “फ्रेंडशोरिंग” और “रिस्क डाइवर्सिफिकेशन” की दिशा में बढ़ रही है। चीन पर निर्भरता कम करने, आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित बनाने और इंडो-पैसिफिक में संतुलन स्थापित करने के लिए भारत और कनाडा जैसे मध्यम आकार की अर्थव्यवस्थाओं का सहयोग निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
कहा जा सकता है कि जयशंकर–आनंद वार्ता का महत्व केवल दोनों देशों के द्विपक्षीय एजेंडे तक सीमित नहीं है। यह वैश्विक स्तर पर यह संदेश भी देती है कि लोकतांत्रिक देशों के बीच संवाद और परस्पर सम्मान ही भविष्य का सबसे स्थायी पुल है। भारत और कनाडा दोनों इस सच्चाई को समझ रहे हैं कि कूटनीति में कोई संबंध स्थायी रूप से टूटता नहीं, बस उसे पुनःसंवाद की ईमानदार शुरुआत चाहिए। अनीता आनंद की यात्रा उस शुरुआत का प्रतीक है।
अगर आने वाले महीनों में व्यापारिक वार्ताएँ गति पकड़ें, सुरक्षा सहयोग में विश्वास बढ़े और राजनीतिक पारदर्शिता कायम रहे, तो संभव है कि भारत–कनाडा संबंधों का यह नया अध्याय अतीत की कड़वाहटों को पीछे छोड़कर परिपक्व साझेदारी की मिसाल बने।