सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के घर से नकदी मिलने के मामले में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग ठुकरा दी। वकील मैथ्यूज नदुम्पारा ने मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ से आग्रह किया कि इस मुद्दे पर यह उनकी तीसरी याचिका है और इस पर तत्काल सुनवाई पर विचार किया जाना चाहिए। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि याचिका को उचित समय पर सूचीबद्ध किया जाएगा। पीटीआई ने मुख्य न्यायाधीश गवई के हवाले से कहा कि क्या आप चाहते हैं कि इसे अभी खारिज कर दिया जाए?
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इसका जवाब देते हुए, वकील ने कहा कि इस याचिका पर तत्काल विचार करना ज़रूरी है। वकील ने कहा कि इसे खारिज करना असंभव है। एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। अब लगता है वर्मा यही मांग कर रहे हैं। एफआईआर होनी चाहिए, जाँच होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने आरोपी जज को ‘वर्मा’ कहने पर वकील को फटकार लगाई और कहा कि वह वकील का दोस्त नहीं है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, क्या वह आपके दोस्त हैं? वह अभी भी जस्टिस वर्मा हैं। आप उन्हें कैसे संबोधित करते हैं? थोड़ी मर्यादा रखिए। आप एक विद्वान जज की बात कर रहे हैं। वह अभी भी अदालत के जज हैं। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने रविवार को कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के प्रस्ताव पर 100 से ज़्यादा सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। रिजिजू ने बताया कि इनमें से 40 सांसद कांग्रेस पार्टी के हैं, जिनमें राहुल गांधी भी शामिल हैं।
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8 मई को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने संसद को न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की अनुमति दी थी। उन्होंने जाँच के निष्कर्षों पर एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी भेजी थी। चूंकि मानसून सत्र आज से शुरू हो रहा है, इसलिए यह प्रस्ताव कभी भी पेश किया जा सकता है। घटना की जांच कर रहे जांच पैनल की रिपोर्ट में कहा गया था कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां बड़ी मात्रा में अधजली नकदी मिली थी, जिससे उनका कदाचार साबित होता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।