पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने कई देशों में प्रतिनिधिमंडल भेजने और आतंकवाद के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति और पहलगाम आतंकवादी हमलेपर अपने रुख के साथ-साथ सबूत पेश करने का फैसला किया था। भारत की ओर से इसके लिए सबसे अहम नाम कांग्रेस सांसद शशि थरूर का है। भारत के बाद पाकिस्तान ने भी इसी तरह का डेलीगेशन बनाया है, जो दुनिया में ये कहेगा कि गड़बड़ दरअसल दिल्ली की ओर से हो रही है। पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार ने इसके लिए बिलावल भुट्टो जरदारी को चुना है। लेकिन बिलावल भुट्टो क्या शशि थरूर जैसा प्रभाव दुनिया के नेताओं के सामने दिखा पाएंगे। इसमें खुद पाकिस्तानियों को ही संदेह है।
इसे भी पढ़ें: World War II का एयरेबस, बांग्लादेश के जंगलों में क्या करते पकड़ा गया चीन?
पाकिस्तान के शीर्ष राजनीतिक नेता बिलावल भुट्टो को देश के शांति के पक्ष को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल के नेता के रूप में चुने जाने से नाखुश हैं। शीर्ष सरकारी सूत्रों के अनुसार, बिलावल की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं और शशि थरूर की विरासत से मेल खाना उनके लिए असंभव प्रतीत होता है। पाकिस्तानी एक्सपर्ट्स का मानना है कि बिलावल का थरूर जैसे दिग्गज के सामने टिक पाना आसान नहीं लगता है। 2022 से 2023 तक विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, बिलावल भारत के साथ बढ़ते तनाव को संभालने में विफल रहे। उनकी आक्रामक बयानबाजी, जैसे कि सिंधु जल संधि पर खून बहेगा की धमकी देना, वैश्विक उदारवादियों के लिए समस्याजनक है। इस तरह के बयान पाकिस्तान की अपनी सैन्य और आतंकवादी रणनीति पर निर्भरता की धारणा को मजबूत करते हैं।
इसे भी पढ़ें: बम धमाके से दहला पाकिस्तान, कई लोगों की मौत, क्या फैजुल्लाह ग़बीज़ई था निशाना?
इसके विपरीत, अनुभवी सांसद और संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अवर महासचिव शशि थरूर भारत की परमाणु-प्रथम-उपयोग-नहीं नीति को प्रभावी ढंग से व्यक्त कर सकते हैं और एक संतुलित लेकिन दृढ़ रुख बनाए रख सकते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के तहत विभिन्न दलों के भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले थरूर राष्ट्रीय एकता को दर्शाते हैं। पाकिस्तानी-अमेरिकन मोइद पीरजादा का कहना है कि 70 साल के थरूर की दुनियाभर के विदेश नीति एक्सपर्ट से संबंध रहे हैं। वह निजी तौर पर भी दुनिया की बड़ी हस्तियों को जानते हैं और सरकारों में बैठे लोगों से संबंध रखते हैं। इसके साथ ही थरूर को ‘विदेश नीति का बाज़’ बताया। उन्होंने बिलावल भुट्टो को ‘नकलची बंदर’ कहते हुए उनकी विदेश नीति में अनुभवहीनता पर सवाल उठाया।