गुजरात के सूरत शहर में स्थित ‘मैत्री’ नाम का बंगला दो परिवारों के बीच 80 साल से भी अधिक पुरानी दोस्ती का प्रतीक है। यह दोस्ती आजादी से पहले शुरू हुई थी और इसने तब से दोनों परिवारों की चार पीढ़ियों को जोड़े रखा है।
गुणवंत देसाई और बिपिन देसाई के बीच 1940 के दशक में स्कूल के दिनों में पनपा दोस्ती का रिश्ता समय की कसौटी पर खरा उतरा है। गुणवंत के बेटे परिमल (63) ने बताया, “मेरे पिता गुणवंत देसाई और उनके मित्र बिपिन देसाई 1940 के दशक में सूरत के सागरमपुरा क्षेत्र में रहते थे।”
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उन्होंने बताया कि दोनों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रेरित होकर आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया और साथ में जेल भी गए।
परिमल के मुताबिक, पुणे के एक कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद गुणवंत और बिपिन सूरत लौट आए तथा साथ में कृषि एवं डेयरी उत्पादों का कारोबार शुरू किया।
उन्होंने बताया, “गुणवंत और बिपिन ने चाणक्यपुरी इलाके में एक कच्चे मकान में रहते हुए अपना संयुक्त उपक्रम शुरू किया। अलग होने या किसी और व्यापारिक साझेदार को लाने का विचार उनके मन में कभी नहीं आया।”
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परिमल के अनुसार, जब दोनों का परिवार बढ़ने लगा, तब उन्होंने साथ मिलकर एक बड़े घर में रहने का फैसला किया।
उन्होंने कहा, “1970 में दोनों ने यह डुप्लेक्स बंगला बनाया, जिसमें अलग-अलग रसोई और शयनकक्ष थे, लेकिन एक साझा ड्राइंग रूम था, जहां दोनों परिवारों के सदस्य एकत्र हो सकते थे, सुकून के पल बिता सकते थे और एक साथ जीवन का आनंद ले सकते थे।”
बिपिन के बेटे गौतम देसाई (70) ने कहा, “हमारे पिताओं के बीच रिश्ता इतना मजबूत था कि लोग अक्सर उन्हें भाई समझ लेते थे।”
उन्होंने कहा कि दोस्ती की यह विरासत पहले पिता से पुत्रों तक, फिर पोते-पोतियों तक और अब पड़पोते-पड़पोतियों तक बरकरार है।
गौतम के मुताबिक, उनके और परिमल के बीच भी उनके पिताओं जैसा ही गहरा रिश्ता है। उन्होंने बताया कि इसी तरह, उनका बेटा राहुल, परिमल के बेटे हार्दिक के बेहद करीब है।
परिमल के अनुसार, यहां तक कि चौथी पीढ़ी भी दोस्ती के इस रिश्ते को निभा रही है।
उन्होंने बताया, “राहुल का बेटा द्विज, जो दसवीं कक्षा का छात्र है और हार्दिक की बेटी व्योमी (4) के बीच एक खास रिश्ता है।
व्योमी हर रक्षाबंधन पर द्विज को राखी बांधती है।”
दोनों परिवार मिलकर ‘मैत्री ट्रस्ट’ का संचालन करते हैं, जिसकी स्थापना गुणवंत और बिपिन ने 1990 में गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देने के लिए की थी।
इस गहरे रिश्ते के दोनों स्तंभोंका निधन एक साल के भीतर हो गया। बिपिन देसाई ने 2012 में 87 साल की उम्र में, जबकि गुणवंत देसाई ने 2013 में 88 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया। दोनों ने चिकित्सा अनुसंधान के लिए अपने पार्थिव शरीर को दान करने का संकल्प लिया था।