जेपी नड्डा ने राज्यसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान विपक्ष पर निशाना साधा और यूपीए शासन के काले दौर का जिक्र करते हुए पिछली कांग्रेस नीत सरकार के दौरान हुए आतंकी हमलों को याद किया। जेपी नड्डा ने कहा कि पहलगाम हमले के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश यात्रा बीच में ही रोक दी और सुरक्षा स्थिति तथा अगले नियोजित कदमों का जायजा लेने के लिए रातोंरात भारत लौट आए।
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यूपीए सरकार पर निशाना साधते हुए नड्डा ने कहा कि 2005 में दिवाली से ठीक पहले लश्कर-ए-तैयबा ने दिल्ली में सीरियल बम ब्लास्ट किया। 67 लोग मारे गए, 200 से अधिक घायल हुए। कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। 2006 में वाराणसी के संकटमोचन मंदिर में हरकत-उल-जिहाद ने हमला किया। 28 लोग मारे गए, 100 लोग घायल हुए। कोई कार्रवाई नहीं की गई।। मुद्दा यह है कि तब भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद और व्यापार और पर्यटन जारी रहा।
उन्होंने आगे कहा कि हमें उनकी (तत्कालीन कांग्रेस सरकार की) तुष्टिकरण की सीमा को समझने की जरूरत है कि 2008 में इंडियन मुजाहिद्दीन द्वारा जयपुर में किए गए बम विस्फोटों के बाद, भारत और पाकिस्तान एक विशिष्ट विश्वास-निर्माण उपायों पर सहमत हुए। वो हमें गोलियों से भूनते रहे और हम उनको बिरयानी खिलाने चले। उन्होंने नियंत्रण रेखा पार करने के लिए ट्रिपल-एंट्री परमिट की अनुमति दी। इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा ने मिलकर मुंबई ट्रेन में बम ब्लास्ट किया। 209 लोग मारे गए, 700 से अधिक घायल हुए। इसके बाद एक संयुक्त आतंकवाद-रोधी तंत्र बनाया गया। 2 महीने बाद इसकी पहली बैठक हुई, सात महीने बाद दूसरी बैठक हुई… लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
जेपी नड्डा ने कहा कि हमारे पास वही पुलिस, वही सेना थी, लेकिन कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी। 2009 के एससीओ शिखर सम्मेलन में 2008 में हुए इतने बड़े आतंकी हमले का कोई जिक्र नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि 2004 से 2014 के बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दस वर्षों के दौरान देश भर में कई बम विस्फोट हुए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पर एक बार नहीं, बल्कि 2004 से 2014 तक इन 10 वर्षों में तीन बार हमला हुआ। उन्होंने दावा किया कि एक पूर्व रक्षा मंत्री ने कहा था, “भारत की नीति है कि सीमाओं का विकास न करना ही सबसे अच्छा बचाव है। अविकसित सीमाएँ विकसित सीमा से ज़्यादा सुरक्षित होती हैं।”…एक पूर्व गृह मंत्री ने कहा था, “मुझे कश्मीर जाने में डर लगता है”।…हम इस देश में अंधकार में जी रहे थे। 2014-2025 तक, जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश में आतंकवादी हमले बंद हो गए।
कांग्रेस की सरकारों पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि उस समय बलूचिस्तान पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कहा था, “India was ready to discuss the issues with Pakistan, including the outstanding issues।” एक ये राजनीतिक नेतृत्व है, और दूसरी ओर मोदी जी का राजनीतिक नेतृत्व है, जिन्होंने कहा है, ”Terror और Talks एक साथ नहीं चलेंगे”। उन्होंने कहा कि मैं यह कहना चाहूँगा कि यह एक संवेदनशील सरकार है। इसी भावना से, इसकी पूरी रणनीति और योजना, जिसमें भविष्य में इसके कार्य करने का इरादा भी शामिल है, पर विस्तार से चर्चा हुई। कल प्रधानमंत्री जी ने लोकसभा में इनमें से कई मुद्दों पर एक व्यापक भाषण दिया, जिसकी देश भर में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा हुई। गृह मंत्री जी ने भी कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला, और आज विदेश मंत्री जी ने अन्य प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की। इसलिए, मैं उन बिंदुओं को नहीं दोहराऊँगा। संबंधित विभाग के मंत्री होने के नाते, उन्होंने इस संसद के माध्यम से देश की ओर से ज़िम्मेदारी संभाली है। लेकिन मैं एक महत्वपूर्ण बिंदु उठाना चाहूँगा, जिस पर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए।
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भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस पूरी घटना के दौरान हमारे बहादुर सशस्त्र बलों और पुलिस द्वारा निभाई गई भूमिका राष्ट्र के गहरे सम्मान और श्रद्धांजलि की पात्र है। लेकिन इस सदन के माध्यम से, मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहता हूँ कि राजनीतिक नेतृत्व भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व ही सशस्त्र बलों को नियंत्रित करता है। इसीलिए, एक ज़िम्मेदार, उत्तरदायी, संवेदनशील और सक्रिय सरकार, जो परिस्थिति के अनुसार कार्य करती है, और एक बिल्कुल अलग प्रकार की सरकार, यानी एक निष्क्रिय सरकार, जिसका रवैया उदासीन है, और एक ऐसी सरकार जो प्रतिक्रियाहीन और अनुत्तरदायी है, के बीच एक स्पष्ट अंतर है। इस अंतर को समझने के लिए, हमें पहलगाम की घटना को अलग-थलग करके नहीं देखना चाहिए। ऐसा करना राष्ट्र और व्यापक आख्यान, दोनों के साथ अन्याय होगा। हमें स्थिति को समग्रता में देखने की आवश्यकता है।