Saturday, December 27, 2025
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हरियाणा के पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनेंगे सूर्यकांत, रचेंगे नया इतिहास

देश की न्यायपालिका में जल्द ही एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है, क्योंकि जस्टिस सूर्यकांत को अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में नियुक्त किए जाने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू हो गई है। चीफ जस्टिस भूषण आर. गवई ने औपचारिक रूप से उनके नाम की सिफारिश सरकार को भेज दी है और अधिसूचना जारी होते ही जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर को पदभार संभालने वाले हैं। उनका कार्यकाल 9 फरवरी 2027 तक रहने की संभावना है।
बता दें कि जस्टिस सूर्यकांत वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में सबसे सीनियर न्यायाधीशों में से एक हैं और वे न्यायिक व्यवस्था में संवैधानिक दृष्टिकोण तथा सामाजिक सरोकारों से जुड़े मामलों के प्रति बेहद सजग माने जाते हैं। सीजेआई गवई ने हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में कहा कि सूर्यकांत उनके समान ऐसे सामाजिक वर्ग से आते हैं जिसने संघर्षों से लड़ते हुए यह मुकाम हासिल किया है। इसी अनुभव के कारण वे न्यायपालिका के जरिए आम जनता के अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम साबित होंगे।
हरियाणा के हिसार में 10 फरवरी 1962 को जन्मे जस्टिस सूर्यकांत की शिक्षा-दीक्षा भी वहीं से हुई। उन्होंने महार्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से 1984 में विधि की डिग्री ली और 1985 से पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में संवैधानिक और सिविल मामलों की पैरवी शुरू की। मात्र 38 वर्ष की उम्र में वे हरियाणा के सबसे युवा एडवोकेट जनरल बने, और फिर 2004 में उन्हें पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया।
गौरतलब है कि 2018 में वे हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए और 2019 में सुप्रीम कोर्ट में उनका उत्थान हुआ। उन्होंने संविधान पीठों पर बैठकर कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक फैसलों में भागीदारी की, जिनमें अनुच्छेद 370 को हटाने से जुड़े फैसले का उल्लेख विशेष रूप से किया जाता है। सूत्रों के अनुसार, वे अब तक एक हजार से अधिक मामलों में अपना योगदान दे चुके हैं।
मौजूद जानकारी के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत फिलहाल सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के चेयरमैन भी हैं और कई राष्ट्रीय विधि संस्थानों से बतौर विजिटिंग अथॉरिटी जुड़े हुए हैं। विशेष बात यह है कि अगर वे पदभार ग्रहण करते हैं तो वे हरियाणा से इस सर्वोच्च न्यायिक पद पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति बनेंगे, जिसे राज्य के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। यह नियुक्ति न्यायिक नियुक्तियों में वरिष्ठता पर आधारित परंपरा को भी आगे बढ़ाती हुई मानी जा रही है। उनके मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद न्यायपालिका में निरंतरता और संस्थागत स्थिरता की उम्मीद जताई जा रही है।
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