जहरीली गैस का चेंबर बनी दिल्ली को इससे राहत दिलाने के लिए की गई कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग की कोशिश पूरी तरह सफल नहीं हो सकी। इस कारण टारगेट किए गए इलाकों में बारिश नहीं हो पाई। दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का पूरा काम आईआईटी कानपुर की तरफ से किया जा रहा है। बीते दिन कानपुर से एयरक्राफ्ट ने उड़ान भरी। शाम होते-होते सीडिंग पूरी कर ली गई थी। ऐसा माना जा रहा था कि कुछ ही घंटों में बारिश शुरू हो जाएगी। हालांकि ऐसा नहीं हो पाया। आईआईटी कानपुर के इस प्रयोग में 14 फ्लेयर्स दागे गए। हर फ्लेयर में 20% सिल्वर, आयोडाइड और बाकी रॉक साल्ट और सामान्य नमक का मिक्सचर था।
1-2 बादल थे वो भी गए… क्यों फेल हुई क्लाउड सीडिंग? IIT कानपुर के साइंटिस्ट ने बताया, बारिश नहीं होने पर विपक्ष ने घेरा
दिल्ली में हाल ही में हुए क्लाउड सीडिंग परीक्षण परीक्षण गंभीर वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार और आईआईटी कानपुर के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है। इस परीक्षण में आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर मनेंद्र अग्रवाल के विचार भी शामिल हैं। प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि हम शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि बारिश के लिए हमें उचित मात्रा में नमी वाले बादलों की आवश्यकता होती है। कम नमी के स्तर के कारण पर्याप्त वर्षा न होने के बावजूद, इस प्रयोग को एक महत्वपूर्ण आँकड़े जुटाने की प्रक्रिया के रूप में सराहा जा रहा है। यह पहली बार था जब भारत में सर्दियों के दौरान प्रदूषण को विशेष रूप से लक्षित करने के लिए क्लाउड सीडिंग का प्रयास किया गया था। लगभग 50-60 लाख रुपये की लागत वाले इस परीक्षण की प्रभावशीलता पर राजनीतिक सवाल उठे थे, लेकिन वैज्ञानिकों ने पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों में 6 से 10 प्रतिशत की कमी दर्ज की, जिससे दिल्ली की जहरीली हवा को साफ करने के भविष्य के प्रयासों के लिए एक मूल्यवान आधार मिला।
उन्होंने कहा कि एक बार फिर बारिश कराने के लिए प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि बारिश के पूर्वानुमानों के बारे में अलग-अलग रिपोर्ट सामने आई थी। कुछ का कहना था कि बारिश होगी। कुछ का कहना था बारिश नहीं होगी। इसके बाद हमारी टीम ने पाया कि बादलों में नमी की मात्रा बहुत कम है। इस लिहाज से पहले से ही माना जा रहा था कि बारिश नहीं होगी। अग्रवाल आगे बताते हैं कि और दो उड़ानों के जरिए क्लाउड सीडिंग कराई जाएगी। सबसे पहले रसायनों का छिड़काव करने के लिए एक विमान ने कानपुर से दिल्ली के लिए उड़ान भरी थी। विमान ने दिल्ली के बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग और मयूर विहार सहित कई इलाकों में रसायनों का छिड़काव किया। आठ इलाकों में यह रसायनों का छिड़काव किया गया था। हर छिड़काव किए गए रसायन का वजन 2.5 किग्र था और परीक्षण आधे घंटे तक चला। राजधानी को प्रदूषण से राहत दिलाने के लिए कृत्रिम बारिश कराने का यह प्रयोग किया गया।
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि जनता को बेवकूफ बनाने के लिए सरकार ने आर्टिफिशियल रेन की बात की। 27 अक्टूबर को बादल थे और उन्हीं को देखकर इन्होंने कृत्रिम बारिश की बात की। वैज्ञानिकों ने कहा है कि क्लाउड सीडिंग होते ही 15 मिनट में बारिश हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन्होंने उस टाइम को बढ़ा लिया। कहीं भी एक बूंद बारिश नहीं हुई। उन्होंने कहा कि जब आप जानते थे कि दिल्ली में कृत्रिम बारिश नहीं हो सकती तो फिर ये सर्कस क्यों खड़ा किया गया। करोड़ों रुपए खर्च किए गए।

