भारत के सर्वोच्च न्यायालय : ने 27 साल पहले बलात्कार के दोषी एक व्यक्ति की सजा को रद्द कर दिया है। यह फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि इस मामले की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए सजा जारी रखना बहुत बड़ा अन्याय होगा।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सत्येश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, ‘इस मामले में आरोपी ने बाद में शिकायतकर्ता से शादी कर ली और उसके चार बच्चे हैं। इस मामले की विशेष परिस्थितियां हमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए बाध्य करती हैं। अनुच्छेद 142 न्यायालय को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आदेश जारी करने का अधिकार देता है।
अदालत ने कहा कि ‘यह निर्णय दम्पति के दो दशक पुराने विवाह और उनके रिश्ते की वास्तविक स्थिति को देखते हुए उचित था।’ इस मामले में, व्यक्ति को 1997 में अपहरण और बलात्कार का दोषी ठहराया गया था। उस समय महिला नाबालिग थी। हालाँकि, इसके बाद 2003 में दोनों ने शादी कर ली और परिवार शुरू कर दिया। इस मामले में निचली अदालत ने 1999 में उन्हें 7 साल जेल की सजा सुनाई थी, जिसे 2019 में हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था, हालांकि इसकी पुष्टि कर दी गई थी। इस व्यक्ति को 2021 में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी।
जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि ‘सजा जारी रखना न केवल कानूनी रूप से कठोर होगा बल्कि इससे उसके परिवार का जीवन भी बाधित होगा।’ राज्य सरकार ने इस अपील का विरोध किया और महिला की नाबालिग स्थिति का हवाला दिया। अदालत ने कहा कि ‘इस मामले की विशेष परिस्थितियां असाधारण समाधान की मांग करती हैं।’
अपने हालिया निर्णयों का हवाला देते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि ‘सजा जारी रखने से पहले से स्थापित पारिवारिक जीवन में व्यवधान ही उत्पन्न होगा।’ अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने अभियुक्त की सजा और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया। अब उस व्यक्ति का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं रहेगा। अदालत ने 30 जनवरी को अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए दोषसिद्धि और सजा को रद्द करते हैं।”