Wednesday, February 5, 2025
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30 साल में दोगुना हुए डायबिटीज के मरीज, नहीं संभले तो 2050 तक 130 करोड़ लोग होंगे जद में

डायबिटीज. एक ऐसा नाम जो अब हर किसी की जुबां पर है. हर गली, हर मुहल्ले, और हर परिवार में इसका ज़िक्र आम बात हो गई है. पहले ये समझा जाता था कि यह बीमारी सिर्फ बुजुर्गों को ही होती है, मगर अब इसकी जद में सभी है. क्या बच्चे, युवा और बुजुर्ग. आपको यहा जानकर ताज्जुब हो सकता है कि 1990 में डायबिटीज के मरीजों की संख्या केवल 7 प्रतिशत थी, लेकिन 2022 तक यह बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई है. यानी 30 साल में मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है!

और यह आंकड़े किसी सामान्य रिपोर्ट से नहीं, बल्कि विश्व प्रसिद्ध जर्नल ‘द लैंसेट’ में छपी एक स्टडी से सामने आए हैं.आज लगभग 80 करोड़ लोग डायबिटीज से जूझ रहे हैं, और विशेषज्ञों का कहना है कि अगर स्थिति यही रही, तो 2050 तक यह आंकड़ा 130 करोड़ से भी ज्यादा हो सकता है.

यह डराने वाले आंकड़े सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक सख्त सच्चाई हैं, जो हमें इस बीमारी के बढ़ते प्रभाव को समझने के लिए मजबूर करते हैं. और आज तो विश्व मधुमेह (डायबिटीज) दिवस भी है. यह डायबिटीज़ को लेकर जागरूकता लाने के लिए विश्व का सबसे बड़ा अभियान है.

आखिर संख्या में उछाल की वजह क्या है?

यह अध्ययन एनसीडी रिस्क फैक्टर कोलैबोरेशन’ और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से किया गया है. इसमें बताया गया है कि जो देश समृद्ध है, वहां इसका प्रसार कम हो रहा है. इस अध्ययन में 1,000 से ज्यादा पुराने अध्ययनों का विश्लेषण किया गया है, जिनमें 14 करोड़ से ज्यादा लोगों के आंकड़े शामिल हैं.

साल 1990 में डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों की संख्या 20 करोड़ थी, जो साल 2022 में बढ़कर 83 करोड़ हो गई. 1980 में वयस्कों में डायबिटीज़ का दर 4.7% था, जो बढ़कर 8.5% हो गया है. डायबिटीज में इतनी बढ़ोतरी लोगों की जीवनशैली में हो रहे बदलावों की वजह से हो रही है. रिसर्च के लेखकों ने मोटापे और खानपान को ही टाइप-2 डायबिटीज का मुख्य कारण बताया. ये आमतौर पर मध्यम उम्र या बुजुर्ग लोगों में होती है.

टाइप-1 डायबिटीज जो आमतौर पर कम उम्र में होता है ठीक होना ज्यादा मुश्किल होता है क्योंकि इसमें शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है. यह समस्या विशेष रूप से उन देशों में गंभीर है जहां तेजी से शहरीकरण और आर्थिक विकास के चलते खानपान और दिनचर्या में बदलाव हुआ है. महिलाओं पर इसका असर बहुत ज्यादा हो रहा है.

इलाज में बढ़ता ही जा रहा है अंतर

लैंसेट की स्टडी के मुताबिक 30 साल और उससे अधिक उम्र के वयस्कों में से 59 फीसदी यानी लगभग 44.5 करोड़ लोगों को 2022 में डायबिटीज का कोई इलाज नहीं मिला. सब-सहारा अफ्रीका में तो केवल 5 से 10 फीसदी लोगों का ही इलाज हो पा रहा है. ये हाल तब है जब डायबिटीज के लिए दवाइयां उपलब्ध हैं. जानकारों का कहना है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच इसके इलाज में बाधा बनती है.

भारत तो वैसे ही ‘डायबिटीज कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’ कहलाता है. यानी हमारे देश में डायबिटीज के सबसे ज्यादा मामले हैं. पिछले साल यानी 2023 तक भारत में 10 करोड़ से ज्यादा डायबिटीज के मामले थे. और दुनिया में जिन लोगों को इलाज नहीं मिला, उनके करीब 14 करोड़ से ज्यादा लोग भारत में ही रहते हैं.

भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी लगभग एक तिहाई महिलाएं अब डायबिटीज की शिकार हैं, जबकि 1990 में यह आंकड़ा 10 फीसदी से भी कम था. कुछ विकसित देशों ने डायबिटीज के मामलों में स्थिरता या गिरावट दर्ज की है. जापान, कनाडा, फ्रांस और डेनमार्क जैसे देशों में डायबिटीज के प्रसार में कम इजाफा देखा गया है.

फिर समाधान क्या है?

इस स्टडी के लेखकों का कहना है कि दुनिया के कई हिस्सों में में डायबिटीज के इलाज की ऊंची लागत भी एक बड़ी बाधा बनती जा रही है. मिसाल के तौर पर, सब सहारा अफ्रीका में इंसुलिन और दवाइयों का खर्च इतना ज्यादा है कि कई मरीजों को ढंग का तो छोड़िए, पूरा इलाज ही नसीब नहीं होता. और बिना सही इलाज के लाखों लोगों को गंभीर जटिलताओं का सामना करने पर मजबूर होना पड़ता है.

इसलिए डायबिटीज से निपटने के लिए एक वैश्विक रणनीति की जरूरत है. खासकर से उन देशों में जहां स्वास्थ्य संसाधनों की कमी है. इसमें सस्ती दवाइयों की उपलब्धता बढ़ाने, स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने और डायबिटीज के प्रति जागरूकता बढ़ाने जैसी पहलें शामिल हो सकती हैं. इनकी वजह से डायबिटीज का बोझ कम किया जा सकता है और इलाज में बढ़ते अंतर को जल्द ही पाटा जा सके.

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