Friday, October 24, 2025
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केरल के एक छोटे से गांव से लेकर NCR में फिनटेक क्रांति तक – अमल वी. नायर की प्रेरणादायक कहानी

नई दिल्ली – “सपने अगर सच्चे हों, तो रास्ते खुद बन जाते हैं।” यही बात सच कर दिखाया है अमल वी. नायर ने, जो केरल के एक छोटे से गाँव कोठमंगलम (कोच्चि) में जन्मे और पले-बढ़े। एक छोटे से गांव से निकलकर दिल्ली-एनसीआर में फिनटेक कंपनी खड़ी करने तक का उनका सफर संघर्ष, जुनून और सीख से भरा हुआ रहा है।


कॉलेज के दिनों से ही था बिजनेस का जुनून

अमल के लिए बिजनेस कोई शौक नहीं, बल्कि एक मिशन था। MBA पूरा करने के बाद उन्होंने 2015 में “Dhe Auto” नाम से केरल की पहली ऑन-डिमांड थ्री-व्हीलर बुकिंग सेवा शुरू की – जो कि ओला ऑटो जैसी सेवा थी। स्टार्टअप को अच्छा रिस्पॉन्स मिला, मीडिया में पहचान मिली और कुछ जाने-माने लोगों से निवेश भी मिला।

कोरोना और बड़ी कंपनियों की एंट्री से लगा झटका

लेकिन फिर आया कोरोना और सब कुछ बदल गया। लॉकडाउन और ओला-उबर जैसी बड़ी कंपनियों की केरल में एंट्री ने “Dhe Auto” को बड़ा झटका दिया। अंततः अमल को यह कंपनी बंद करनी पड़ी। लेकिन उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि सभी निवेशकों का पैसा लौटाया जाए और कर्मचारियों की सैलरी भी पूरी दी जाए – क्योंकि उनके लिए लोगों का विश्वास सबसे अहम था।

फिनटेक की दुनिया में दूसरा अध्याय

इसके बाद उन्होंने कुछ जानी-मानी फिनटेक कंपनियों में नौकरी की ताकि खर्च चल सके। ये दिन मुश्किल थे, लेकिन इन्हीं दिनों ने उन्हें असली सिखाया कि भारत के छोटे शहरों और गांवों में अभी भी करोड़ों लोग बैंकिंग सुविधाओं से वंचित हैं। यही सोच 2023 में एक नए सपने को जन्म देती है – 24PAY।

उत्तराखंड से मिले एक साथी और शुरू हुआ 24PAY का सफर

अमल नायर और उनके पार्टनर दीप चंद

उनके इस सपने में उनका साथ दिया उनके को-फाउंडर दीप चंद्र ने, जो उत्तराखंड से हैं। दोनों की मुलाकात एक पुरानी कंपनी में महज दो महीने के लिए हुई थी, लेकिन वित्तीय समावेशन (financial inclusion) को लेकर उनकी सोच एक जैसी थी। यही सोच उन्हें साथ लेकर आई।

शुरुआत में नहीं था पैसा, भाषा की दिक्कत भी आई

शुरुआत आसान नहीं थी। अमल को हिंदी नहीं आती थी, कोई इन्वेस्टर नहीं था, पूंजी भी नहीं थी और रिश्तेदारों ने भी खास समर्थन नहीं किया। फिर भी परिवार से छोटे-मोटे उधार लेकर, जज्बे और मेहनत के बल पर दोनों ने 24PAY की नींव रखी।

शुरुआत में खुद किराना दुकानों में बैठकर मनी ट्रांसफर और बिल पेमेंट किए, ताकि लोगों का भरोसा जीता जा सके। लोग यह यकीन नहीं कर पाते थे कि यही लोग कंपनी के फाउंडर हैं।

आज 10 राज्यों में फैला है नेटवर्क

24 PAY की टीम

आज 24PAY देश के 10 राज्यों में 5,000 से ज्यादा सक्रिय एजेंट्स के साथ काम कर रही है। सेवाओं में डोमेस्टिक मनी ट्रांसफर, नकद निकासी, बिल पेमेंट, मोबाइल रिचार्ज और ट्रैवल सर्विसेज शामिल हैं। यह कंपनी गांवों और छोटे शहरों में उद्यमियों को सशक्त बना रही है।

अब लक्ष्य है – हर गांव तक पहुंचे 24PAY

अमल कहते हैं, “हम अभी शुरुआत में हैं। मेरा सपना है कि 24PAY हर गांव और कस्बे का नाम बने – ताकि हर भारतीय को डिजिटल इंडिया का फायदा मिल सके।”

अमल की कहानी हमें सिखाती है कि अगर इरादा सच्चा हो और मेहनत जारी रहे, तो कोई भी सपना बड़ा नहीं होता।

पीएम मोदी का महागठबंधन पर तीखा हमला: ‘लाठबंधन’ सिर्फ झगड़ा और संघर्ष जानता है, जनता का नहीं

बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि यह चुनाव राज्य के इतिहास में नया अध्याय लिखने वाला है। बता दें कि मोदी ने कहा कि इस नए अध्याय में युवाओं की भूमिका अहम होगी और वे ही तय करेंगे कि बिहार में एनडीए की डबल इंजन सरकार फिर से सत्ता में आएगी।
गौरतलब है कि मोदी ने राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) पर तीखा हमला करते हुए कहा कि बिहार में ‘जंगल राज’ की राजनीति जनता कभी नहीं भूलेगी। उन्होंने कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि वे बुजुर्गों के माध्यम से युवाओं को इस दौरान हुई घटनाओं और नक्सली आतंक के प्रभाव के बारे में बताएं। मोदी ने कहा कि राजद की पिछली सरकार ने अपने स्वार्थ को राज्य के युवाओं की भलाई से ऊपर रखा और विकास पूरी तरह बाधित हुआ।
मौजूद जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री ने महागठबंधन को ‘लाठबंधन’ बताते हुए कहा कि ये सिर्फ संघर्ष और झगड़े जानते हैं और इनके लिए जनता की भलाई से ज्यादा उनका व्यक्तिगत स्वार्थ महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि एनडीए बिहार के युवाओं के सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए सरकार उनके साथ संवाद कर रही हैं। मोदी ने युवाओं से हर घर जाकर मतदाता जागरूकता बढ़ाने का आह्वान भी किया।
इसके अलावा मोदी ने छठ पूजा और भाई दूज के मौके पर कार्यकर्ताओं को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि बिहार में 6 और 11 नवंबर को मतदान होगा और मतगणना 14 नवंबर को होगी। प्रधानमंत्री ने महिलाओं की सशक्तिकरण और युवाओं के भविष्य को सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया, साथ ही कहा कि बिहार में लोकतंत्र का भी भव्य त्योहार मनाया जा रहा हैं।

Bihar Elections 2025: महागठबंधन ने तेजस्वी को CM फेस घोषित किया, मुकेश सहनी डिप्टी सीएम पद का चेहरा

पटना में विपक्षी महागठबंधन ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव को आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया है, जबकि विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम पद का उम्मीदवार बनाया गया हैं। इससे INDIA गठबंधन के भीतर लंबे समय से चल रही अनिश्चितता का फिलहाल अंत माना जा रहा हैं।
मौजूद जानकारी के अनुसार, कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीटों और चेहरा तय करने को लेकर खींचतान चल रही थी। बताया जा रहा है कि कांग्रेस सहमत थी कि अगर सहनी को डिप्टी सीएम फेस बनाया जाए तो वह तेजस्वी को सीएम फेस घोषित करने पर तैयार हो जाएगी। बता दें कि सहनी निषाद यानी मल्लाह समुदाय से आते हैं, जिनकी उत्तर भारत के कई राज्यों में निर्णायक जनसंख्या मानी जाती हैं।
इस बीच, दिवाली के दौरान अशोक गहलोत द्वारा तेजस्वी को किए गए फोन कॉल ने गतिरोध तोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई। गहलोत कुछ ही दिनों बाद पटना आए और लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की, जिसके बाद गठबंधन में बात तेजी से आगे बढ़ी। गौरतलब है कि गहलोत बिहार चुनाव के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए हैं।
उधर, पटना के होटल मौर्या में घोषणा चल रही थी, तो कुछ ही दूरी पर कांग्रेस कार्यालय सदाकत आश्रम में टिकट न मिलने से नाराज पूर्व विधायकों ने विरोध जताया। सीट बंटवारे की आधिकारिक घोषणा अभी नहीं हुई है, पर संकेत मिल रहे हैं कि आरजेडी 143 सीटों पर, कांग्रेस 61 पर और बाकी सीटें वाम दलों तथा VIP के खाते में जाएंगी। तेजस्वी अब छठ पर्व के बाद चुनावी अभियान की शुरुआत करने को तैयार माने जा रहे हैं।

DAC ने 79,000 करोड़ के रक्षा सौदों को दी मंजूरी, ‘आत्मनिर्भर भारत’ की राह में बड़ा कदम।

रक्षा क्षेत्र में निवेश को लेकर एक अहम पहल देखने को मिली है। बता दें कि गुरुवार, 23 अक्टूबर को डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल (डीएसी) ने भारतीय थल सेना, नौसेना और वायुसेना के लिए लगभग 79,000 करोड़ रुपये के सैन्य उपकरणों की खरीद को मंजूरी दी है।
मौजूद जानकारी के अनुसार, थल सेना के लिए नाग मिसाइल सिस्टम (ट्रैक्ड) Mk-II की स्वीकृति दी गई है, जिससे माना जा रहा है कि भारत डायनेमिक्स को करीब 2,000 करोड़ रुपये तक के ऑर्डर मिल सकते हैं। यह सिस्टम दुश्मन के टैंकों, बंकरों और अन्य फील्ड किलेबंदी को निशाना बनाने की क्षमता को बढ़ाएगा।
इसके अलावा ग्राउंड-बेस्ड मोबाइल ELINT सिस्टम (GBEMS) की खरीद पर भी मंजूरी मिल चुकी है, जिससे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और एस्ट्रा माइक्रो जैसी कंपनियों को फायदा मिलने की संभावना जताई जा रही है। यह सिस्टम दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलों की 24×7 निगरानी के काम आएगा। थल सेना को हाई मोबिलिटी व्हीकल्स (HMVs) के साथ मटेरियल हैंडलिंग क्रेन की भी स्वीकृति दी गई है, जिसमें BEML जैसी कंपनियाँ संभावित लाभार्थी मानी जा रही हैं।
गौरतलब है कि नौसेना के लिए भी कई अहम प्रस्ताव स्वीकृत हुए हैं। मझगांव डॉक, गार्डन रीच शिपबिल्डर्स, कोचीन शिपयार्ड और L&T जैसी शिपबिल्डिंग कंपनियों को करीब 60,000 करोड़ रुपये तक के लैंडिंग प्लेटफ़ॉर्म डॉक जहाज़ों के ऑर्डर मिलने की संभावना है, जो उभयचर सैन्य अभियानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे। वहीं 30 मिमी नेवल सरफेस गन की खरीद से BHEL और गार्डन रीच को लाभ मिल सकता है, जबकि 76 मिमी सुपर रैपिड गन माउंट के लिए स्मार्ट अम्यूनिशन सप्लाई में भी BHEL संभावित सप्लायर माना जा रहा है।
भारत डायनेमिक्स को एडवांस्ड लाइटवेट टॉरपीडो के लिए 500 से 1,000 करोड़ रुपये के ऑर्डर मिलने की उम्मीद जताई जा रही है, जो पारंपरिक से लेकर न्यूक्लियर तथा मिनी सबमरीन तक को निशाना बनाने में सक्षम हैं। वहीं BEL, Astra Micro और Data Patterns को नौसेना के लिए इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल इंफ्रा-रेड सर्च एंड ट्रैक सिस्टम से भी ऑर्डर्स मिल सकते हैं।
ध्यान देने वाली बात है कि निफ्टी इंडिया डिफेंस इंडेक्स लगातार छह दिनों से बढ़त पर बना हुआ है और इस दौरान 2.5% की वृद्धि दर्ज कर चुका है, जबकि पिछले एक महीने से यह बेहद स्थिर बना हुआ है। ऐसे में बाजार विश्लेषकों का मानना है कि रक्षा क्षेत्र में यह हालिया स्वीकृतियाँ रक्षा कंपनियों के लिए मजबूत आर्थिक अवसर लेकर आई हैं।

कनाडा के विवादित विज्ञापन पर भड़के ट्रंप, सभी ट्रेड वार्ता रोकने की चेतावनी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर कनाडा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए सभी व्यापार वार्ताओं को तत्काल प्रभाव से खत्म करने की घोषणा की हैं। यह फैसला उस विवादित विज्ञापन के बाद आया है जिसमें कनाडा के ओंटारियो प्रांत की सरकार ने अमेरिका की टैरिफ नीति की आलोचना करते हुए पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की पुरानी ऑडियो क्लिप का इस्तेमाल किया था। ट्रंप ने इस विज्ञापन को “फेक” और “भ्रामक” बताते हुए कहा कि कनाडा के साथ अब कोई बातचीत नहीं होगी।
गौरतलब है कि ट्रंप प्रशासन ने कनाडा से आने वाले कई उत्पादों पर 35% तक का टैरिफ लगाया है, जिसमें कार और स्टील उद्योग भी शामिल हैं। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव ओंटारियो प्रांत पर पड़ा है, जो कनाडा की अर्थव्यवस्था का मुख्य केंद्र माना जाता है। ओंटारियो के प्रीमियर डग फोर्ड पहले भी टैरिफ का विरोध करते रहे हैं और हाल ही में उन्होंने कहा था कि जरूरत पड़ने पर वह अमेरिका को बिजली सप्लाई तक रोक सकते हैं।
इस बीच, रोनाल्ड रीगन फाउंडेशन ने भी इस विज्ञापन को “भ्रामक” बताया है और आरोप लगाया है कि रीगन की क्लिप को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। फाउंडेशन ने यह भी कहा है कि इस क्लिप के इस्तेमाल की अनुमति नहीं ली गई थी और वह कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप का मानना है कि यह विज्ञापन अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले को प्रभावित करने की कोशिश है, जिसमें यह तय होना है कि उनके द्वारा लगाए गए टैरिफ कानूनी हैं या नहीं।
जानकारों का कहना है कि इस ताज़ा विवाद से अमेरिका और कनाडा के बीच व्यापारिक तनाव और बढ़ सकता है। यह स्थिति वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी असर डाल सकती है क्योंकि दोनों देश दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में गिने जाते हैं। हालांकि कनाडा की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन कूटनीतिक स्तर पर हलचल तेज हो गई हैं।

Canada-US trade talks: मार्क कार्नी का बयान देश बातचीत को तैयार, ट्रंप ने वार्ता रोकी

कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा हैं कि उनका देश अमेरिका के साथ व्यापारिक वार्ता तब फिर से शुरू करने के लिए तैयार हैं जब अमेरिकी इसके लिए तैयार होगा। बता दें कि यह बयान उस समय आया हैं जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा के खिलाफ आलोचनात्मक विज्ञापन के कारण सभी वार्ता तुरंत रोकने की घोषणा की थी।
मौजूदा जानकारी के अनुसार, विवादित विज्ञापन ओंटारियो प्रांत द्वारा प्रकाशित किया गया, जिसमें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के कथन का उल्लेख था कि टैरिफ “हर अमेरिकी को नुकसान पहुँचाते हैं”। ट्रंप ने इसे “फेक” और “अत्यधिक” बताया और वार्ता समाप्त कर दी।
ट्रंप प्रशासन ने कई कनाडाई उत्पादों पर 35% टैरिफ और कार व इस्पात पर विशेष टैरिफ लगाए हैं। ओंटारियो प्रांत सबसे अधिक प्रभावित हुआ हैं। गौरतलब हैं कि मैक्सिको और कनाडा के साथ मुक्त व्यापार समझौतों के तहत कुछ उत्पादों को छूट दी गई हैं।
विवाद का केंद्र विज्ञापन हैं, जिसमें रीगन के 1987 के भाषण से चयनित अंश शामिल हैं। रीगन फाउंडेशन ने इसे “गलत प्रस्तुतिकरण” बताया और बिना अनुमति संपादन का आरोप लगाया। ओंटारियो के प्रीमियर डग फोर्ड ने पूरी स्पीच सोशल मीडिया पर साझा कर दोनों देशों की मित्रता पर जोर दिया।
मौजूदा जानकारी के अनुसार, अमेरिकी टैरिफ से कनाडा की अर्थव्यवस्था और रोजगार प्रभावित हुए हैं। धातु पर 50% और ऑटोमोबाइल पर 25% शुल्क लगाया गया हैं। गौरतलब हैं कि यह ट्रंप का दूसरा अवसर हैं जब उन्होंने कनाडा के साथ व्यापार वार्ता रोकने का ऐलान किया।
प्रधानमंत्री कार्नी ने कहा कि कनाडा अमेरिका से संकेत मिलने पर व्यापार वार्ता तुरंत फिर से शुरू करने के लिए तैयार हैं और देश अन्य अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों पर भी फोकस कर रहा हैं।

Tata Tech समेत 4 बड़ी कंपनियों का अमेरिका फर्स्ट पर जोर, ट्रंप की सख्ती के बाद H-1B Sponsorship की बंद

डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा एच1बी वीज़ा पर की गई सख्ती के बाद, भारतीय इंजीनियरिंग और डिजिटल सेवाओं की दिग्गज कंपनी टाटा टेक्नोलॉजीज अपनी अमेरिकी भर्ती रणनीति में बड़ा बदलाव कर रही है। वैश्विक इंजीनियरिंग सेवा कंपनी ने कहा कि अब वह अमेरिका में ज़्यादा अमेरिकी कर्मचारियों की भर्ती पर ध्यान केंद्रित करेगी, जिससे विदेशी प्रतिभाओं पर उसकी निर्भरता कम होगी। टाटा टेक्नोलॉजीज के सीईओ वारेन हैरिस ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, “जैसे-जैसे हम वीज़ा और उससे जुड़े कानूनों में बदलाव पर प्रतिक्रिया देंगे, इसका मतलब होगा कि हम अमेरिका में ज़्यादा स्थानीय नागरिकों की भर्ती करेंगे।

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टाटा टेक्नोलॉजीज का यह कदम ऐसे समय में आया है, जब अमेरिका में सबसे बड़ी निजी नियोक्ता कंपनी वॉलमार्ट ने ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए नए 100,000 डॉलर के आवेदन शुल्क का हवाला देते हुए एच-1बी वीजा की आवश्यकता वाले उम्मीदवारों के लिए नौकरी की पेशकश रोक दी है। यह कदम वाशिंगटन द्वारा एच1बी वीज़ा शुल्क में वृद्धि और कड़े नियमों की घोषणा के बाद उठाया गया है, जो ट्रंप प्रशासन के “अमेरिका फ़र्स्ट” एजेंडे का हिस्सा है। अमेरिकी अधिकारियों ने बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि विदेशी श्रमिकों को तकनीकी क्षेत्र में अमेरिकी कर्मचारियों की जगह नहीं लेनी चाहिए। 

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सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में सभी H-1B वीज़ा धारकों में लगभग 75% भारतीय हैं। बढ़ती वीज़ा लागत और नौकरशाही के कारण कई कंपनियों ने H-1B प्रायोजन की आवश्यकता वाले उम्मीदवारों के लिए प्रस्ताव रोक दिए हैं। टाटा टेक अब अगले नियुक्ति चक्र से पहले समायोजन करने की जल्दी में है। टाटा टेक्नोलॉजीज दुनिया भर में लगभग 12,000 लोगों को रोजगार देती है, और इसके 2024-25 के 5,168 करोड़ रुपये ($588 मिलियन) के राजस्व का लगभग 20% उत्तरी अमेरिका से आता है।

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टाटा टेक्नोलॉजीज के सीईओ हैरिस ने कहा कि व्यापारिक चुनौतियों के बावजूद अगले छह से नौ महीनों में अमेरिकी बाजार में तेजी आने की उम्मीद है। टाटा पहले से ही चीन, स्वीडन और यूके जैसे अन्य बाजारों में स्थानीय स्तर पर नियुक्तियाँ कर रहा है, और 70% से अधिक कर्मचारी घरेलू स्तर पर ही नियुक्त किए जाते हैं। ऐसा लगता है कि इस समय अपने अमेरिकी परिचालन को अमेरिकी कर्मचारियों के हाथों में सौंपना अगला तार्किक कदम है। 
 कॉग्निजेंट ने नई H-1B नीति के बारे में कोई सीधा बयान नहीं दिया है। हालांकि, 14 अक्टूबर को दक्षिण कैरोलिना में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग पद के लिए पोस्ट की गई नौकरी की लिस्ट में, कंपनी ने कहा कि वह ‘इस पद के लिए केवल उन आवेदकों पर विचार करेगी जो एम्प्लॉयर स्पॉन्सरशिप की आवश्यकता के बिना यूएस में काम करने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत हैं। इंट्यूटिव सर्जिकल ने एच-1बी वीजा की आवश्यकता वाले आवेदकों के लिए स्पॉन्सरशिप रोक दी है। 

Jammu Kashmir Rajya Sabha Election Result: नेशनल कॉन्फ्रेंस के तीन उम्मीदवार जीते, एक सीट पर भाजपा का कब्जा

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर में 24 अक्टूबर को हुए  राज्यसभा चुनाव श्रीनगर विधानसभा परिसर में शांतिपूर्वक संपन्न हुए। राज्यसभा चुनाव के लिए 88 में से 86 विधायकों ने अपने वोट डाले और हिरासत में लिए गए विधायक मेहराज मलिक ने डाक मतपत्र के माध्यम से मतदान किया। कांग्रेस, पीडीपी, सीपीआई (एम), एआईपी और छह निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन से सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) गठबंधन ने निर्णायक बहुमत हासिल किया, जिससे चार में से तीन सीटों पर आसान जीत सुनिश्चित हुई। एनसी के उम्मीदवार, चौधरी मोहम्मद रमजान, सज्जाद किचलू और शम्मी ओबेरॉय, राज्यसभा में प्रवेश कर गए, जिससे 88 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी की प्रमुख स्थिति की पुष्टि हुई।

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चौथी सीट के लिए मुकाबला एनसी के इमरान नबी डार और भाजपा के सत शर्मा के बीच था, जहां शर्मा ने बहुमत के 32 वोटों से जीत हासिल की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के मतदान में भाग न लेने के बावजूद, एनसी ने पहले सभी चार सीटों पर जीत हासिल करने का विश्वास व्यक्त किया था, और इस बात पर जोर दिया था कि ये परिणाम अनुच्छेद 370 के बाद की राजनीतिक स्थिरता और केंद्र शासित प्रदेश में एनसी के नेतृत्व वाले गठबंधन की ताकत में मतदाताओं के विश्वास को दर्शाते हैं। 

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जम्मू-कश्मीर में राज्यसभा चुनाव के लिए, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) ने चार उम्मीदवार उतारे, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने तीन उम्मीदवार उतारे। NC के उम्मीदवार इमरान नबी डार, चौधरी मुहम्मद रमजान, सज्जाद किचलू और शम्मी ओबेरॉय हैं। तीन राज्यसभा सीटों के लिए भाजपा के उम्मीदवार सत पॉल शर्मा, गुलाम मोहम्मद मीर और राकेश महाजन हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर की चार सीटों के लिए राज्यसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवारों को समर्थन दिया है। इस बीच, सज्जाद गनी लोन के नेतृत्व वाली जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (JKPC)ने राज्यसभा चुनाव से दूरी बनाने का फैसला किया।

 

Pakistan in 4 Front War | ब्लूचिस्तान के बग़ावत,हिंसा -मानवाधिकार हनन की कहानी | Teh Tak Chapter 2

भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों को एक साथ 1947 में आजादी मिली थी। लेकिन अपनी आजादी के 75वें साल में भी पाकिस्तान पूरी तरह से अशांत है। जिसके पीछे की वजह है वो खुद ही अपने देश में आतंकवाद को फलने-फूले देता है व कितनी दफा उसे खाद-पानी भी मुहैया कराता रहता है। ताकी उसका उपयोग वो भारत के खिलाफ कर सके। लेकिन वो कहावत तो आपने खूब सुनी होगी। डो औरों के लिए गड्ढा खोदते हैं वो एक दिन खुद ही गड्ढे में गिर जाते हैं। लेकिन एक और कहावत है अक्ल पर पत्थर पड़ा होना। पाकिस्तान के केस में दोनों ही कहावतें सटीक बैठती है। वो लगातार गड्ढे में गिरता रहता है लेकिन फिर भी उससे सीख नहीं लेता है। इन दिनों पाकिस्तान के एक प्रांत को लेकर खूब चर्चा हो रही है। साउथ वेस्ट एशिया का पाकिस्तानी प्रांत बलूचिस्तान जो पिछले सात दशकों से अपनी आजादी और अधिकारों के लिए लड़ रहा है और कई बार पाकिस्तान के अंदर हमलों को भी अंजाम देता रहा है। 1947 के बाद से आज तक पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान को सबसे तवानग्रस्त इलाका माना जाता है। मुट्ठीभर भारतीय कश्मीरी मुसलमान पाकिस्तान के बहकावे में आकर अलगाववाद की बातें करते हैं और कश्मीर को स्वतंत्र करने की आवाज उठाते हैं। बलूचिस्तान के बलूची और पख्तून भी अक्सर पाकिस्तान से अलग होने की मांग उठाते रहे हैं और भारत द्वारा बलूचिस्तान का समर्थन भी किया जाता है।

बलूचिस्तान का मसला क्या है

बलूचिस्तान का 760 किलोमीटर लंबा समुद्र तट पाकिस्तान के समुद्र तट का दो तिहाई है
बलूचिस्तान की आबादी सिर्फ 1.3 करोड़ है
आर्थिक रूप से सबसे पिछड़ा है 
बलूचिस्तान गरीबी दर में सबसे ऊपर है 

बलूचिस्तान अंग्रेजी शासन में बलूचिस्तान में 4 राज्य 

कलात ने पाकिस्तान में विलय से इंकार किया कलात की बगावत पर जिन्ना ने सेना भेजी
बलूचों की बगावत को कुचलने के लिए पाकिस्तान ने कई बार सैन्य हमले किए
पहला हमला 1948 में जब जिन्ना के कहने पर पाकिसतानी सेना ने बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया।
साल 1959 में बलोच नेता नौरोज़ ख़ाँ ने इस शर्त पर हथियार डाले थे कि पाकिस्तान की सरकार अपनी वन यूनिट योजना को वापस ले लेगी। लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने उनके हथियार डालने के बाद उनके बेटों सहित कई समर्थकों को फ़ांसी पर चढ़ा दिया।
1974 में जनरल टिक्का ख़ाँ के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना ने मिराज और एफ़-86 युद्धक विमानों के ज़रिए बलूचिस्तान के इलाकों पर बम गिराए। यहाँ तक कि ईरान के शाह ने अपने कोबरा हेलिकॉप्टर भेज कर बलोच विद्रोहियों के इलाकों पर बमबारी कराई।
26 अगस्त, 2006 को जनरल परवेज़ मुशर्ऱफ़ के शासनकाल में बलोच आँदोलन के नेता नवाब अकबर बुग्ती को सेना ने उनकी गुफ़ा में घेर कर मार डाला।

आज तक बलूचिस्तान में विद्रोह जारी 

1948 से लेकर आज तक बलूच का विद्रोह जारी है। बलूच का मानना है कि वो पूर्व में एक स्वतंत्र राष्ट्र थे और सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से वो एक अलग पहचान रखते है। पाकिस्तान ने कलात के खान से बंदूक की नोंक पर विलय करवाया। आज बलूचिस्तान में हजारों बलूच लड़ाके पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ रहे हैं। बलूचिस्तान के लोग चाहते हैं कि भारत मामले में दखल दे जिस तरह उसने बांग्लादेश के मामले में किया था। नरेंद्र मोदी द्वारा बलूचिस्तान का जिक्र आने के बाद भारत ने अपनी रणनीति बदली है। इससे बलूच लोगों में भी एक बार फिर आशा जगी है कि वो भारत की मदद से अपना हक पा सकेंगे और आने वाले दिनों में पाकिस्तान को एक और बंटवारे से रूबरू होना पड़ेगा। 
 

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Pakistan in 4 Front War | पाकिस्तान ने आर्मी हेडक्वार्टर के लिए रावलपिंडी को ही क्यों चुना? | Teh Tak Chapter 3

पाकिस्तान की कहानी अक्सर दो शहरों – लाहौर और कराची  की गलियों से गुज़रती है। लाहौर (पंजाब) और कराची (सिंध) पाकिस्तान के दो सबसे प्रभावशाली शहर हैं। फिर भी वे दो पॉवर सेंटर के रूप में जाने जाते हैं। लाहौर सैन्य और राजनीतिक रसूख वाला शहर है जबकि कराची मुल्क का ग्रोथ इंजन है। अगर कहे कि लाहौर पाकिस्तान का दिल है तो कराची आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक राजधानी कही जाती है। हालांकि इन दोनों शहरों के बीच संघर्ष पाकिस्तान के बड़े असंतुलन को दर्शाता है। जहां राजनीति और सत्ता पंजाब में केंद्रीकृत है, जबकि आर्थिक उत्पादकता सिंध और कराची से आती है।

लाहौर-रावलपिंडी कैसे बना सत्ता का केंद्र 

1947 में आज़ादी के समय, कराची पाकिस्तान की पहली राजधानी थी। इसकी पहचान एक महानगरीय बंदरगाह शहर के रूप में होती थी जो अपनी आधुनिकता के लिए जानी जाती थी। लेकिन 1967 तक, राजधानी उत्तर में इस्लामाबाद स्थानांतरित हो गई थी। ये इलाका रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय के करीब था और राजनीतिक रूप से लाहौर के पंजाबी अभिजात वर्ग के साथ जुड़ा हुआ था। यह बदलाव सिर्फ़ भौगोलिक नहीं था बल्कि इसके मायने भी बेहद गहरे थे।  देश के प्रमुख फ़ैसले – रक्षा से लेकर कूटनीति तक यही से होकर निकलती है। इस वजह से कई लोग लाहौर-रावलपिंडी स्टैबलिशमेंट बेल्ट भी कहा करते हैं। 

लाहौर को क्यों कहा जाता है राजनीतिक राजधानी

लाहौर आज पाकिस्तान में राजनीतिक वैधता का प्रतीक है। यह शरीफ परिवार का गृहनगर, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) का गढ़ और प्रमुख पंजाबी पहचान की सांस्कृतिक राजधानी है। पाकिस्तानी सेना का रावलपिंडी स्थित हेडक्वार्टर से इसकी नजदीकी लाहौर की अहमियत में चार चांद लगाते हैं। सैन्य नियुक्तियों से लेकर बजट प्राथमिकताओं तक, पंजाब के नेता और नौकरशाह सत्ता प्रतिष्ठान के केंद्र में रहते हैं। देश के बाकी हिस्सों के लिए, लाहौर पंजाब के राजनीतिक एकाधिकार का प्रतीक है। एक ऐसा क्षेत्र जहाँ आधी से भी कम आबादी रहती है, लेकिन राज्य की अधिकांश मशीनरी पर इसका नियंत्रण है।

पाकिस्तान का ग्रोथ इंजन कराची

कराची पाकिस्तान की व्यावसायिक राजधानी है, जो अपने बंदरगाहों, बैंकिंग क्षेत्र और उद्योगों के माध्यम से राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में आधे से ज़्यादा और संघीय राजस्व में लगभग 90 प्रतिशत का योगदान देता है। फिर भी, अपनी आर्थिक ताकत के बावजूद, कराची दशकों से राजनीतिक रूप से हाशिये पर रहा है। शहर की जनसांख्यिकीय विविधता – सिंधी, मुहाजिर, पश्तून और बलूच – इसे जीवंत तो बनाती है, लेकिन राजनीतिक रूप से खंडित भी। 1980 के दशक में एमक्यूएम (मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट) के उदय ने शहरी मुहाजिर आबादी को एक आवाज़ दी, लेकिन साथ ही दशकों तक चली ज़मीनी जंग, सैन्य दमन और गुटीय राजनीति को भी जन्म दिया। कराची का शासन आज एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में व्याप्त असमानता के कारण पंगु है – नगर सरकार, सिंध प्रांतीय सरकार और संघीय अधिकारी, सभी नियंत्रण के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि नागरिक बुनियादी ढाँचा चरमरा रहा है।
 

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पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थानीय लोगों के प्रदर्शन के दौरान पाकिस्तानी सेना का अत्याचार अब संयुक्त राष्ट्र तक तक पहुंच गया है। 29 सितंबर से चल रहे नागरिकों के प्रदर्शन में अब तक 9 लोग मारे जा चुके हैं और 150 से ज्यादा घायल हैं। पीओके प्रदर्शनों को भारत सरकार ने वहां की दमनकारी नीतियों का नतीजा बताया है। इन प्रदर्शनों को लेकर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को कहा कि हमने पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों को लेकर रिपोर्ट देखी है। इनमें पाकिस्तानी सेना की ओर से मासूम नागरिकों पर की जा रही बर्बरता भी शामिल है। हमारा मानना है कि ये पाकिस्तान के दमनकारी, शोषणकारी रवैया और इन इलाकों में संसाधनों की संस्थागत लूट का नतीजा है।

प्रदर्शन की शुरुआत कैसे हुई?

मुजफ्फराबाद में हिंसा सबसे पहले 29 सिंतबर को भड़की। जम्मू-कश्मीर जॉइंट आवामी ऐक्शन कमिटी (जेकेजेएएसी ) और सरकार समर्थक मुस्लिम कॉन्फ्रेंस से जुड़े लोग नीलम ब्रिज पर जमा हुए। जेकेजेएएसी और मुस्लिम कॉन्फ्रेंस एक-दूसरे पर गोलियां चलाने का आरोप लगाया। 1-2 अक्टूबर को हिंसा शुरू हो गई। पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में धीरकोट, मुजफ्फराबाद और मीरपुर में 9 लोग मारे गए और 150 लोग घायल है। इसी के विरोध में शुक्रवार को कराची और इस्लामाबाद में भी प्रदर्शन शुरू हो गया।

क्या है मांगें

पीओके में रहने वाले दशकों से पाकिस्तानी शासन के आर्थिक शोषण और राजनीतिक बहिष्कार के शिकार है। JKJAAC ने 38 मांगें रखी है, जिनमें प्रमुख है, बिजली की कीमतों में 80% वृद्धि और गेहूं (आटा) की महंगाई के खिलाफ सब्सिडी। PoK की नदियों से बनी जलविद्युत परियोजनाएं जैसे मंगला डैम पाकिस्तान के पंजाब को फायदा पहुंचाती है, लेकिन स्थानीय लोगों को इसका कोई फायदा नहीं मिलता। स्थानीय विधानसभा के लिए आरक्षित 12 सीटों को लोग मान रहे कि इसका फायदा स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा।

क्यो कहा जा रहा कि यह युवाओ का आंदोलन ?

न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक, जेकेजेएएसी ने कहा कि बेरोजगारी से जूझ रहे युवा रैलियों का नेतृत्व कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपने देश में कोई भविष्य नहीं दिखता। ये युवा शोषणकारी व्यवस्था को ध्वस्त करने और ऐसा कुछ बनाने के लिए जोर दे रहे हैं जो उन्हें काम, सम्मान और उनके जीवन को बेहतर कर सके। मुजफ्फराबाद में 29 साल के दुकानदार अली जमान ने कहा कि अधिकारियों ने विरोध प्रदर्शनों को भारत समर्थित बताकर खारिज करने की कोशिश की। लेकिन असल में ये वो लोग हैं जो व्यवस्था से तंग आ चुके हैं और बदलाव चाहते हैं।

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